गणित शिक्षण विधिया : Maths Teaching Method

गणित शिक्षण विधियां-

शिक्षण एक ऐसी युक्तियां/तरीके जो एक निश्चित सिद्धांत/अनुक्रम का पालन करते हुए विषय वस्तु को विद्यार्थियों तक प्रेषित करती है।

विषय की प्रकृति की इसमें प्रमुख भूमिका होती है

शिक्षण विधि स्वयं में स्वतंत्र होती है।

शिक्षण विधि के निश्चित सोपान होते है।

पूर्व नियोजित प्रक्रिया होती है।

अच्छी शिक्षण विधि की विशेषताएं-

1. शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति में सक्षम हों।

2. विषय की प्रकृति के अनुकूल हो तथा इस विषय में बालकों की जिज्ञासा एवं रूचि का विकास करती हो।

3. विद्यार्थियों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अधिकाधिक सक्रिय तथा क्रियाशील रखती हों।

4. व्यवहार के तीनों पक्षों अर्थात् संज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक का विकास करती हो।

5. मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित हो अर्थात् जो वैयक्तिक भिन्नता, बालकों की क्षमताओं, योग्यताओं, अभिरूचियों एवं अभिवृत्तियों को दृष्टिगत रखती है।

6. बालकों में सामाजिक गुणों का विकास करती हो।

7. अनुशासनात्मक मूल्यों का विकास करती हो।

8. मितव्ययी/मितव्ययी बनें.

9. व्यावहारिक हो अर्थात् उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप हों।

गणित शिक्षण विधिया : आगमन विधि (Inductive method)-

शाब्दिक अर्थ – सामान्यानुमान

नवीन अवधारणाओं का परिचय देने की सर्वश्रेष्ठ विधि ।

प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि ।

प्रतिपादक – अरस्तू

इस विधि में विभिन्न उदाहरणों/ घटनाओं को देखकर उनमें निहित समान पैटर्न पहचान कर सामान्यीकरण (Generalisation) करके एक सामान्य सिद्धांत/सूत्र/ नियम की स्थापना की जाती है।

इसलिए आगमन विधि को खोज का मार्ग कहा जाता है।

आगमन विधि के शिक्षण सूत्र-

1. उदाहरण से नियम की ओर

2. विशिष्ट से सामान्य की ओर

3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर

4. प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर

5. ज्ञात से अज्ञात की ओर

आगमन विधि के सोपान-

1. विभिन्न उदाहरणों की प्रस्तुति:

2. उदाहरणों का निरीक्षण करना

3. विशिष्ट पैटर्न पहचान कर सामान्यीकरण करना व नियम की स्थापना करना।

4. परीक्षण एवं सत्यापन

आगमन विधि के गुण-

1. नवीन सम्प्रत्ययों/अवधारणाओं का परिचय देने की श्रेष्ठ विधि है।

2. प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिए श्रेष्ठ शिक्षण विधि ‘मानी जाती है।

3. खोजने का मार्ग हैं।

4. मनोवैज्ञानिक विधि ‘है जो बालकों की तर्क शक्ति, चिंतन, निर्णय/विचार शक्ति का विकास करती हैं।

5. सक्रिय अधिगम में सहायक है जिसमें शिक्षक तथा छात्र दोनों सक्रिय रहते हैं

6. इस विधि से प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है।

7. निष्कर्षो तक पहुंचने की क्रमबद्धता एवं तार्किक प्रक्रिया बालकों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करती हैं।

आगमन विधि के दोष-

1. लम्बी प्रक्रिया है जिसमें सिद्धान्तों/नियमों/सूत्रों की स्थापना में बहुत समय लगता हैं।

2. पाठ्यक्रम का विकास धीमी गति से होता है।

3. उच्च कक्षाओं में शिक्षण के लिए अधिक उपयोगी नहीं है।

4. आगमन विधि से शिक्षण के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होती है।

5. आगमन विधि पर आधारित पाठ्यपुस्तकों का अभाव होता है।

गणित शिक्षण विधिया : निगमन विधि (Deductive Method)-

यह आगमन विधि को ठीक विपरीत विधि है तथा यह गठित की एक परम्परागत तथा व्यावहारिक विधि मानी जाती है क्योंकि गणित शिक्षण में अधिकांशतः इस विधि का प्रयोग किया जाता है।

इस विधि में बालकों को गणित के सूत्र/सिद्धांत/नियम का सर्वप्रथम ज्ञान करा दिया जाता है तथा उसमें आकड़ों के मान रखकर समस्या समाधान तक पहुंचा जाता है।

निगमन विधि के शिक्षण सूत्र-

1. नियम से उदाहरणों की ओर

2. सूक्ष्म से स्थूल की ओर

3. सामान्य से विशिष्ट की ओर

4. प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर

5. अज्ञात से ज्ञात की ओर

* एक त्रिभुज का आधार 12 cm तथा ऊंचाई 9 cm है तो इसका पृष्ठीय क्षेत्रफल ज्ञात करो?

निगमन विधि के सोपान-

1. बालकों को सिद्धांत/सूत्र का ज्ञान करवाना

2. आंकड़ों का परीक्षण

3. सूत्र में मान रखकर समस्या का समाधान तक पहुंचना

4. परीक्षण एवं सत्यापन

निगमन विधि के गुण-

1. सरल, संक्षिप्त तथा व्यावहारिक विधि है।

2. समस्याओं का हल तीव्र गति से प्रापत करती है।

3. पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण करने में सक्षम हैं।

4. अधिकांश पाठ्यपुस्तकों इसी विधि पर आधारित होती हैं।

5. उच्च कक्षाओं में गणित शिक्षण के लिए उपयोगी है।

निगमन विधि के दोष-

  1. अमनोवैज्ञानिक विधि है जो तर्कशक्ति, चिंतन, निर्णय शक्ति का विकास नहीं करती है।

2. रटने की प्रवृति को प्रोत्साहित करती हैं।

3. केवल अनुकरण का मार्ग है।

4. अध्यापक केंद्रित विधि है जिसमें विद्यार्थी प्रायः निष्क्रियं रहते हैं।

5. सक्रिय अधिगम को प्रोत्साहित नहीं करती।

6. इस विधि से अर्जित ज्ञान स्थायी नहीं होता।

7. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास नहीं करती।

8. यंत्रवत प्रक्रिया हैं।

गणित शिक्षण विधिया : विश्लेषण विधि (Analytic Method)-

विश्लेषण (Analysis)- शाब्दिक अर्थ खण्ड-खण्ड करना/टुकड़े करना

यह विधि भी गणित शिक्षण की एक सर्वश्रेष्ठ विधि मानी जाती है जिसका सर्वाधिक प्रयोग अंकगणित तथा रेखागणित की जटिल समस्याओं के हल में, बीजगणितीय समीकरणों के हल में तथा रेखागणित की प्रमेयों (साध्यों) को सिद्ध करने में किया जाता है।

विश्लेषण विधि में बालक किसी जटिल एवं बड़ी समस्या को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त करता है तथा प्रत्येक खण्ड का पृथक-पृथक हल ज्ञात करके समस्या समाधान तक पहुंचता हैं।

इस प्रक्रिया में बालक अपनी मानसिक शक्तियों तर्क तथा चिंतन का प्रयोग करते हुए एवं चरणबद्ध प्रक्रिया से गुजरते हुए क्यों? व कैसे? जैसे प्रश्नों का हल ढूढ़ता हैं।

विश्लेषण विधि के शिक्षण सूत्र-

1. ज्ञात में अज्ञात की ओर

2. निष्कर्ष से अतमान/ज्ञात तथ्यों की ओर

आगमन में नवीन सिद्धांत/सूत्र की स्थापना होती है। जबकि विश्लेषण में जटिल समस्या का समाधान किया जाता है।

विश्लेषण विधि के सोपान-

1. समस्या की पहचान करना

2. समस्या को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त करना।

3. प्रत्येक खण्ड का पृथक-पृथक हल ज्ञात करना।

4. समस्या का सम्पूर्ण समाधान करना।

विश्लेषण विधि के गुण-

1. मनोवैज्ञानिक विधि है जो मानसिक शक्तियों/तर्क/चिंतन/निर्णय आदि का विकास करती हैं।

2. माध्यमिक स्तर पर गणित शिक्षण की श्रेष्ठ विधि है।

3. बालकों को सम्पूर्ण प्रक्रिया में सक्रिय रखती है।

4. समस्या समाधान के कौशलों का विकास करती है।

5. बीजगणित समीकरणों के हल, रेखागणित की प्रमेयों को सिद्ध करने में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

विश्लेषण विधि के दोष-

1. छोटी कक्षाओं/कम आयु के बालकों के लिए उपयुक्त नहीं है।

2. लम्बी प्रक्रिया है अतः पाठ्यक्रम का विकास धीमी गति से होता है।

3. प्रत्येक गणितीय समस्या को खण्ड-खण्ड करना सम्भव नहीं होता।

गणित शिक्षण विधिया : संश्लेषण विधि (Syntesis Method)-

संश्लेषण का शाब्दिक अर्थ = इक‌ट्ठा करना/समेकित करना/एकीकृत करना/जोड़ना

यह विश्लेषण विधि की विपरीत विधि होती है जिसमें विश्लेषण से प्राप्त पृथक-पृथक खण्डों को जोड़कर एक नवीन निष्कर्ष का सृजन किया जाता हैं। इसीलिए इस विधि को “समेटने एवं गूथने की विधि भी कहा जाता हैं।

चूंकि संश्लेषण का कार्य विश्लेषण कर लिये जाने के बाद ही प्रारम्भ किया जाता है, अतः संश्लेषण एक स्वतंत्र विधि न होकर विश्लेषण की पूरक विधि मानी जाती हैं।

प्रो. यंग के अनुसार- संश्लेषण विधि में जहां सूखी घास में से तिनका बाहर निकाला जाता है (ज्ञात से अज्ञात), वही विश्लेषण विधि में तिनका स्वयं घास में से बाहर निकलना चाहता है (अज्ञात से ज्ञात).

संश्लेषण विधि के शिक्षण सूत्र-

1. ज्ञात से अज्ञात

2. अनुमान से निष्कर्ष

संश्लेषण विधि के गुण-

1. सरल व संक्षिप्त विधि हैं।

2. सीधे निष्कर्ष प्रस्तुत करती हैं।

3. पाठ्यक्रम आधारित विधि हैं।

4. इस विधि में समस्याओं का हल शीघ्र प्राप्त किया जाता हैं।

संश्लेषण विधि के दोष-

1. अमनोवैज्ञानिक विधि है जो केवल रटने पर बल देती हैं।

2. मानसिक शक्तियों जैसे तर्क / चितंन का विकास नहीं करती है तथा क्यों एवं कैसे? जैसे प्रश्नों का उत्तर नहीं देती।

3. विश्लेषण विधि पर आश्रित विधि है। जब तक विश्लेषण कार्य न किया जाये, संश्लेषण संभव नहीं होता।

गणित शिक्षण विधिया : ह्यूरिस्टिक विधि (heuristic Method)-

प्रतिपाकद – हेनरी आर्मस्ट्रांग

अन्य नाम अन्वेषण/अनुसंधान/खोज

Heuristic शब्द की उत्पति ग्रीक भाषा (यूनानी भाषा) से = Heurisco = discover (मैं खोजता हूं)

यह गणित तथा विज्ञान विषयों में शिक्षण की एक श्रेष्ठ विधि मानी जाती है जिसमें बालक स्वयं अपनी गति से तथ्यों का अध्ययन, अवलोकन, निरीक्षण करके उनका परीक्षण करता है तथा निष्कर्षो की खोज करता है।

एक अनुसंधानकर्ता के रूप में विकास करने की यह श्रेष्ठतम विधि हैं।

इस विधि का आधार आगमन विधि होती है अर्थात् इस विधि में भी बालक स्थूल से सूक्ष्म, मूर्त में अमूर्त, ज्ञात से अज्ञात की दिशा में अग्रसर होता है।

प्रतिभाशाली/असाधारण बालकों के शिक्षण की यह श्रेष्ठतम विधि हैं।

हरबर्ट स्पेन्सर – “बालकों को कम से कम बताया जायें तथा अधिक से अधिक खोजने के लिए प्रेरित किया जाये।”

आर्मस्ट्रॉग– “ह्यूरिस्टिक अन्वेषण की ऐसी विधि है जिसमें बालकों को एक अनुसंधानकर्ता के रूप में देखा जा सकता हैं।”

अन्वेषण विधि एक श्रेष्ठ बालकेन्द्रित विधि है जिसमें अध्यापक केवल परामर्शक की भूमिका में होता हैं।

ह्यूरिस्टिक विधि के सोपान-

1. समस्या की उपस्थिति

2. तथ्यों का संग्रह

3. परिकल्पनाओं का निर्माण

4. परिकल्पनाओं का परीक्षण

5. निष्कर्ष सिद्धांतों की खोज

ह्यूरिस्टिक विधि के गुण-

1. स्वयं सीखने की विधि है।

2. सक्रिय अधिगम को प्रोत्साहित करती हैं।

3. करके सीखने पर आधारित होती हैं।

4. बालकों में अनुसंधानात्मक दृष्टिकोण विकसित करने वाली श्रेष्ठतम विधि हैं।

5. प्रतिभाशाली बालकों के लिए सर्वाधिक उपयोगी हैं।

6. विज्ञान के मूल सिद्धांत, निरीक्षण- परीक्षण का पालन करती हैं।

7. मनोवैज्ञानिक विधि है।

8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करती हैं।

9. मानसिक शक्तियों जैसे तर्क/चिंतन/कल्पना आदि का विकास करत हैं।

ह्यूरिस्टिक विधि के दोष-

1. औसत तथा पिछड़े विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त विधि नहीं है क्योंकि निष्कर्षों की खोज करने में उच्च संज्ञानात्मक योग्यताओं की आवश्यकता होती हैं।

2. छोटी कक्षाओं के लिए उपयुक्त विधि नहीं हैं।

3. व्यक्तिगत शिक्षण की विधि है, सामूहिक शिक्षण की नहीं।

4. निष्कर्षो तक पहुंचने की प्रक्रिया लम्बी होती है अतः पाठ्यक्रम का विकास धीमी गति से होता हैं।

गणित शिक्षण विधिया : प्रोजेक्ट विधि

जीवन द्वारा सीखने की विधि मानी जाती है जिसमें बालक स्वयं सामाजिक वातावरण में कार्य करके तथा वास्तविक अनुभवों द्वारा सीखते हैं।

सर्वप्रथम विचार = जॉन ड्यूवी (प्रसिद्ध शिक्षाविद)

प्रतिपादन – विलियम क्लिपपैट्रिक

ड्यूवी – किलपैट्रिक. उपागम।

गांधीजी ने अपने बेसिक शिक्षा मॉडल में प्रायोजना विधि अपनाने पर सर्वाधिक बल दिया।

किलपैट्रिक के अनुसार- “प्रायोजना एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है जिसे सामाजिक वातावरण में मन लगाकर पूरा किया जाता हैं।

इस विधि में बालक दूसरों से ‘समन्वय स्थापित’ करते हुए स्वयं के कार्य/उत्तरादायित्व को पूरा करता है। इसीलिए प्रायोजना विधि को “सहकारिता आधारित (co-opeartive)” विधि भी कहा जाता हैं।

प्रायोजना विधि के सोपान 6 सोपान निम्न हैं।

1 परिस्थितियों का निर्माण (समस्याओं को प्रस्तुत करना)

2. प्रायोजना का चयन

3. प्रायोजना की रूपरेखा बनानां/योजना निर्माण

4. प्रायोजना का क्रियान्वयन

5. परियोजना का मूल्यांकन

6. अभिलेख संधारण/लेखा-जोखा रखना/रिकॉर्ड रखना

प्रायोजना के प्रकार – 4 प्रकार

1. रचनात्मक/रचनात्मक परियोजना

2. समस्यात्मक प्रायोजना

3. अध्ययन परियोजना

4. सुखद/रसदार परियोजना

प्रायोजना विधि के गुण-

1. समवाय (co-realtion) के सिद्धांत पर आधारित विधि हैं।

2. सहकारिता आधारित क्रिया हैं।

3. सामाजिक गुणों का विकास करती हैं।

4. प्रत्यक्ष अनुभवों तथा क्रियात्मक पक्ष पर केन्द्रित विधि हैं।

5. कौशलात्मक पक्ष का विकास करती हैं।

6. समस्या समाधान के कौशलों का विकास करती हैं।

प्रायोजना विधि के दोष-

1. छोटी कक्षाओं/कम आयु के बालकों के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

2. लम्बी तथा समय लेने वाली प्रक्रिया हैं।

3. पाठ्यक्रम का विकास धीमी गति से होता है।

4. प्रत्येक प्रकरण प्रायोजना विधि से हल नहीं किया जा सकता।

गणित शिक्षण विधिया : प्रयोगशाला विधि-

गणित तथा विज्ञान शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधियों में से एक विधि है जो learnhing by doing (करके सीखना) के सिद्धांत पर आधारित होती हैं।

इस विधि में बालक अपनी ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से प्रत्यक्ष अनुभूति करके अवधारणाओं को सीखते हैं। अतः प्राप्त ज्ञान अपेक्षाकृत स्थायी होता हैं।

प्रयोगशाला विधि का आधार “आगमन विधि” होता है तथा करके सीखना भी निहित होने के कारण इसे “आगमन विधि का क्रियात्मक रूप” कहा जाता हैं।

प्रयोगशाला विधि में बालक स्वयं सक्रिय रहकर ज्ञान अर्जित करता है तथा अध्यापक केवल परामर्शक की भूमिका में होता है। अतः यह एक श्रेष्ठ बालकेन्द्रित विधि मानी जाती हैं।

प्रयोगशाला विधि व्यवहार के क्रियात्मक पक्ष का विकास करती है तथा इसे कौशलों के विकास का श्रेष्ठ माध्यम माना जाता हैं।

प्रयोगशाला विधि के शिक्षण सूत्र-

1. ज्ञात से अज्ञात

2. उदाहरणों से नियम

3. स्थूल से सूक्ष्म

4. मूर्त से अमूर्त

5. विशिष्ट से सामान्य

प्रयोगशाला विधियों के गुण

1. शिक्षण के कौशलात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सर्वश्रेष्ठ विधि मानी जांती हैं।

2. ज्ञानेन्द्रियों का प्रत्यक्ष अनुभव करके अर्जित किया गया ज्ञांत अपेक्षाकृत स्थाई होता है।

3. सैद्धांतिक ज्ञान की क्रियात्मक पुष्टि का साधन हैं।

4. बालकों में अनुसंधानात्मक दृष्टिकोण का विकास करती हैं।

5. बालकों की निरीक्षण शक्ति का विकास करती हैं।

6. बालकों को सक्रिय अधिगम के लिए प्रेरित करती हैं।

7. मूर्त वस्तुओं से अमूर्त चिंतन की ओर ले जाने वाली प्रक्रिया हैं।

प्रयोगशाला विधि की हानियाँ-

1. खर्चीली विधि है। सामग्री/संसाधन जुटाने में अतिरिक्त व्यय करना होता हैं।

2. लम्बी तथा समय लेने वाली प्रक्रिया है अतः पाठ्यक्रम का विकास धीमी गति से होता हैं।

3. गणित की प्रत्येक अवधारणा को प्रयोगशाला विधि से नहीं समझाया जा सकता।

4. छोटी कक्षाओं/कम आयु के बालकों के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

गणित शिक्षण की कुछ विधीया अगले पोस्ट मे देखे click here

3 thoughts on “गणित शिक्षण विधिया : Maths Teaching Method”

Leave a Comment