राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज : परिचय :-
प्रत्येक देश व समाज की उन्नति और अवनति बहुत कुछ उसकी प्रथाओं और रीति रिवाजों पर निर्भर होती है। इन पर विचार करने से केवल देश या समाज की पूर्व दशा का अनुमान ही नहीं किया जा सकता है अपितु यह भी पता चला सकता है कि उसका भविष्य क्या होगा? यही कारण है कि हमारे सांस्कृतिक राजस्थान में प्राचीनकाल से ही रीति रिवाजों का प्रचलन रहा है।
राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज का अभिप्राय :-
• रीति रिवाजों से अभिप्राय उन कर्तव्यों और कार्यों से है जिनका विशेष अवसरों पर करना प्रत्येक समाज व जाति परम्परा के लिहाज से आवश्यक समझा जाता है और जिन्होंने इसी कारण से एक खास रूप व नाम ग्रहण कर लिया है।
रीति रिवाजों का वर्गीकरण :-
• हमारे मूलभूत रिवाज प्राचीन वैदिक समाज की देन है जहाँ से इनकी परम्परा का शिलान्यास हुआ है। राजस्थान के रीति रिवाजों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है –
राजस्थान के रीति रिवाज
- प्राचीन रीति रिवाज
2. विवाह संबंधी रीति रिवाज
3. अन्य विशेष रीति रिवाज
4. जन्म रीति रिवाज
5. गमी संबंधी रीति रिवाज
राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज : प्राचीन रितिरिवाज
• प्राचीन काल के वैदिक पद्धति से निर्धारित रीति रिवाजों को ही संस्कार के नाम से जाना गया है। वे सोलह संस्कार निम्न प्रकार हैं
1. गर्भाधान संस्कार – यह सबसे पहला सबसे संस्कार है। विधिनुसार संतानोत्पत्ति के लिए पति द्वारा पत्नी के गर्भ में जीव की निष्पत्ति की जाती है।
2. पुंसवन संस्कार – निषेचन के उपरान्त बढ़ते हुए भ्रूण की स्वस्थ वृद्धि के लिए दूसरे या तीसरे माह में यह संस्कार होता है।
3. सीमन्तोन्नयन संस्कार गर्भस्थ शिशु के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की यह द्वितीय जाँच का संस्कार है, जो छठे या आठवें मास में होता है।
4. जात कर्म संस्कार जन्म के उपरान्त नाल काटने तथा पिता द्वारा शिशु के स्वस्थ एवं मेधावी होने की प्रार्थना करने का संस्कार।
5. नामकरण संस्कार आठ या दस दिन का होने पर जन्म समय के ग्रहादि की स्थिति के अनुसार शिशु का गुणवाचक नाम रखने का संस्कार ।
6. निष्क्रमण संस्कार जन्म के चौथे महिने में पिता बच्चे को जच्चा गृह से बाहर लाता है ताकि वह सूर्य दर्शन करे एक बाह्य वातावरण के अनुकूल हो सके।
7. अन्न प्राशन संस्कार जन्म के छठे मास में उसे माँ के दूध के साथ अन्न का आहार देना प्रारम्भ करते हैं।
8. चूड़ाकर्म संस्कार – लगभग एक वर्ष की आयु होने पर जन्म के समय के बालों का प्रथम मुण्डन किया जाता है।
9. कर्णवेध संस्कार – आंत्रवृद्धि आदि रोगों के निवारणार्थ एक्यूपंक्चर चिकित्सा का यह संस्कार है, जिसमें कानों का छेदन कर रजत या स्वर्णाभूषण पहनाते हैं।
10. विद्यारम्भ संस्कार – गुरुकुल में जाकर शिक्षा प्रारम्भ करने का संस्कार।
11. उपनयन संस्कार – इसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहते हैं। विद्याध्ययन आरम्भ की योग्यता तथा आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश के द्वार रुप यह संस्कार है। यज्ञोपवीत में तीन धागे पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण के स्मरण चिह्न हैं।
12. समावर्तन संस्कार – अध्ययन तथा ब्रह्मचर्याश्रम का समय पूरा होने के बाद गृहस्थ बनने से पूर्व होने वाला दीक्षान्त समारोह।
13. विवाह संस्कार – हिन्दू धर्म में विवाह अनुबंध या समझौता न होकर संस्कार है। गृहस्थ के कर्त्तव्यों के पालन की शपथ लेना है।
14. वानप्रस्थ संस्कार – गृहस्थ के कर्त्तव्य पूरे करने के पश्चात् समाज सेवा के कार्य की दीक्षा लेना।
15. सन्यास संस्कार – जीवन के अंतिम काल में चिंतन, मनन और लोक कल्याण के लिए जीते हुए सन्यास ग्रहण करते समय किया जाने वाला संस्कार।
16. अन्त्येष्टि संस्कार – सांसारिक जीवन का अवसान मृत्यु में और संस्कारों की समाप्ति विधि-विधान से देह को अग्नि को समर्पित करने के अन्त्येष्टी संस्कार में होती है।
राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज : जन्म संबंधी रीतिरिवाज
गर्भाधान – नव विवाहित स्त्री के गर्भवती होने की जानकारी मिलते ही उत्सव का आयोजन होता है तथा मांगलिक गीत गाये जाते है।
• जन्म – यदि घर में लड़के का जन्म होता है तब घर की महिलाओं द्वारा काँसे की थाली बजायी जाती है परन्तु लड़की के जन्म पर सूप (छाजला) बजाया जाता है। बालक के जन्म के आठवें दिन बहिन-बेटियाँ को घर बुलाया जाता है और इसी दिन बहिनें ‘आख्याँ’ करती है तथा साथिया भेंट करती है।
• जामणा – पुत्र जन्म पर जच्चा के पीहर पक्ष की ओर से व वस्त्राभूषण भेंट करना जामणा कहलाता है।
• सुहावड़ – नव प्रसूता को सौंठ, अजवाईन, घी तथा खांड के मिश्रण के लड्डू बनाकर खिलाये जाते है इसे सुहावड़ कहा जाता है।
• नामकरण – बच्चे के जन्म के 10वें या 12वें दिन किसी पंडित से उसका नामकरण संस्कार कराया जाता है।
• पनघट पूजन – बच्चे के जन्म के कुछ दिन उपरांत कुआँ पूजन की रस्म की जाती है। इसमें महिलाएं गीत गाती हुई कुएँ पर जाती है। कुआँ पूजन के पश्चात् ही नवप्रसूता कुएँ पर जा सकती है। इस प्रथा को ‘जलवा पूजन’ भी कहते है।
• जडूला – शिशु के पहले या तीसरे वर्ष में सिर के बाल पहली बार मुड़वाने पर किया जाने वाला संस्कार।
• गोद लेना – जब व्यक्ति के लड़का नहीं होता है तब वह अपने परिवार के किसी लड़के को गोद लेता है जिसका मुख्य उद्देश्य वंश को चलाना होता है।
राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज : विवाह संबंधी रीतिरिवाज
• सगाई – वर पक्ष की ओर से वधू के लिए जो गहने, कपड़े आदि दी जाती है उसे पहरावणी/चिकणी कोथली कहते है।
• लग्न पत्रिका (पीली चिट्ठी)- सगाई के पश्चात् कन्या पक्ष वाले पुरोहित से विवाह की तिथि तय करवा कर उसे एक कागज में लिखकर एक नारियल के साथ वर के पिता के पास भेजते है।
• टीका (तिलक) विवाह निश्चित होने पर वे उपहार जो लड़की के पिता की ओर से लड़के के लिए भेजे जाते है, टीका कहलाता है।
• रीत – विवाह निश्चित होने पर लड़के वालों की तरफ से लड़की को भेजे जाने वाले उपहार, रीत कहलाता है।
• बरी-पड़ला – विवाह के अवसर पर वर पक्ष वधू के लिए श्रृंगारिक सामान, गहने एवं कपड़े लाता है, जिसे बरी-पड़ला कहते है।
• इकताई – वर की अंगरखी, कुर्त्ता व चूड़ीदार पायजामा बनाने के लिए दर्जी मुहूर्त से नाप लेना इकताई कहलाता है।
मुगधणा – भोजन पकाने के लिए काम में ली गई लकड़ियां मुगधणा कहलाती हैं।
• कांकन डोरड़ा – वर के दारिने हाथ में धागा मौली (लाल-पीले रंग का सूत) बांधी जाती है। जिसे कांकन डोरड़ा कहा जाता है।
• रातिजगा – वर के घर पर बरात जाने की पूर्व रात्रि तथा वधू के घर पर विवाह के पूर्व की रात्रि तथा सुहाग रात्रि को रात भर जागरण कर वर-वधू की मंगल कामना के गीत गाये जाते है। देवी- देवताओं के गीतों के साथ-साथ मेहन्दी, चूंदड़, काछवा, मीरिया, खटमल, ओडणी, कूकड़ी आदि गीत गाये जाते है।
• बत्तीसी नूतना – विवाह के समय वर तथा वधू की माता अपने पीहर वालों को निमंत्रण देने व पूर्ण सहयोग देने की कामना प्राप्त करने जाती है।
• मायरा – अपने लड़के के विवाह के समय माता अपने पीहर वालों को निमंत्रण भेजती है तथा पीहर पक्ष वाले अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार उसे जो कुछ देते है उसे मायरा कहा जाता है।
• बिंदोली – विवाह के एक दिन पूर्व वर व वधू की निकासी निकाली जाती है जो बिंदोली कहलाती है।
• मोड़-बांधना – विवाह के दिन वर के सिर पर सेहरा एवं उस पर मोड़ बांधा जाता है।
• निकासी – वर अपने संबंधियों के साथ वधू के घर की ओर प्रस्थान करता है इसे निकासी या जान चढ़ना कहते है।
• ढुकाव – सायं विवाह मुहुर्त से कुछ पहले अथवा सूर्यास्त तक वर का जुलुस निकाला जाता है। इस जुलुस को ढुकाव कहते हैं।
सामोला – जब वर वधू के घर पहुँचता है तो वधू के पिता द्वारा अपने संबंधियों के साथ वर पक्ष का स्वागत करना, सामोला कहलाता है। इसे मधुपर्क भी कहा जाता है।
• कंवारी जान का भात- बरात का स्वागत करने के बाद करवाया जाने वाला भोजन ।
• तोरण – जब वर कन्या के घर पर प्रथम बार पहुँचता है तो घर के दरवाजे पर बंधे तोरण को घोड़ी पर बैठे हुए छड़ी या तलवार द्वारा सात बार छूता है।
• पाणिग्रहण/फेरे – धर्म के अनुसार वर, वधू का हाथ पकड़कर जीवन भर साथ निभाने की प्रतिज्ञा करता है और अग्नि के चारों ओर 7 फेरे लेता है, तब वे पति-पत्नी बन जाते है।
• हीरावणी – विवाह के दौरान दुल्हन को दिया जाने वाला कलेवा।
• कन्यावल – विवाह के दिन वधू के माता-पिता, बड़े भाई, बहिन आदि उपवास रखते हैं। कन्यादान के पश्चात् ही वे कन्या का मुख देखकर भोजन करते है इसे कन्यावल रखना कहते है।
• बरोटी – विवाह के पश्चात् दुल्हन के स्वागत में दिया जाने वाला भोज।
• ओझण – बेटी को फेरो के बाद दिया जाने वाला दहेज ।
• पहरावणी – बरात विदा करते समय प्रत्येक बाराती को वधू पक्ष की ओर से यथाशक्ति धन भेंट के रूप में दिया जाता है, जिसे पहरावणी कहा जाता है।
• जेवनवार – वधू के घर पर बरात को चार जेवनवार (भोज) देने का रिवाज है। पहला जेवनवार पाणिग्रहण के पूर्व होता है, जिसे ‘कंवारी जान का जीमण’ कहते है। दूसरे दिन का भोज ‘परणी जान का जीमण’ कहलाता है। शाम का भोजन ‘बड़ी जान का जीमण’ कहलाता है। चौथा भोज मुकलानी कहलाता है।
• ओलन्दी – वधू के साथ उसके पीहर से उसका छोटा भाई या कोई निकट संबंधी आता है। वह ओलन्दा या ओलन्दी (अणवादी) कहलाती है।
• हथबोलणो – दुल्हन का प्रथम परिचय।
रियाण – पश्चिमी राजस्थान में विवाह के दूसरे दिन अफीम द्वारा मेहमानों की मान-मनुहार करना।
• मुकलावा या गौना – वधू यदि बालिग है तो यह रस्म विवाह के समय ही सम्पन्न कर दी जाती है अन्यथा वधू के बालिग होने पर वर वधू को अपने घर ले जाता है। इस रस्म को मुकलावा/गौना कहते है।
• बढार – विवाह के दूसरे दिन वधू पक्ष द्वारा दिया जाने वाला सामूहिक प्रतिभोज ‘बढार’ कहलाता है।
• आंणौ – विवाह के पश्चात् दुल्हन को दूसरी बार ससुराल भेजना।
• बिनोटा – दुल्हा-दुल्हन के विवाह की जूतियाँ।
• लडार – विवाह के छठे दिन कायस्थ जाति में वधू पक्ष की ओर वर पक्ष को दिया जाने वाला बड़ा भोज।
• कलसाजान – पुष्करणा ब्राह्मणों में पहले विवाह में कन्या पक्ष की ओर से बारातियों को भोजन कराने से पहले कलस के जल द्वारा स्नान कराया जाता था। अब यह रिवाज लुप्त हो गया है।
राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज : शोक या गम संबंधी रीतिरिवाज
• बैकुण्ठी – लकड़ी की शैया जिस पर मृतक व्यक्ति को श्मशान घाट तक ले जाया जाता है, बैकुण्ठी कहा जाता है। अंत्येष्टि की क्रिया हेतु अग्नि की आहूति सबसे बड़ा बेटा या निकट के भाई द्वारा दी जाती है जिसे लौपा कहते है।
आधेटा – घर और श्मशान तक यात्रा के बीच में चौराहे पर दिशा परिवर्तन किया जाता है। इसे आधेटा कहते है।
• दण्डोत – बैकुण्ठी या रथी के आगे मृत व्यक्ति के पोते, पड़पोते आदि साष्टांग दण्डवत् करते हुए बढ़ते जाते है, इस रस्म को दण्डोत कहा जाता है।
• पानीवाड़ा – मृतक के रिश्तेदार मृतक पुरुष के अंत्येष्ठी संस्कार के बाद एक साथ स्नान करते हैं। इस प्रकार के स्नान को पानीवाड़ा कहा जाता है।
सातरवाड़ा – अंतिम संस्कार होने के उपरान्त अंत्येष्टि में गये व्यक्ति स्नान आदि कर मृत व्यक्ति के घर जाते है तथा परिवार के लोगों को धैर्य बंधाकर सांत्वना देते है। इन रस्मों को सातरवाड़ा कहा जाता है।
फूल एकत्र करना/फूल चुनना दाह संस्कार के तीसरे दिन मृतक के संबंधी श्मशान जाकर उसके दांत या हड्डियाँ एकत्र कर उन्हें एक कुल्लड़ में लाते है।
• तीया – मृत्यु के तीसरे दिन तीये की बैठक की जाती है इसमें मित्रगण, परिवार के लोग व रिश्तेदार आकर सांत्वना देते है।
• मोसर – राजस्थान में मृत्यु भोज को मोसर कहते है। मृतक के निकटतम सदस्य ब्राह्मणों एवं संबंधियों को भोजन करवाते है।
• पगड़ी – मोसर के दिन मृत व्यक्ति के बड़े पुत्र को उसके उत्तराधिकारी के रूप में पगड़ी बांधी जाती है।
• दोवणियां – मृतक के 12वें दिन घर की शुद्धि हेतु जल से भरे जाने वाले मटके।
श्राद्ध – श्राद्ध आश्विन् माह में जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई थी उसी दिन किया जाता है।
• ओख – त्योहार के अवसर पर किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी उस त्योहार को नहीं मनाया जाता है।
राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज ::अन्य विशेष रीति-रिवाज
• नांगल – नवनिर्मित गृह के उद्घाटन की रस्म नांगल कहलाती है।
• जोसर – व्यक्ति द्वारा मृत्यु से पहले ही करवाया गया मोसर जोसर कहलाता है।
• नाता – इस प्रथा के अनुसार पत्नी अपने पति को छोड़कर बिना किसी औपचारिक रस्मों के किसी अन्य पुरुष के साथ रह सकती है।
• दापा – आदिवासी क्षेत्र में भगाकर लाई गई युवती की पुरुष पक्ष द्वारा वधू मूल्य चुकाकर विवाह कर लिया जाता है।
• मौताणा – आदिवासी व्यक्ति की मृत्यु होने पर आदिवासी पंचों द्वारा तय की गई राशि आरोपी से वसूल ली जाती है।
• डावरिया – राजस्थान में शासक समुदाय अपनी लड़की की शादी में दहेज के साथ कुंवारी कन्याएँ भी साथ भेजते थे उन्हें डावरियाँ कहा जाता था।
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