परीक्षा की द्रष्टि से अति महत्वपूर्ण तथ्य : कालीबंगा सभ्यता
॰ कालीबंगा की खोज अमलानंद घोष ने 1952 में घग्घर नदी के बाएँ तट पर (पीलीबंगा हनुमानगढ़) की। 1961 में बी.बी. लाल (बृजवासी लाल) तथा बी. के. थापर (बालकृष्ण थापर) द्वारा यहाँ उत्खनन कार्य करवाया गया। इसके पश्चात् एम.डी. खरे, जे.पी. जोशी, के.एम. श्रीवास्तव ने इस उत्खनन कार्य को आगे बढ़ाया।
1919 में एल.पी. टेस्सितौरी ने अपने इटली के संक्षिप्त प्रवास के दौरान सर जॉर्ज ग्रियर्सन को पत्र लिखकर कालीबंगा से मिली दो वस्तुओं की खोज के विषय में सूचित किया। कालीबंगा के संदर्भ में वैश्विक स्तर पर यह प्रथम जानकारी थी।
यह सभ्यता ताम्रपाषाण काल (कांस्ययुगीन) है जिसका काल 3000 ई.पू. 1900 ई.पू. है। यहाँ उत्खनन से प्राप्त प्रमाण के आधार पर अध्ययन दो कालों में किया जा सकता है-
(1) प्रारंभिक (प्रारंभिक) हड़प्पा काल लगभग (3000-2700 ईसा पूर्व)
(2) विकसित हड़प्पाकाल लगभग (2600-1900 ई.पू.)
कालीबंगा के उत्खनन से पाँच स्तर प्राप्त हुए है-
1. प्रथम दो स्तरो से प्राक् हड़प्पा सभ्यता के अवशेष
2. अंतिम तीन स्तरो से हड़प्पा सभ्यता के अवशेष
यह एक नगरीय (सिंधु या हड़प्पा सभ्यता का नगर) सभ्यता है जिसका नामकरण उत्खनन से प्राप्त काली चूड़ियों के कारण
(पंजाबी भाषा में बंगा का अर्थ चूड़ी) पड़ा।
दशरथ शर्मा ने इसे सिंधु घाटी साम्राज्य की तीसरी राजधानी बताया।
कच्ची ईटो से निर्मित मकान के कारण इसे दीन-हीन बस्ती कहा है।
सलीबंगा का नगर नियोजन
कालीबंगा सुव्यवस्थित नगर योजना के अनुसार बसा हुआ था। पाँच से साढ़े पाँच मीटर तक चौड़ी एवं समकोण पर काटती सड़कें, सड़कों के किनारे नालियाँ आदि इसके विकास की परिचायक थी।
कालीबंगा में मुख्य रूप से नगर योजना के दो टीले प्राप्त हुए हैं। इनमें एक पूर्वी टीला है जहाँ से साधारण बस्ती के साक्ष्य मिले हैं।
पश्चिमी टीले में दुर्ग है, जिसके चारों और सुरक्षा प्राचीर है।
दुर्ग (पश्चिमी टीला) दुर्ग क्षेत्र पूर्ववर्ती काल के अवशेषों पर बसा था जो समचतुर्भजाकार परकोटे से सुरक्षित था। दुर्ग के दक्षिणी आधे हिस्से में कच्ची ईंटों से निर्मित पाँच-छः बड़े चबूतरे मिले हैं। उनमें से कुछ धार्मिक अनुष्ठान हेतु प्रयुक्त होते थे। एक चबूतरे पर पंक्तिबद्ध सात अग्नि वेदिकाएँ, एक स्नान करने हेतु ईंटों का फर्श एवं कुओं मिला है। दुर्ग के उत्तरी भाग में अभिजात्य/पुजारी वर्ग के लोगों के आवास गृह थे।
निचला नगर (पूर्वी टीला ) – यह भी कच्ची ईंटों के प्राचीर से सुरक्षित था। 360 मी. x 240 मी. परकोटे के अन्दर गलियाँ उत्तर- दक्षिण एवं पूर्व-पश्चिम दिशा में जाल प्रतिरूप (Gririon) में अवस्थित थी। यहाँ से साधारण बस्ती के साक्ष्य मिले हैं।
भवन निर्माण – भवन प्राषः एक मंजिला व कच्ची ईंटों से निर्मित थे (इंट पकाने के भट्टे के अवशेष नहीं मिले) तथा प्रत्येक घर में एक आंगन होता था, जिसके दो या तीन तरफ आवासीय कक्ष होते थे। नगर के भवनों व सड़कों का नियोजन शतरंज पद्धति की भांति थी। भवन में छत्त पर जाने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी हुई हैं। भवन में प्रयुक्त ईंटों की माप दुर्ग में प्रयुक्त ईंटों के अनुरूप ही थी। फर्श और छतें मिट्टी की बनी थी। कुछ भवनों की फर्मों कच्ची ईंटों और छतें अलंकृत खरपैलो से भी बनी थी। इन भवनों की छतें लकड़ी की शहवीरों पर खपरैल डालकर बनाई गई हैं।
नाली निर्माण – घरों की सफाई का विशेष प्रबंध था। गन्दे पानी के निकासी के लिए पूरे मकान में लकड़ी व ईंटों की नालियाँ थी, जिनका पानी मकान के बाहर बने विशेष प्रकार के गड्ढ़ों में गिरता था। लकड़ी की नाली के अवशेष केवल कालीबंगा से ही प्राप्त हुए।
कालीबंगा सभ्यता से प्राप्त महत्त्वपूर्ण साक्ष्य
(1) प्राक् हड़प्पाकालीन साक्ष्य :
• दक्षिण-पूर्वी प्राचीर के बाहर दोहरे जुते हुए खेत के अवशेष। यह खेत रक्षा प्राचीर के बाहर दक्षिणी पूर्वी भाग में मिला है। (विश्व में जुते हुए खेत के प्राचीनतम प्रमाण)
खेत की जुत्ताई ग्रिड़ पैटर्न पर
दो प्रकार की फसलों को एक साथ उगाना (संभवत गेहूँ एवं जी)
भूकम्प आने के प्राचीनतम साक्ष्य
• मूण-पट्टिका पर उत्कीर्ण सींगयुक्त देवता की आकृति प्राप्त हुई।
बेलनाकार तंदूर
मिट्टी की मुहरे, नाप-तौल के पैमाने, काँच के मनके
गाड़ी के पहिए व खण्डित बैल की मूर्ति
• पशु-पक्षियों के स्वरूप वाले खिलौने
कालीबंगा सभ्यता से हड़प्पाकालीन साक्ष्य
शल्य चिकित्सा का प्राचीनतम प्रमाण- यहाँ से एक युगल शवाधान तथा अण्डाकार कब्रे भी प्राप्त हुई है, जिसमें बच्चे की खोपड़ी में 6 छिद्र किए जाने के प्रमाण है। इसके विश्लेषण से मस्तिष्क शोध की बीमारी का पता चलता है।
सैंधव लिपि- कालीबंगा की लिपि सिंधु लिपि के समान ही थी जिसे दायें से बायें लिखा जाता था। मिट्टी के बर्तनों एवं मुहरों पर लिपि के अवशेष मिलते हैं लेकिन इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका।
बेलनाकार मुहरें- कालीबंगा से मिट्टी से बनी सर्वाधिक मुहरें मिली हैं। यहाँ से प्राप्त मुहरें मेसोपोटामिया की मुहरों के समान है। कमरों में ऊपर की ओर छेद किए हुए किवाड़ व सिंध क्षेत्र के बाहर मुहर पर व्याघ्र का अंकन केवल कालीबंगा से प्राप्त होता है।
• अंत्येष्टि क्रिया विधि कालीबंगा में दुर्ग वाले टीले के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 300 मीटर की दूरी पर कब्रिस्तान स्थित था। यहाँ से शव विसर्जन के 37 प्रमाण मिले हैं। यहाँ तीन प्रकार की शवाधान विधियाँ (पूर्ण समाधीकरण, आंशिक समाधीकरण व दाह संस्कार) प्रचलित थी।
बर्तम- लाल रंग के मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं जिन पर काली और सफेद रंग की रेखाएँ अंकित हैं। यहाँ से प्राप्त मिट्टी के
बर्तन पतले और हल्के हैं जिनमें सुंदरता और सुडौलता का अभाव है।
मूर्तिकला – कालीबंगा से मिट्टी के वृषभ, कुत्ता, भेड़िया, चूहा, हाथी, पंख फैलाये बगुला व तीन मानवाकृतियाँ मिली हैं। यहाँ से प्राप्त मृण्मूर्तियों में सर्वाधिक उल्लेखनीय मूर्ति आक्रामक सांड की है। गैंडा, चीतल व कैंट की हड्डियाँ तथा हिरण के सींग
भी उत्खनन से प्राप्त हुए हैं परंतु कूबड़ वाले बैल की हड्डियाँ अधिक मिली हैं।
सात अग्निवेदिकाएँ यह आयताकार रूप में थी, जिसमें पशुओं की हड्डियाँ थी।
कालीबंगा के दोनों टीलों के चारों ओर सुरक्षा प्राचीर (दुर्गीकरण)
भूकम्प के प्राचीनतम साक्ष्य, खिलौना रेलगाड़ी
ताँबे से बने कृषि औजार, कूड़ा डालने के लिए मिट्टी के बर्तन, गाय के मुख के प्याले, ताँबे के बैल, कांस्य के दर्पण, हाथीदाँत का कंघा, काँच की मणियाँ, शतरंज व चौसर की गोटियाँ, चूड़ियाँ एवं कुल्हाड़ियाँ, पत्थर के सिलबट्टे, चाक निर्मित मृदभाण्ड, अलंकृत ईंटों का प्रयोग, टोंटीदार प्यालियाँ, चकमक पत्थर के लम्बे फल, चकमक पत्थर से निर्मित तौलने के बाट, शंख-वलय के आभूषण।
सभ्यता का पतन लगभग 1900 ई.पू.
स्मरणीय तथ्य : कालीबंगा सभ्यता
• कालीबंगा राजस्थान का पहला पुरातात्त्विक स्थल है जिसका स्वतंत्रता के बाद पहली बार उत्खनन किया गया।
कालीबंगा पुरातात्त्विक संग्रहालय की स्थापना 1986 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा की गई।
• कालीबंगा से मोहनजोदड़ो की भाँति लिंग, मातृशक्ति आदि की मूर्तियाँ नहीं मिली है जिससे यहाँ के लोगों के धार्मिक
भावना का पता नहीं चल पाया है।
पाकिस्तान में कोटदीजी नामक पुरातात्त्विक स्थल से प्राप्त अवशेष कालीबंगा के अवशेषों से काफी साम्यता रखते हैं।
• हरियाणा में राखीगढ़ी एवं गुजरात में धौलावीरा के बाद राजस्थान में कालीबंगा भारत का सबसे बड़ा पुरातात्त्विक स्थल है।
• कालीबंगा में मुख्यतः हड़प्पा संस्कृति के मुख्य केन्द्रों को अनाज, मनके तथा ताँबा भेजा जाता था।
बेलनाकार तंदूरों के साक्ष्य इस सभ्यता का संबंध ईरान व पश्चिम एशिया से होने का द्योतक है।
• कालीबंगा की नगर योजना सिंधु घाटी (हड़प्पा) नगर योजना के अनुरूप दिखाई देती है।
• कालीबंगा सभ्यता को सर्वप्रथम प्रकाश में लाने का श्रेय अमलानंद घोष (खोजकर्ता) को दिया जाता है।
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