वृद्धि और विकास की अवस्थाएं : MCQ

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं की प्र्श्नोतरी

25. निम्न में से कौन-सी पूर्व बाल्यावस्था की विशेषता नहीं है?

[आरटीईटी एल-I, 2011]

(A) दल/समूह में रहने की अवस्था

(B) अनुकरण करने की अवस्था

(C) प्रश्न करने की अवस्था

(D) खेलने की अवस्था (Play Age)

(D)

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

26. 6 से 10 वर्ष की अवस्था में बालक रुचि लेना प्रारम्भ करते हैं-

[आरटीईटी एल-I, 2011]

(A) धर्म में

(B) मानव शरीर में

(C) यौन सम्बन्धों में

(D) विद्यालय में

(D)

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

27. दल या गैंग का सदस्य होने से समाजीकरण उत्तर बाल्यावस्था में बेहतर होता है। कौन-सा कथन इस विचार के विपरीत है?

[आरटीईटी एल-I, 2012]

(A) वयस्कों पर निर्भर न होकर सीखता है

(B) जिम्मेदारियों को निभाना सीखता है

(C) अपने समूह के प्रति वफादार होना सीखता है

(D) छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करते हुये, अपने गैंग के सदस्यों से लड़ाई मोल लेता है।

(D)

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

28. इस अवस्था में बालकों में नयी खोज करने की और घूमने की प्रवृत्ति बहुत अधिक बढ़ जाती है:

[रीट एल-I, 2015]

(ए) शैशवावस्था

(B) उत्तर बाल्यकाल

(C) किशोरावस्था

(D) प्रौढ़ावस्था

(B)

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

29. निम्न में से कौन-सा कथन मिडिल स्कूल स्तर के विद्यार्थियों के विकास से सहमति नहीं रखता ?

[आरटीईटी एल-द्वितीय, 2012]

(A) सामाजिक व्यवहार उत्तरोत्तर समवयस्क समूह के आदर्शों से प्रभावित होता है

(B) इस अवस्था में अधिकांश बालक तीव्र गति से वृद्धि प्राप्त नहीं करते

(C) बौद्धिक एवं सामाजिक व्यवहार पर स्व-प्रभाविता का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है

(D) अधिकांश विद्यार्थी विशेष रूप से स्वकेन्द्रित हो जाते हैं।

(B)

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

30. निम्न में से कौन-सा विकासात्मक कार्य उत्तर बाल्यावस्था के उपयुक्त नहीं है?

[आरटीईटी एल-I, 2011]

(A) सामान्य खेलों के लिये आवश्यक शारीरिक कुशलताएँ सीखना

(B) पुरुषोचित या स्त्रियोचित सामाजिक भूमिकाओं को प्राप्त करना

(C) वैयक्तिक आत्मनिर्भरता प्राप्त करना

(D) अपने हमउम्र बालकों के साथ रहना सीखना।

(B)

व्याख्या : (प्रश्न 26 से 30)

उत्तर बाल्यावस्था की सामान्य विशेषताएँ (Later Childhood):

1. टोली/दल अवस्था व विद्यालयी अवस्था (Gang Age & School Age)

2. खेलने की अवस्था (Play Age)

3. माता-पिता के दृष्टिकोण से उत्पाती अवस्था (Troublesome Age)

4. गंदी अवस्था (Dirty Age)

5. इस अवस्था में उपलब्धि अभिप्रेरक निर्मित होता है अतः कुछ मनोवैज्ञानिक इसे नाजुक अवस्था भी मानते हैं।

6. कामोत्तेजन की दृष्टि से यह सुप्त अवस्था है।

7. संग्रहकरण की प्रवृति (डाक टिकट, कंचे आदि)

8. बालक में नयी खोज करने व निरुद्देश्य घूमने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है

9. बालक में आत्मनिर्भरता की भावना का विकास होने लगता है जिससे वह व्यक्तिगत कार्य स्वयं करना शुरू कर देता है और जिम्मेदारी को निभाना सीखता है

10. बालक का स्वभाव बहिर्मुखी हो जाता है

11. बालक अपने समूह के सदस्यों के प्रति वफादार होना सीखता है व उनके लिए दूसरों से लड़ाई मोल ले लेता है

12. बालक समूह में साथियों के साथ खेलना पसंद करते है और खेल के नियमों का भी पालन करते है

13. पुरुषोचित या स्त्रियोचित सामाजिक भूमिकाओं का न प्राप्त कर ऐसे सामाजिक गुणों का विकास जो अपने समूह के सदस्यों के साथ विकसित (सहयोग, सद्भावना, सहनशीलता, आज्ञाकारिता आदि)

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

31. किस अवस्था में व्यक्ति में वीरपूजा का भाव उदय होता है-

(ए) शैशवावस्था

(B) पूर्व बाल्यावस्था

(सी) बचपन के बाद

(डी) किशोरावस्था

(D)

32. विकास की किस अवस्था में एक व्यक्ति व्यावसायिक समायोजन की समस्या का सामना करता है?

[रीट एल-I, 2021]

(A) वृद्धावस्था

(बी) किशोरावस्था

(C) बाल्यावस्था

(D) शिशु अवस्था

(B)

33. किशोरावस्था के दौरान विकासात्मक परिवर्तनों के फलस्वरूप होने वाली एक मुख्य समस्या है? [ REET L-II, (16 Oct.) 2021]

(A) अभिप्रेरणा की कमी

(B) सहयोग की कमी

(C) अभिरुचि की कमी

(D) समायोजन की कमी

(D)

व्याख्या : (प्रश्न 31 से 33)

किशोरावस्था की सामान्य विशेषताएँ (Adolescence):

1. संघर्ष, तनाव, तूफान एवं विरोध की अवस्था

2. विकास की चरमावस्था, आदर्शवाद का भाव

3. बालक का मन अत्यधिक अशांत होता है

4. इस अवस्था में बालक के अंदर अपनी पहचान बनाने को लेकर संकट उत्पन्न होता है। एरिक एरिक्सन ने इसे अहम विशिष्टता की समस्या कहा है (Identity Crisis)

5. बालक का सामाजिक व्यवहार अपने समवयस्क समूह के आदर्शों से प्रभावित होता है

6. व्यवस्था के प्रति विद्रोह की भावना

7. सक्रिय खेल खेलना अधिक पसंद

8. इस अवस्था में बालक विशेष रूप से स्वकेन्द्रित हो जाते है।

9. इस अवस्था में बालक अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने में अधिक रुचि दिखाना प्रारंभ कर देते है

10. संवेगात्मक दृष्टिकोण से बहुत अधिक चंचल और अस्थिरता।

11. नायक पूजा की भावना का उदय । (Hero Worship)

12. विरोधी मानसिक दशाएँ देखने को मिलती हैं।

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

34. एक नवजात शिशु कब यह बताने में सक्षम होता है कि ध्वनि किस दिशा से आ रही है?

(A) 1 सप्ताह

(B) 2 सप्ताह

(सी) 3 सप्ताह

(D) 1 माह

(A)

व्याख्या :

जीवन के प्रथम सप्ताह में शिशु यह बताने में सक्षम होते हैं कि ध्वनि किस दिशा से आ रही है। वह अन्य स्त्रियों की आवाज व अपनी माँ की आवाज़ में अंतर कर सकते हैं।

वे जन्म के मात्र कुछ घण्टों बाद ही अपनी माँ की आवाज को पहचान सकते हैं।

वे सामान्य हाव-भाव का अनुकरण कर सकते हैं। जैसे जीभ बाहर निकालना, मुँह खोलना आदि।

35. निम्नलिखित में से असत्य कथन ज्ञात कीजिये –

(A) नवजात शिशु में पाये जाने वाले सभी प्रतिवर्त जीवनपर्यंत बने रहते हैं।

(B) प्रतिवर्ष शिशु के बाद के पेशीय विकास हेतु आधारभूत इकाइयाँ हैं।

(C) जन्म के मात्र कुछ घण्टों बाद ही शिशु अपनी माँ की आवाज़ को पहचान सकते हैं।

(D) प्रौढ़ की तुलना में नवजात शिशु की दृष्टि कम होती है।

(A)

व्याख्या :

प्रतिवर्त (Reflexes): प्राणी की उद्दीपकों के प्रति स्वचालित

एवं स्वाभाविक रूप से विद्यमान अनुक्रियाएँ प्रतिवर्त कहलाती हैं। नवजात शिशुओं को सीखने के अवसर मिलने के पहले प्रतिवर्त अनुकूली तंत्र के रूप मे कार्य करते हैं।

नवजात शिशुओं में पाये जाने वाले कुछ प्रतिवर्त; जैसे :- खाँसना, पलक झपकाना तथा जम्हाई लेना, जीवनपर्यन्त बने रहते हैं। कुछ दूसरे प्रतिवर्त मस्तिष्क की कार्यप्रणाली के परिपक्व होने तथा व्यवहार पर ऐच्छिक नियंत्रण के विकसित हो जाने पर विलुप्त हो जाते हैं। नवजात शिशु की दृष्टि बहुत कमजोर होती है। 6 माह तक इसमें सुधार होता है और 1 वर्ष की उम्र तक यह प्रौढ़ों के समान हो जाती है। वे लाल और सफेद रंग के मध्य विभेदन करने में सक्षम हो सकते हैं परन्तु सामान्यता वे रंग विभेदन में अपूर्ण होते हैं एवं पूर्ण रंग दृष्टि 3 माह की आयु तक विकसित होती है।

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं mcq

36. यदि तीव्र शोर हो तो बालक अपनी कमर मोड़ते हुए भुजा को आगे की ओर फेंकता है और फिर अपनी भुजा को एक साथ लाता है जैसे कुछ पकड़ रहा हो। शिशु में पाया जाने वाला यह प्रतिवर्त कहलाता है।

(A) रूटिंग

(B) मोरो

(सी) बबिंस्की

(D) ग्रास्पिंग

(बी)

व्याख्या :

नवजात शिशुओं में उपस्थित कुछ मुख्य प्रतिवर्त

प्रतिवर्त

विवरण

विकासात्मक क्रम

रूटिंग

गाल को छूने पर सिर को घुमाना एवं मुख खोलना।

3 से 6 माह में विलुप्त हो जाते हैं।

मोरो

यदि तीव्र शोर होता है तो बच्चा अपनी कमर को मोड़ते हुए भुजा को आगे की ओर फेंकता है और फिर अपनी भुजाओं को एक साथ लाता है जैसे कुछ पकड़ रहा हो।

6 से 7 माह में विलुप्त हो जाते हैं (यद्यपि तीव्र शोर के प्रति अनुक्रिया स्थायी होती है)।

ग्राम्पिंग

बच्चे की हथेली को यदि उँगली अथवा किसी अन्य वस्तु से दबाया जाता है तो बच्चे की उँगलियाँ उसके इर्द-गिर्द लिपट जाती हैं।

3 से 4 माह में विलुप्त हो जाते है। ऐच्छिक पकड़ से विस्थापित हो जाते हैं।

बबिंस्की

यदि बच्चे के पैर के तलवे को ठोका जाता है तो पैर की उँगलियाँ ऊपर की ओर जाती हैं और फिर आगे की ओर मुड़ जाती हैं।

8 से 12 माह में विलुप्त हो जाते हैं।

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

37. किस आयु तक बच्चा अपनी अनुपस्थिति में आंशिक रूप से छिपाई गई वस्तुओं का पीछा करना शुरु कर देता है?

(A) 6 माह

(B) 8 माह

(C) 12 माह

(D) 15 माह

(बी)

व्याख्या :

8 माह की आयु तक बालक में यह भाव धीरे-धीरे विकसित होने शुरू हो जाते हैं कि वस्तु का प्रत्यक्षण ना हो तक भी उसका अस्तित्व रहता है। वस्तु स्थायित्व का यह भाव पूर्ण रूप से संवेदीगामक अवस्था के अंतिम चरण (18 से 24 माह) में विकसित होता है, इसके बारे में हम पियाजे के संज्ञानात्मक विकास खण्ड में विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे। शिशुओं में वाचिक सम्प्रेषण का आधार उपस्थित रहता है। 3-6 माह की आयु के बीच बलबलाने से स्वरीकरण का प्रारम्भ होता है।

38. एक बालक में आसक्ति के विकास के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण समय होता है?

(A) 1 वर्ष

(B) 6 माह

(C) 2 वर्ष

(D) 15 माह

(ए)

व्याख्या :

शिशु एवं उसके माता-पिता (पालनकर्ता) के बीच स्नेह का जो सांवेगिक बंधन विकसित होता है उसे आसक्ति (Attachment) कहते हैं। हार्लो व हार्लो (1962) ने एक अध्ययन द्वारा बंदर के बच्चों पर प्रयोग कर इसकी पुष्टि की। अध्ययन द्वारा यह ज्ञात हुआ कि आसक्ति अथवा लगाव के लिए पौष्टिकता एंव आहार प्रदान करना महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि सम्पर्क सुख महत्त्वपूर्ण होता है। एरिक एरिक्सन (1968) के अनुसार जीवन का प्रथम वर्ष आसक्ति के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। यह विश्वास बनाम अविश्वास की विकास की अवस्था को निरूपित करता है। इसके बारे में हम एरिक्सन के मनोसामाजिक विकास खण्ड में विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे।

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

39. निम्नलिखित कथनों में से सत्य कथन ज्ञात कीजिये-

(A) शैशवावस्था की तुलना में पूर्व बाल्यावस्था में संवृद्धि मंद हो जाती है।

(B) शरीर के किसी अंग की तुलना में मस्तिष्क और सिर तेजी से विकसित होता है।

(C) पूर्व बाल्यावस्था में बालक के बाएँ अथवा दाएँ हाथ के लिये वरीयता का भी विकास होता है।

(D) उपर्युक्त सभी

(D)

व्याख्या :

पूर्व बाल्यावस्था में बालक शारीरिक रूप से विकसित होता है। उसकी ऊँचाई व वजन में वृद्धि होती है। सामाजिक रूप से बच्चे का संसार विस्तृत हो जाता है। उसमें अच्छे बुरे की अवधारणा भी विकसित हो जाती है। बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं वे पतले दिखते हैं क्योंकि उनके धड़ की लम्बाई बढ़ती है और शरीर में वसा की मात्रा घटती है।

पूर्व बाल्यावस्था में उँगलियों की निपुणता व नेत्र-हस्त समन्वय में अधिक सुधार होता है।

40. अंग्रेजी के शब्द ‘एडोलसेंस’ मूलतः किस भाषा के शब्द से व्युत्पन्न है-

(A) लैटिन

(C) फ्रेंच

(B) जर्मन

(D) इनमें से कोई नहीं

(ए)

व्याख्या :

एडोलसेंस (Adolescence) लैटिन भाषा के शब्द एडोलसियर से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ है परिपक्व रूप में विकसित होना। यह व्यक्ति के जीवन में बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के मध्य का संक्रमण काल है।

41. काल्पनिक श्रोता एवं व्यक्तिगत दंतकथा किशोरावस्था की किस विशेषता से संबंधित है?

(A) परिकल्पित निगमनात्मक चिंतन

(B) वैचारिक आदर्शवाद

(सी) अमूर्त सोच

(डी) अहंकेंद्रितवाद

(डी)

व्याख्या :

अहंकेन्द्रवाद व्यक्ति की एक अवस्थाजन्य विशेषता है जिसके अन्तर्गत वह अपने मत और दृष्टिकोण को ही महत्त्व देता है। दूसरों के मत को नहीं समझ पाता है। यह मुख्यतः पूर्व बाल्यावस्था (पूर्व संक्रियात्मक अवस्था) व किशोरावस्था में परिलक्षित होता है।
किशोरों में एक विशिष्ट प्रकार का अहंकेन्द्रवाद विकसित होता है।
डेविड एलकाईंड (David Elkind) के अनुसार काल्पनिक श्रोता (Imaginary Audience) एवं व्यक्तिगत दंतकथा (Personal Fable) किशोरों के अहंकेन्द्रवाद के दो घटक हैं।

काल्पनिक श्रोता किशोरों का एक विश्वास है कि दूसरे लोग भी उनके प्रति उतने ही ध्यानाकर्षित हैं जितने की वे स्वयं । उन्हें लगता कि लोग हमेशा उन्हीं के बारे में सोच रहे हैं और उन्हीं पर ध्यान दे रहे हैं।

व्यक्तिगत दंतकथा के अंतर्गत उन्हें स्वयं के अद्वितीय होने का बोध होता और लगता है कि उन्हें कोई नहीं समझ सकता।

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

42. वय सन्धि काल में निम्न में से कौन बाह्य अभिव्यक्ति नहीं है-

[आरटीईटी एल-2, 2012]

(A) प्रभुता/सत्ता के विपरीत विरोध

(बी)अशांति

(C) आत्मनिर्भरता के प्रति आग्रही

(D) सक्रिय खेलों के बजाय बैठे रह कर खेलना अधिक पसंद

(D)

43. विकास एक अधिनियम है कि विकास प्रतिमान के विभिन्न काल में खुशी भिन्न-भिन्न होती है। इस अधिनियम के अनुसार-

[आरटीईटी एल-2, 2012]

(A) जीवन का प्रथम वर्ष सबसे अधिक खुशी का काल होता है।

(B) वयः सन्धि काल एवं जीवन का प्रथम वर्ष भी जीवन का सबसे अधिक खुशी का काल होता है।

(C) वयः सन्धि काल जीवन का सबसे अधिक दुःखी काल होता है।

(D) जीवन का प्रथम वर्ष सबसे अधिक खुशी एवं वय संधि काल सबसे अधिक दुःखी काल होता है।

(डी)

परिभाषा : (प्रश्न 42-43)

वयः सन्धि से अभिप्राय है दो अवस्थाओं के मध्य संक्रमण का काल । मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह किशोरावस्था का पूर्वाद्ध है जहाँ व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक विकास के संक्रमण से गुजरता है। अतः इस अवस्था की अवस्थागत विशेषताएँ किशोरावस्था के समानान्तर होगी, जिसमें आत्म निर्भरता, मित्रों के साथ सक्रिय रूप से खेलना, समवयस्कों द्वारा अनुमोदन आदि प्रमुख हैं।

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं पार्ट 2

44. शारीरिक विकास का क्षेत्र है

[रीट एल-I, 2015]

(ए) मायोकार्डियम

(B) माँसपेशियों की वृद्धि

(C) एंडोक्राइन ग्लैण्ड्स

(D) उपरोक्त सभी

(डी)

45. विकास को प्रायः कौन-कौनसे क्षेत्रों की अंतःक्रिया प्रभावित करती है-

(A) जैविक

(B) संज्ञानात्मक

(C) समाज सांवेगिक

(D) उपर्युक्त सभी

(डी)

46. बच्चे के विकास को अक्सर शारीरिक, संज्ञानात्मक, भावनात्मक और सामाजिक जैसे तीन व्यापक क्षेत्र में विभाजित किया जाता है। विकास प्रक्रिया इन क्षेत्रों में कहाँ तक सम्बन्धित है?

[रीट एल-I, 2017]

(A) अन्य को प्रभावित किए बिना स्वतंत्र रूप से विकसित

(B) एक एकीकृत और समग्र प्रकार में विकसित

(C) आंशिक रूप से विकसित

(D) बेतरतीब ढंग से विकसित

(बी)

वृद्धि और विकास की अवस्थाएं :

47. एक बालक सामाजिक रूप से पूर्णतः विकसित माना जायेगा, यदि वह-

[रीट एल-II, (16 अक्टूबर) 2021]

(A) अपने परिवार के सदस्यों के साथ स्वस्थ संबंध नहीं रखता/ रखती है।

(B) अपने साथियों के बीच लोकप्रिय नहीं है।

(C) समाज में विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के साथ किस प्रकार व्यवहार करना चाहिये जानता हो/जानती हो।

(D) वह अपना अधिकांश समय कम्प्यूटर के साथ व्यतीत करता है/ करती है।

(सी)

48. मानसिक विकास का सम्बन्ध नहीं है? [REET L-II, (16 Oct) 2021]

(A) स्मृति का विकास से

(बी) तर्क और निर्णय द्वारा

(C) अवबोध की क्षमता से

(D) शिक्षार्थी के वजन एवं ऊँचाई से

(डी)

परिभाषा : (प्रश्न 44-48) वृद्धि और विकास की अवस्थाएं

बालक का विकास कई परस्पर जुड़े हुए आयामों/क्षेत्र के अनुसार चलता रहता है यह आयाम एक-दूसरे को प्रभावित करते हुए समग्रता / सर्वांगीणता का प्रत्यय धारण करते हैं।

बालक के विकास को मुख्यतः तीन व्यापक आयामों में विभाजित किया जा सकता है।

1. शारीरिक विकास :

इसमें बालक के विकास के दौरान होने वाले शारीरिक परिवर्तनों को समाहित किया जाता है यथा

(a) बालक का आकार एवं वजन

(b) बालक की ऊँचाई

(सी) मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र का विकास

(d) अंगों के संचालन का कौशल अर्थात मांसपेशियों तथा गामक तंत्र का विकास

(e) अंतःस्रावी ग्रंथियों का विकास

2. संज्ञानात्मक विकास :

संज्ञानात्मक विकास के अंतर्गत बालक की समस्त मानसिक योग्यताएँ और शक्तियाँ समाहित होती हैं। अर्थात संज्ञान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें संवेदन, प्रत्यक्षण, प्रतिमा, धारणा, समस्या समाधान, चिंतन, तर्कना जैसी मानसिक प्रक्रियाएँ शामिल होती है।

कविता याद करना, गणित के सवाल हल करना, कल्पना करना, चिंतन करना या शिशु द्वारा दो शब्दो को जोड़कर छोटे वाक्य बनाना। ये सभी संज्ञानात्मक प्रक्रियाएँ है।

3. सामाजिक-भावात्मक विकास :

इसके अन्तर्गत बालक स्वयं के माता-पिता, साथी बालकों अर्थात दूसरों के साथ संबंधों में होने वाले परिवर्तन, भावनाओं के परिवर्तन और व्यक्तित्व में होने वाले बदलाव आते हैं।

जैसे किसी बच्चे का खेल में अपने साथी से झगड़ा करना, किसी साथी पर अपना अधिकार जताना या किसी किशोरी में किसी मांगलिक आयोजन के प्रति छलकता उल्लास, ये सभी इस प्रकार के विकास के परिचायक है।

नोट : – शारीरिक, संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास प्रक्रियाएँ आपस में रस्सी के सूत्रों जैसी बारीकी से गुथी हुई होती हैं।

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