राव चंद्रसेन राठोड़ : परिचय
• जोधपुर राज्य की ख्यात के अनुसार चन्द्रसेन का जन्म 1541 ई. में हुआ।
॰ मालदेव अपने ज्येष्ठ पुत्र राम से नाराज था जबकि उससे छोटे पुत्र उदयसिंह को पटरानी स्वरूपदे (चंद्रसेन की माँ) ने राज्याधिकार से वंचित करवा दिया। इस कारण मालदेव की मृत्यु के बाद उसकी इच्छानुसार 31 दिसम्बर, 1562 ई. को चन्द्रसेन जोधपुर का शासक बना।
• मालदेव के शासनकाल में चन्द्रसेन को बीसलपुर और सिवाना की जागीर मिली हुई थी। आंतरिक विद्रोह का दमनः- चन्द्रसेन द्वारा चाकर की हत्या करने से नाराज सरदारों (जैतमाल, पृथ्वीराज प्रमुख) ने चन्द्रसेन से बदला लेने हेतु उसके भाई राम, उदयसिंह व रायमल के साथ गठबंधन किया। राम ने सोजत, रायमल ने दूनाड़ा व उदयसिंह ने गांगाणी व बावड़ी पर अधिकार कर लिया। उदयसिंह ने लोहावट के युद्ध में चन्द्रसेन से संघर्ष किया।
1563 में उदयसिंह व चन्द्रसेन में नाडोल में पुनः संघर्ष हुआ परन्तु विजय की उम्मीद ना देखकर राम 1564 को बादशाह अकबर के पास चला गया।
राव चंद्रसेन राठोड़ के राज में जोधपुर पर मुगलों का अधिकार :
राव चन्द्रसेन के नाराज भाइयों राम, उदयसिंह व रायमल के साथ आपसी कलह के कारण अकबर को हस्तक्षेप करने का मौका मिल गया।
अकबर ने हुसैनकुली खां की अध्यक्षता में सेनी भेजी, जिसने 1564 ई. को जोधपुर पर अधिकार कर लिया।
जोधपुर की ख्यात में मुगल अभियान का अतिरंजित वर्णन करते हुए कहा गया है कि शाही सेना ने जोधपुर पर तीन बार हमला किया लगभग दस माह घेरेबंदी के बाद चन्द्रसेन अन्न-जल की कमी के कारण गढ़ का परित्याग कर भाद्राजूण चला गया।
पं. विश्वेश्वरनाथ रेक ने अकबर द्वारा जोधपुर पर किए आक्रमण का प्रमुख कारण मालदेव द्वारा हुमायूँ के प्रति किए असहयोग को माना है।
पं. विश्वेश्वरनाथ रेऊ ने चन्द्रसेन की तुलना महाराणा प्रताप से की है।
नागौर दरबार व राव चंद्रसेन राठोड़
1570 ई. में अकबर ने अपनी अजमेर यात्रा के दौरान मारवाड़ में पड़े अकाल निवारणार्थ नागौर पहुँचकर अपने सैनिकों से तालाब खुदवाया जो ‘शुक्र तालाब’ कहलाता है।
• इस दरवार का वास्तविक उद्देश्य मारवाड़ की राजनीतिक स्थिति का अध्ययन करना था।
नागौर दरबार में चन्द्रसेन भी जोधपुर प्राप्ति की आशा से सम्मिलित हुआ मगर अकबर का चन्द्रसेन के भाइयों राम और उदयसिंह की ओर झुकाव देखकर वह नागौर दरबार से लौट आया।
राव चंद्रसेन राठोड़ के खिलाफ मुगल अभियान :
नागौर दरबार से लौट कर चन्द्रसेन ने भाद्राजूण में सेना को संगठित किया।
नागौर दरबार के बाद मुगल सेना ने भाद्राजुण पर आक्रमण कर दिया। फरवरी, 1571 को चन्द्रसेन भाद्राजूण छोड़कर सिवाना चला गया। 1572 में गुजरात के विद्रोह व राणा प्रताप के आक्रमण का खतरा देखते हुए अकबर ने बीकानेर के रायसिंह को जोधपुर का शासक (प्रशासक) बनाकर गुजरात की तरफ भेजा ताकि प्रताप गुजरात के मार्ग को रोककर हानि नहीं पहुँचा सके।
1573 ई. में अकबर ने चन्द्रसेन को अपने अधीन करने हेतु शाहकुली खाँ के साथ जगतसिंह, केशवदास मेड़तिया व बीकानेर के रायसिंह को भेजा। यह सेना सोजत में चन्द्रसेन के भतीजे कल्ला को पराजित कर सिवाना पहुँची।
चन्द्रसेन स्थिना किले का भार पत्ता राठौड़ को सौंपकर पहाड़ों में चला गया तथा वहीं से सिवाना किले को घेरने वाली मुगल सेना के पाश्वों पर छापामार पद्धति से आक्रमण करने लगा।
• पत्ता राठौड़ प. चन्द्रसेन के सम्मिलित सफल प्रतिरोध के कारण रामसिंह ने अकबर से अतिरिक्त सैन्य सहायता मांगी जिस पर अकबर द्वारा एक बड़ी सेना भेजने पर चन्द्रसेन पहाड़ों में चला गया, मुगल सेना ने चन्द्रसेन का पीछा किया परन्तु पकड़ने में असफल रहे।
चन्द्रसेन की अधीन करने के लिए 1575 ई. में जलाल खां के नेतृत्व में सिवाना की तरफ अकबर ने बड़ी सेना फिर से भेजी जिसमें सैय्यद अहमद, सैय्यद हाशिम, शिमाल खां आदि शामिल थे। इस सेना पर चन्द्रसेन ने अवसर पा कर देवीदास के साथ मिलकर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में जलाल खां मारा गया।
अकबर ने शाहबाज खां को भेजा। शाहबाज खां ने देवकोर और दुनाड़ा पर अधिकार कर सिवाना को घेर लिया। खाद्य सामग्री समाप्त होने पर सिवाना के दुर्ग रक्षक को किला छोड़ना पड़ा तथा 1575 ई. में सिवाना दुर्ग पर अकबर का अधिकार हो गया।
चन्द्रसेन सिवाना से पीपलोद तथा वहाँ से कापूजा के पहाड़ों में चला गया।
चन्द्रसेन के सहयोगी रावल सुखराज, सूजा, सोजत का कल्ला, पत्ता राठौड़ (सिवाना) तथा देवीदास थे।
संकटकालीन राजधानी सिवाना हाथ से निकलने के चन्द्रसेन के अन्य महत्त्वपूर्ण ठिकाने पोकरण पर अक्टूबर 1575 ई. में जैसलमेर के रावल हरराय ने आक्रमण कर दिया। पोकरण में चन्द्रसेन का फिलेदार आनन्दराम पंचोली था। चार माह की घेरे बंदी के बाद चन्द्रसेन ने एक लाख फदिये (मुद्रा का एक प्रकार) के बदले पोकरण जनवरी, 1576 को भाटी रावल हरराय को दे दिया।
• अंदिम आश्रयस्थल पोकरण भी हाथ से निकल जाने के बाद चंद्रसेन की आर्थिक स्थिति विकट हो गई उसने आस-पास के क्षेत्रों में लूट खसीट आरंभ कर दी। इस नीति से मारवाड़ के लोग चन्द्रसेन से अप्रसन्न हो गये।
• ऐसी स्थिति में चन्द्रसेन ने मारवाड़ छोड़कर सिरोही, डूंगरपुर और बाँसवाड़ा में शरण ले ली।
• डेढ़-दो वर्ष बाद 1579 ई. में चन्द्रसेन ने सरवाड़ के मुगल थाने को लूटकर अपने अधिकार में ले लिया बाद में उसने अजमेर पर भी धावे मारने शुरू कर दिये।
• उपरोक्त समाचार मिलने पर अकबर ने पार्यदा मोहम्मद खां के नेतृत्व में सेना भेजी 1580 ई. में चंद्रसेन ने इस सेना का सामना किया परन्तु असफल होकर पुनः पहाड़ों में लौटना पड़ा।
कुछ दिनों बाद चन्द्रसेन ने सेना को पुनः संगठित कर 7 जुलाई 1580 को सोजत पर हमला कर दिया। सोजत पर अधिकार कर उसने सारण के पर्वतों में अपना निवास स्थापित कर लिया।
11 जनवरी, 1581 ई. को चन्द्रसेन की मृत्यु हो गई।
• जोधपुर को ख्यात के अनुसार चन्द्रसेन के सामंत वैरसल ने विश्वासघात कर भोजन में जहर दे दिया जिससे चन्द्रसेन की मृत्यु हो गई।
राव चंद्रसेन राठोड़ के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य-
• राष चन्द्रसेन अकबरकालीन राजस्थान का प्रथम स्वतन्त्र प्रकृति का शासक था।
• चंद्रसेन द्वारा की गई संघर्ष की शुरुआत की प्रताप ने जारी रखा इसी कारण चन्द्रसेन को “प्रताप का अग्रगामी” तथा “मारवाड़ का प्रताप” फड़ा जाता है।
• इतिहास में समुचित महत्व न मिलने के कारण चन्द्रसेन को “मारवाड़ का भूला बिसरा नायक” कहा जाता है।
चन्द्रसेन पहला राजपूत शासक था जिसने अपनी रणनीति में किलों के स्थान पर पहाड़ों व जंगलों को प्राथमिकता दी।
जोधपुर राज्य 1581 से 1583 तक खालसख (मुगल सम्राट के नियंत्रण में) प्रदेश रहा।
चन्द्रसेन की मृत्यु के बाद मारवाड़ को गद्दी पर उसके भाई उदयसिंह का अधिकार हो गया।
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