राज सिंह परिचय :
महाराणा जगतसिंह का पुत्र राजसिंह 1652 को अपने पिता की मृत्यु के बाद मेवाड़ का शासक बना।
• राज्यारोहण के समय तत्कालीन मुगल सम्राट शाहजहाँ ने राजसिंह को राणा का खिताब, पांच हजार जात तथा पांच हजार सवारों का मनसब देकर जमथर हाथी, घोड़े आदि भेजे।
राज सिंह के द्वारा चितोड़ दुर्ग की मरम्मत
• राजसिंह ने अपने पिता जगतसिंह द्वारा आरम्भ किये गये चितौड़ दुर्ग की मरम्मत के कार्य को पूरा करने का निश्चय किया।
चितौड़ दुर्ग के कार्य में आयी तीव्रता से चिन्तित मुगल सम्राट शाहजहाँ ने इसे 1615 ई. में हुई मुगल-मेवाड़ संधि की शर्तों के प्रतिकुल मानते हुए चितौड़ दुर्ग की दीवारों को दृहाने के लिए तीस हजार सैनिकों को सादुल्ला खाँ के नेतृत्व में भेजा
• राजसिंह ने मुगलों से संघर्ष करना उचित ना समझकर अपनी सेना को वहाँ से हटा लिया। मुगल सेना कंगूरे एवं बुर्ज गिराकर वापस लौट गई।
• शाहजहाँ ने मुंशी चन्द्रभान को मेवाड़ भेजा जिसने राजसिंह को मुगल-मेवाड़ संधि के तहत दक्षिण भारत में सेना भेजने और कुँवर को मुगल दरबार में भेजने हेतु मनाया।
राज सिंह का योगदान मुगल उत्तराधिकार संघर्ष में
1657-58 ई. में मुगल शाहजादों में उत्तराधिकार का संपर्ष छिड़ गया राजसिंह ने सक्रिय सहयोग किसी शहजादे का नहीं किया परंतु औरंगजेब से पत्र व्यवहार करता रहा।
राजसिंह ने मुगल प्रशासन में उत्पन्न अव्यवस्था का फायदा उठाकर मेवाड़ का राज्यविस्तार करना प्रारंभ कर दिया।
राजसिंह ने ‘टीका दौड़’ उत्सव का बहाना बनाकर 2 मई 1658 ई. में अपने राज्य के तथा बाहरी मुगल थानों पर हमले करना आरंभ दिया दरीबा
पहली मुगल चौकी थी जिस पर हमला किया गया बाद में मांडल, बनेड़ा, शाहपुरा, खरवाड़, जहाजपुर, सावर और फूलिया पर अधिकार कर लिया।
• राजसिंह ने टोडा, मालपुरा, चाटसू, टॉक व लालसोट के मुगल थानों को लूटा।
• जब राजसिंह का डेरा बनास पर था तो उसे औरंगजेब की शामूगढ़ की विजय की सूचना मिली इस सूचना पर वह अपनी राजधानी वापस लौटा तथा
अपने पुत्र सौभाग्यसिंह (सुल्तानसिंह) तथा भाई अरिसिंह को विजयी सम्राट (औरंगजेब) को भेंट व बधाई देने भेजा।
• राजसिंह ने दारा शिकोह का पिछा कर रहे औरंगजेब की सहायता हेतु सैन्य दल भेजा जो औरंगजेब से सालिमपुर में मिला।
• इस सेवा से प्रसन्न होकर औरंगजेब ने राणा के लिए फर्मान (आदेश) भेजा जिसके तहत गयासपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा आदि परगने जिनकी आमदनी दो करोड़ दाम थी को राजसिंह के नाम कर दिये।
• औरंगजेब ने राणा राजसिंह को 6000 जात एवं 6000 सवार का मनसब प्रदान किया।
राज सिंह के साथ राजकुमारी चारुमति की शादि
• 1660 ई. में किशनगढ़ कि राजकुमारी चारुमति से औरंगजेब का विवाह प्रस्तावित था परंतु राजकुमारी चारुमति जो औरंगजेब से विवाह करना नहीं चाहती थी उसने राजसिंह को पत्र लिखकर औरंगजेब से बचाने की प्राथर्ना की महाराणा राजसिंह ने किशनगढ़ पहुंचकर चारुमति से विवाह किया।
• 1660 ई. में हुए इस विवाह के कारण औरंगजेब राजसिंह से अप्रसन्न हो गया।
जजिया कर
• 2 अप्रेल 1679 ई. में औरंगजेब ने हिन्दुओं पर पुनः जजिया कर लगाया।
• राणा राज सिंह ने औरंगजेब द्वारा जजिया कर लगाने का पत्र लिखकर विरोध किया।
मुगल-मारवाड़ संघर्ष व राजसिंह
1678 ई. में मारवाड़ के शासक जसवन्त सिंह की मृत्यु होने के बाद मारवाड़ राज्य पर औरंगजेब का अधिकार स्थापित हो गया।
जसवनासिंह के अल्पवयस्क पुत्र अजीतसिंह को औरंगजेब ने इस्लामी ढंग से शिक्षा देने के उद्देश्य से दिल्ली में बुलवा लिया।
• बादशाह को नियत साफ न देखकर दुर्गादास राठौड़ तथा चांपावत सोनिंग आदि दिल्ली से अजीत सिंह को लेकर मारवाड़ निकल गये।
दुर्गादास मारवाड़ पर शाही अधिकार (औरंगजेब) हो जाने के कारण अजीतसिंह की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे।
दुर्गादास ने काननकुमारी की सहायता से राणा राजसिंह से अजीतसिंह राठौड़ को सुरक्षा देने की प्रार्थना की।
मुगलों का मारवाड़ में आना मेवाड़ की सीमा के लिए भी हानिकारक था।
• दुर्गादास राठौड़ अन्य राठौड़ सरदारों की सहायता से मारवाड़ के अजीतसिंह व उसके परिवार को मेवाड़ ले आये।
• मेवाडू महाराणा राजसिंह ने दुर्गादास राठौड़ को अजीतसिंह की परविश के लिए केलवा की जागीर दी तथा उनको सभी प्रकार से सहायता देने का बचन दिया।
• औरंगजेब ने राठौड़-सिसोदिया गठबंधन को तोड़ने के लिए मेवाड़ को घेरकर आक्रमण करने की योजना बनाई।
औरंगजेब ने 27 अक्टूबर 1679 ई. को तहब्बरों को मांडल व केन्द्रीय मेवाड़ के निकटस्थ भागों पर अधिकार करने भेजा उसने हसनअलीखां
शहजादे मुअखम व आजम को भी अपनी-2 सैनिक शक्ति के साथ शाही सेना में सम्मिलित होने को कहा।
• औरंगजेब ने शहजादा मुहम्मद अकबर को बड़ी सेना देकर राणा का पीछा करने भेजा।
• सकंटकालीन स्थिति का मुकाबला करने के लिए महाराणा राजसिंह ने अपने तथा मारवाड़ के राजपरिवार (अजीतसिंह) को सुदूर भोमट में नेणवाड़ा गांव में भेज दिया।
• औरंगजेब स्वयं 30 नवम्बर, 1679 ई. को अजमेर से मेवाड़ की ओर बढ़ा तथा 4 जनवरी 1680 ई. में देबारी पर अधिकार स्थापित कर लिया।
• देबारी से औरंगजेब उदयसागर की ओर चला इस दौरान उसने कई मंदिरों को तोड़ा।
मुगल सेना व राजपूत सेना के मध्य उदयपुर नगर में जगदीश मंदिर पर लड़ाई हुई परंतु महाराणा को पराजित नहीं कर सका।
• 12 मार्च 1680 ई. को मुगल सेना का नेतृत्व शहजादे अकबर को सुपुर्द कर औरंगजेब अजमेर लौट गया।
• औरंगजेब के अजमेर लौटते ही राजपूतों ने छापामार युद्ध शैली से मुगलों की स्थिति दयनिय कर दी।
• चितौड़ के मोर्चे पर 22 जून 1680 ई. को शाहजादा आजम की नियुक्ति हुई तथा शहजादा अकबर को मारवाड़ मेवाड़ सीमा क्षेत्र में भेजा गया।
• मुगलों को राज्य से बाहर करना राजपूतों के लिए चुनौती बना हुआ था। इस स्थिति में महाराणा राजसिंह तथा दुर्गादास ने शत्रुओं को निर्बल बनाने के लिए उनसे संधि वार्ता प्रारंभ की।
• राजसिंह ने प्रारंभ में शाहजादे मुअज्जम से संधि वार्ता की परंतु उसका यह पहला प्रयत्न असफल रहा।
• मुअज्जम से संधि करने में असफल होने पर राजसिंह व दुर्गादास ने राजकुमार अकबर को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया।
• राजकुमार अकबर महत्वकांक्षी व्यक्ति था राजपूतों ने अकबर को आश्वासन दिलाया की दिल्ली के सिंहासन को प्राप्त कराने के लिए वे उसकी सहायता करेंगे।
यह संधि वार्ता अपने अंतिम निर्णय पर पहुंचती इससे पूर्व ही 22 अक्टूबर 1680 ई. को राजसिंह की मृत्यु हो गई।
• महाराणा राजसिंह की मृत्यु हो जाने पर उसके पुत्र जयसिंह का कुरज गांव (सहाड़ा) में राज्याभिषेक हुआ।
राज सिंह की सांस्कृतिक उपलब्धियां
• राजसिंह ने अपनी प्रजा में सैनिक और नैतिक प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से ‘विजय कटकातु‘ की उपाधि धारण की।
• राजसिंह की पत्नी रामरसदे ने उदयपुर में जयाबाबड़ी/त्रिमुखा बावड़ी का निर्माण करवाया।
• राजसिंह के प्रतिनिधि दाऊजी महाराज दामोदरजी महाराज 1669-70 ई. में मथुरा से ‘श्रीनाथजी तथा द्वारिकाधीश’ की मूर्ति लाये।
• राजसिंह ने श्रीनाथजी को सिहाड़ (वर्तमान नाथद्वारा) तथा द्वारिकाधीश को कांकरोली (राजसमंद) में प्रतिष्ठित करवाया।
• राजसिंह ने उदयपुर में अम्बिका माता मंदिर भी बनवाया।
राजसमंद झील
• अकाल प्रबंधन के उद्देश्य से राजसिंह ने गोमती नदी के पानी को रोककर राजसमंद झील का निर्माण करवाया तथा इस झील के उत्तरी किनारे
नौ चौको नामक स्थान पर ‘राज प्रशस्ति’ नामक शिलालेख लगवाया।
• संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण राज प्रशस्ति की रचना ‘रणछोड़ भट्ट तैलंग’ ने की थी।
• यह प्रशस्ति 25 काले संगमरमर को शिलाओं पर खुदी हुई है इसे संसार का सबसे बड़ा शिलालेख माना जाता है।
• राजप्रशस्ति में मेवाड़ का प्रामाणिक इतिहास और ऐतिहासिक मुगल-मेवाड़ संधि (1615 ई.) का उल्लेख मिलता है।
• इस प्रशस्ति से मेवाड़ के शासकों की तकनीकी योग्यता की जानकारी भी मिलती है।
महाराणा प्रताप के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिए हमारी पोस्ट देखे click here
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