राजस्थान के प्रमुख मेले : बादशाह का मेला, ब्यावर (अजमेर) :
चैत्र कृष्णा प्रतिपदा को ब्यावर में बादशाह की सवारी निकाली जाती है।
इसमें दो अलग-अलग पालकियों में अलग-अलग बादशाह होते हैं जिनके आगे बीरबल नाचता है।
फूलडोल उत्सव
• भीलवाड़ा के शाहपुरा कस्बे में रामस्नेही सम्प्रदाय के अनुयायियों की पीठ है।
• चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से पंचमी तक फूलडोल का मेला लगता है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : शीतलामाता मेला :
जयपुर जिले में चाकसू तहसील के शील डूंगरी गाँव में चैत्र कृष्णा अष्टमी (शीतलाष्टमी) को शीतलामाता का मेला भरता है।
शीतलाष्टमी के दिन ‘बास्योड़ा’ भी मनाया जाता है तथा एक दिन पहले पकाया हुआ भोजन किया जाता है।
• जयपुर के अलावा उदयपुर के वल्लभनगर कस्बे में स्थित शीतला माता के मंदिर में मेले का आयोजन किया जाता है।
• जयपुर में शीतला माता का मंदिर शील डूंगरी पहाड़ी पर स्थित है, जिसका निर्माण जयपुर के महाराजा माधोसिंह ने करवाया था।
इस मेले में दूर-दूर से ग्रामीण रंगीन कपड़ों से सुसज्जित बैलगाड़ी से आते है, अतः इसे ‘बैलगाड़ी मेले’ के नाम से भी जाना जाता है।
इस अवसर पर पशु मेला भी लगता है।
शीतला माता मातृरक्षिका देवी के रूप में पूजा जाता है।
इसे उत्तर भारत में ‘महामाई’, पश्चिम भारत में ‘माई अनामा’ और राजस्थान के सेढ़, शीतला तथा सैढ़ल माता के रूप में जाना जाता है। शीतला माता की पूजा चेचक निवारक देवी के रूप में भी की जाती है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : केसरिया जी का मेला :
जैन तीर्थंकर ऋषभदेव का धुलेव गाँव (उदयपुर) में भव्य मंदिर है।
यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र कृष्णा अष्टमी को विशाल मेला लगता है तथा आश्विन कृष्ण एकम और द्वितीया को विशाल रथयात्रा निकाली जाती है।
भील ऋषभदेव की मूर्ति काले पत्थर की होने के कारण इन्हें कालाजी कहते है।
इनकी पूजा में केसर का प्रयोग होने के कारण इन्हें केसरियाजी कहा जाता है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : तिलवाड़ा का मेला :
• बाड़मेर जिले के तिलवाड़ा कस्बे में मल्लीनाथ की याद में चैत्र कृष्णा एकादशी से चैत्र शुक्ला एकादशी तक पशु मेले का आयोजन किया जाता है।
इस मेले की राठी, थारपारकर, कांकरेज एवं मालाणी नस्ल की गायों की खरीद-फरोख्त होती है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : घोटिया अम्बा मेला :
• बाँसवाड़ा में हर वर्ष चैत्र अमावस्या को यह मेला भरता है।
राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश से आदिवासी इसमें शामिल होते हैं।
राजस्थान के प्रमुख मेले : कैलादेवी का मेला :
करौली जिले में त्रिकूट पर्वत की घाटी में कैलादेवी का भव्य मंदिर है।
• इस मंदिर के पीछे काली सिल नदी बहती है।
यहाँ चैत्र शुक्ला अष्टमी को मेला भरता है। इसे लक्खी मेला भी कहा जाता है। इस मेले में अलगोजो की धुनों पर लांगुरिया गीत गाया जाता है।
यहाँ दो मूर्तियाँ हैं। दाहिनी तरफ कैला देवी की मूर्ति है जिन्हें लक्ष्मी नाम से भी जाना जाता है। बायीं तरफ चामुंडा माता की मूर्ति है।
कैलादेवी के मंदिर के सामने ही हनुमानजी का मंदिर भी है जिन्हें स्थानीय लोग लांगुरिया कहते हैं।
कैला देवी करौली के यदुवंशी राजपरिवार की कुलदेवी है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : श्री महावीर जी का मेला :
करौली जिले की हिंडौन तहसील में गंभीरी नदी के किनारे पर अवस्थित चंदन गाँव (श्रीमहावीर जी) में श्री महावीर का मंदिर है।
यहाँ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी से वैशाख कृष्णा प्रतिपदा तक जैन समुदाय का सबसे बड़ा मेला लगता है।
यहाँ चौबीसवें जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी की लाल रंग की भव्य प्रतिमा है।
जनश्रुति के अनुसार किरपादास नामक चर्मकार को एक टीले पर यह प्रतिमा मिली, जहाँ बसवा के अमरचंद बिलाला ने विशाल मंदिर बनवाया।
इस मेले में जैनियों के अतिरिक्त मीणा, गुर्जर, जाट, अहीर जाति के लोग शामिल होते हैं।
वैशाख कृष्णा प्रतिपदा को महावीर जी की भव्य रथयात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा मन्दिर से प्रारम्भ होकर गंभीरी नदी के तट पर जाती है। आज भी जब मेले का शुभारम्भ होता है तो रथ यात्रा से पूर्व रथ को पहले उस चर्मकार के वंशजों का हाथ लगवाना पहली परम्परा है। रथ का संचालन हिण्डौन के उपखण्ड अधिकारी राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में सारथी बनकर करते हैं। रथयात्रा में रथ के आगे मीणा जाति के लोग गीत गाते हुए चलते हैं तथा वापसी में उनका स्थान गुर्जर ले लेते हैं
राजस्थान के प्रमुख मेले : सीताबाड़ी का मेला :
बारां जिले की शाहबाद तहसील के निकट केलवाड़ा गाँव में यह मेला लगता है।
यह मेला वैशाख पूर्णिमा से ज्येष्ठ अमावस्या तक लगता है। (प्रमुख ज्येष्ठ अमावस्या)
इसे सहरिया जनजाति का कुंभ कहा जाता है जो हाड़ौती का सबसे बड़ा मेला है।
लोक मान्यता के अनुसार सीताबाड़ी वो स्थान है जहाँ अयोध्या नगरवासियों के द्वारा सीता के चरित्र पर शक करने के कारण लक्ष्मण सीता को छोड़कर गये थे।
• यहाँ पर तीन कुण्ड – सीताकुण्ड, लक्ष्मणकुण्ड व सूरजकुण्ड स्थित हैं जिसमें स्नान करने का धार्मिक महत्व है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : राणीसती का मेला :
अपने पति के साथ सती होने वाली नारायणी देवी की स्मृति में यह मेला भाद्रपद अमावस्या को भरता है।
नोट : हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के अनुसार यह मेला माघ कृष्णा नवमी व भाद्रपद कृष्णा नवमी को भरता है।
सर्वप्रथम 1912 में इसका आयोजन किया गया था।
राजस्थान के प्रमुख मेले : रणथम्भौर का गणेश मेला :
भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को रणथम्भौर (सवाईमाधोपुर) में मेला लगता है।
लोक मान्यता के अनुसार विवाह की कुमकुम पत्रिका सर्वप्रथम यही पहुँचाई जाती है।
लड्डुओं के ढेर और गणेश वाहन मूषकों की उछल कूद इस मेले का प्रमुख आकर्षण है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : भर्तृहरि मेला :
भर्तृहरि (अलवर) में वर्ष में दो बार वैशाख व भाद्रपद शुक्ल
सप्तमी-अष्टमी को लक्खी मेला लगता है।
इस मेले में राजस्थान के अलावा उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब व हरियाणा से लोग आते है।
इस मेले में मुख्यतः मीणा, गुर्जर, अहीर, जाट तथा बागड़ा जाति के लोग पहुँचते हैं।
इस मेले का प्रमुख आकर्षण कालबेलिया नृत्य है।
हाथ में चिमटा-कमण्डल, शरीर पर राख लपेटे लम्बी दाढ़ी और लम्बे बालों वाले सैकड़ों कनफटे बाबाओं से यह स्थान लघु कुंभ के रूप में जीवंत हो उठता है।
• जनश्रुति के अनुसार गोपीचन्द भर्तृहरि बहुत बड़े राजा थे। उनकी पत्नी रानी पिंगला अत्यंत सुंदर थी। किन्हीं कारणों से राजा के मन में विरक्ति आने पर उन्होंने अपना राजपाट त्याग कर सन्यास ले लिया। भर्तृहरि को यह जंगल बहुत भाया और वे मृत्यु पर्यन्त यहीं रहे। यहीं उनकी समाधि भी है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : डिग्गी कल्याणजी का मेला :
कल्याण जी का मंदिर टोंक जिले के मालपुरा उपखण्ड के डिग्गी कस्बे में है।
कल्याण जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
श्रावण मास की अमावस्या, वैशाख पूर्णिमा और भाद्रपद शुक्ल एकादशी को वर्ष में तीन बार मेला लगता है।
राजस्थान के अलावा बंगाल, बिहार, असम से भी श्रद्धालु आते है।
डिग्गी के बारे में एक मान्यता है कि इन्द्र ने अपने दरबार की अप्सरा उर्वशी को किसी बात पर क्रोधित होकर बारह वर्ष के लिए मृत्यु लोक में रहने का दण्ड दिया। उर्वशी मृत्युलोक में आकर रहने लगी। यहाँ वह चंद्रगिरि के राजा डिग्व के उद्यान में घोड़ी का रूप धारण कर रात भर चरा करती थी। क्रोधित चन्द्रगिरि के राजा डिग्व ने एक दिन घोड़ी का पीछा कर उसे पकड़ लिया। घोड़ी ने सुंदरी का रूप धर लिया। राजा डिग्व उर्वशी पर मोहित होकर उसे अपने महल लाने के लिए आतुर हो गया। उर्वशी ने साथ चलने के लिए एक शर्त रखी कि दण्ड समाप्ति पर इन्द्र जब उसे लेने आये तो वह उसे बचायेगा। यदि वह नहीं बचा पाया तो वह उन्हें शाप दे देगी। दण्ड की समाप्ति पर इन्द्र उर्वशी को लेने के लिए मृत्यु लोक में आये। राजा डिग्व के प्रतिरोध करने पर इन्द्र ने भगवान विष्णु की सहायता से उसे हरा दिया और उर्वशी को ले गये। उर्वशी ने राजा को शाप दिया कि वह कोढ़ी बन जाये। भगवान विष्णु को राजा डिग्व पर दया आयी और उन्होंने राजा को कुण्ठ से निवारण का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि कुछ समय बाद में उनकी एक प्रतिमा पास के समुद्र से बहती हुई आयेगी जिसके दर्शन से राजा का रोग मिटेगा। कालान्तर में वह प्रतिमा आई और उसके दर्शन मात्र से राजा का रोग मिट गया। चूंकि भगवान विष्णु ने राजा डिग्व का कुष्ठ रोग से कल्याण किया था, इसलिए इस मंदिर का नाम कल्याण मंदिर पड़ा।
राजस्थान के प्रमुख मेले : दशहरा मेला, कोटा :
• कोटा के राव माधोसिंह के शासनकाल में विजयादशमी के दिन कोटा में प्रसिद्ध दशहरे मेले की शुरुआत हुई।
कोटा के महाराव दुर्जनशाल सिंह के शासनकाल में दशहरे के पर्व पर विभिन्न राजसी सवारियों, दरीखाना एवं पूजा अर्चना के प्रमाण मिलते है।
महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय के शासनकाल (1889 से 1940) में दशहरा पर्व को अत्यधिक आकर्षण बनाने का सिलसिला शुरु हुआ।
इस अवसर पर पशु मेले का आयोजन भी किया जाता है।
नोट : हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के अनुसार दशहरा मेले की शुरुआत 1895 ई. में उम्मेद सिंह ने की थी।
राजस्थान के प्रमुख मेले : पुष्कर मेला :
अजमेर जिले के पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा पर भव्य मेला आयोजित होता है।
• पुष्कर में पुष्कर झील भी आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है, कार्तिक पूर्णिमा को सायंकाल यहाँ दीपदान होता है।.
इस मेले में विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में शिरकत करते हैं।
मेले में कम से कम एक लाख लोग सम्मिलित होने के कारण इसे लक्खी मेला भी कहते हैं।
संभवतः देश का एकमात्र ब्रह्माजी मंदिर यहीं है।
इस मन्दिर को औरंगजेब के समय तोड़ डाला गया था।
ब्रह्माजी के मन्दिर के पीछे पहाड़ियों पर सावित्री और गायत्री माता के मंदिर है।
मन्दिर के समीप भर्तृहरि की गुफा व गयाकुण्ड दर्शनीय स्थल है।
इस अवसर पर पशु मेला भी लगता है जो ऊँटों की खरीद- बिक्री के लिए प्रसिद्ध है।
• जनश्रुति के अनुसार प्राचीन समय में पुष्कर में विज्रनाथ नामक एक राक्षस था। जिसने पुष्कर में आतंक मचा रखा था। इस राक्षस द्वारा ब्रह्माजी की संतानों की हत्या की बात जब स्वयं ब्रह्माजी को ज्ञात हुई तो उन्होंने प्रकट होकर कमल के फूल से राक्षस का संहार किया। कमल की पंखुड़ियाँ जिन तीन स्थानों पर गिरी वहाँ झीलें बन गई- ज्येष्ठ पुष्कर, कनिष्ठ पुष्कर और मध्यम पुष्कर। इनमें ज्येष्ठ पुष्कर का महत्त्व अधिक है। इसके पश्चात् ब्रह्माजी ने इसी स्थान पर एक यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें समस्त देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया। यह यज्ञ कार्तिक मास में सम्पन्न हुआ था।
यहाँ के बारे में एक अन्य जनश्रुति है कि जब भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ करने की ठानी तब उनकी हाथ से तीन कमल के फूल गिरे। ये फूल जहाँ-जहाँ गिरे, वे स्वच्छ सरोवर के जल में बदल गये यह क्रमशः ज्येष्ठ पुष्कर, कनिष्ठ पुष्कर तथा मध्य पुष्कर कहलाये ।
राजस्थान के प्रमुख मेले : चन्द्रभागा मेला :
झालावाड़ जिले के झालरापाटन कस्बे में चन्द्रभागा नदी के किनारे इस मेले का आयोजन कार्तिक पूर्णिमा को किया जाता है।
यह मेला मालवी नस्ल के पशुओं के क्रय-विक्रय हेतु प्रसिद्ध है। नोट : चन्द्रभागा पशु मेले का आयोजन कार्तिक शुक्ला एकादशी से मार्गशीर्ष कृष्णा पंचमी तक होता है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : कपिल मुनि का मेला :
कपिल मुनि (सांख्य दर्शन के प्रणेता) की तपोस्थली कोलायत में कार्तिक पूर्णिमा को कोलायत झील के तट पर विशाल मेला लगता है।
स्कंद पुराण में उल्लेखित है कि महर्षि मनु की पुत्री का विवाह महर्षि कर्दन से हुआ तथा इनसे कपिल मुनि का जन्म हुआ।
कार्तिक पूर्णिमा को सायंकाल यहाँ दीपदान होता है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : मरु मेला :
पर्यटन विभाग द्वारा माघ महीने (फरवरी माह) में इस मेले का आयोजन किया जाता है।
मेले में साफा बाँधने और मरुश्री की प्रतियोगिताएँ आयोजित होती है।
गैर और अग्नि नृत्य का भी आयोजन इस मेले में होता है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : बेणेश्वर का मेला :
बेणेश्वर मेला राजस्थान के ‘आदिवासियों का कुंभ’ कहलाता है। यह राजस्थान के आदिवासी समाज का सबसे बड़ा मेला है।
यह मेला माघ पूर्णिमा (शिवरात्रि) के अवसर पर डूंगरपुर जिले की आसपुर तहसील के नवातपुरा नामक स्थान पर भरता है।
• माही, जाखम और सोम नदियों के संगम पर स्थित बेणेश्वर धाम में खण्डित शिवलिंग की पूजा होती है।
इस मेले में राजस्थान के अलावा मालवा, गुजरात के आदिवासी भाग लेते है।
इस धाम का पुजारी सेवक जाति का होता है जो अपनी उत्पत्ति ब्राह्ममणों से मानते है।
आदिवासी महिलाओं द्वारा किया जाने वाला घूमर व गैर नृत्य इस मेले का प्रमुख आकर्षण है।
• जनश्रुति के अनुसार यह शिवलिंग स्वयं उद्भूत हुआ। यह स्वयंभू शिवलिंग पाँच स्थानों पर से खण्डित है। इसके बारे में एक कथा प्रचलित है कि नवातपुरा गाँव से एक गाय प्रतिदिन शिव मंदिर में आती और शिवलिंग पर दुग्धाभिषेक कर चली जाती थी। एक दिन ग्वाला परेशान होकर गाय के पीछे चला आया। पीछा करते हुए वह शिव मंदिर पहुँचा जहाँ गाय को लिंग पर दुग्धाभिषेक करते हुए ग्वाले ने देख लिया। फलतः वह वहाँ से भागी। भागने के प्रयास में खुर से लिंग को धक्का लगा जिससे यह पाँच हिस्सों में टूट गया। यह आश्चर्यजनक है कि टूटने के बावजूद भी इसकी पूजा होती है, क्योंकि टूटी प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : शिवाड़ :
हमारे पौराणिक साहित्य में बारह ज्योतिर्लिंग का उल्लेख है।
बारहवाँ ज्योतिर्लिंग शिवाड़ (सवाईमाधोपुर) में स्थित है।
• इस ज्योतिर्लिंग प्रसिद्धि धुश्मेश्वर के रूप में हुई है।
मन्दिर के पास शिवालय नामक सरोवर है जिसका जल गंगाजल के समान पवित्र माना जाता है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : खाटूश्यामजी मेला :
• खाटूश्यामजी का मंदिर सीकर जिले में स्थित है। इस मंदिर पर फाल्गुन के शुक्ल पक्ष की दशमी से द्वाद्वशी तक वार्षिक मेला लगता है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : त्रिपुरा सुन्दरी का मेला :
त्रिपुरा सुन्दरी/तुरताई माता का मंदिर बांसवाड़ा जिले में स्थित
है। पंचाल समाज 18 भुजाओं वाली माँ त्रिपुरा सुन्दरी की कुल
देवी के रुप में उपासना करता है। चोखला पंचाल समाज ने
यहां 2006 में स्वर्ण कीर्ति स्तम्भ बनवाया।
खाटूश्यामजी के मंदिर के निकट स्थित श्याम बगीचा व श्यामकुंड दर्शनीय हैं।
• खाटूश्यामजी को श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : सांगोद का न्हाण (कोटा) :
इसका प्रचलन नवीं शताब्दी से माना गया है।
• यह उत्सव होली के अवसर मनाया जाता है।
इसमें ग्रामवासी विचित्र वेशभूषा में अखाड़े निकालते है और सबसे अंत में ब्राह्मणी माता की पूजा करते हैं।
राजस्थान के प्रमुख मेले : करणी माता का मेला :
• करणी माता का मंदिर बीकानेर जिले के देशनोक में स्थित है।
• इस मंदिर को चूहों के मंदिर के नाम से जाना जाता है। इन
चूहों को स्थानीय लोग ‘काबा’ कहते हैं।
• यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र व अश्विन नवरात्रा में मेलों का आयोजन होता है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : जीणमाता का मेला :
जीण माता का मंदिर सीकर जिले के रैवासा में स्थित है। लोक मान्यता के अनुसार जीण माता (वास्तविक नाम जयन्ती माला) चूरू जिले के धान्धु गाँव की चौहान राजकन्या थी। जीण माता को माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है। इस देवी का उल्लेख भागवत पुराण के नवें स्कन्ध में भी मिलता है। यहाँ माता की अष्टभुजी प्रतिमा है। इसके सामने घी और तेल के दो दीपक अखंड रूप से कई सौ वर्षों से प्रज्वलित है।
यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र व अश्विन नवरात्रा में मेलों का आयोजन होता है।
मन्दिर के पास पाँचों पाण्डवों की आदमकद प्रस्तर प्रतिमायें स्थित है।
इस मेले में राजस्थान के अलावा बंगाल, बिहार, असम और गुजरात से लोग शामिल होते है।
देवी को सुरा का भोग लगाया जाता है।
इस देवी की मीणा व राजपूत जाति के लोग आराधना करते है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : जाम्भेश्वर मेला :
जाम्भोजी (विश्नोई सम्प्रदाय के संस्थापक) की समाधि स्थल मुकाम (नोखा तहसील, जिला-बीकानेर) में हर वर्ष दो बार फाल्गुन व आश्विन अमावस्या को मेला लगता है।
इनके मुस्लिम अनुयायी भी इसमें शामिल होते है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : जमवाय माता का मेला :
जमवाय माता का मंदिर जयपुर जिले के जमुवारामगढ़ बांध के निकट स्थित जबुंगिरि नामक पर्वत पर स्थित है। अपनी कुल देवी के इस मंदिर का निर्माण कछवाहा शासक दुल्लेहराय ने करवाया।
राजस्थान के प्रमुख मेले : खलकाणी माता का गर्दभ मेला :
जयपुर के समीप भावगढ़ बंध्या गांव में खलकाणी माता गर्दभ मेला आयोजित होता है।
इस मेले में केवल गधों एवं खच्चरों की ही खरीद फरोख्त होती है।
ऐसा माना जाता है कि इस मेले की शुरुआत 500 वर्ष पहले कछवाहों ने चन्दा मीणा को युद्ध में हराने की खुशी में की थी
राजस्थान के प्रमुख मेले : नागौर मेला :
• पर्यटन विभाग द्वारा नागौर में हर वर्ष माघ शुक्ल पंचमी से अष्टमी तक इस मेले का आयोजन किया जाता है।
• यहाँ के नागौरी बैल सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है।
• इस मेले में शाम के समय ऊँटों की दौड़, मुर्गों व सांडों की लड़ाई आयोजित की जाती है।
• मेले के दौरान पर्यटन गाँव की स्थापना भी की जाती है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : कानन मेला :
• कानन (बाड़मेर) में बसंत ऋतु में यह मेला आयोजित होता है।
• गैर नृत्य इसका प्रमुख आकर्षण का केन्द्र है।
राजस्थान के प्रमुख मेले : मुण्डवा मेला (नागौर) :
• इस मेले की शुरूआत जोधपुर के महाराजा बख्तसिंह द्वारा की गई थी।
• यह मेला माघ माह (जनवरी-फरवरी) में भरता है।
• यह एक पशु मेला है जो नागौरी बेलों की खरीद बिक्री के लिए प्रसिद्ध है।
प्रमुख उर्स :
गरीब नवाज का उर्स (अजमेर) :
1192 ई. में सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती ईरान से भारत आए थे तथा अपना शेष जीवन अजमेर में बिताया।
• इनको गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता है।
• इस्लामिक कैलेण्डर के अनुसार रजब माह की पहली से छठी तारीख तक अजमेर में ख्वाजा साहब का उर्स मनाया जाता है।
• यह उर्स चाँद दिखाई देने पर दरगाह शरीफ के बुलंद दरवाजे पर झण्डा फहराने के साथ आरम्भ होता है।
• चौथे दिन दरगाह का जनती दरवाजा खोला जाता है।
रज्जब की छठी तारीख को कुल की रस्म में जायरीनों पर गुलाब जल के छींटे मारे जाते हैं। इसके तीन दिन बाद नवीं तारीख को बड़े कुल की रस्म अदा की जाती है। यहाँ अकबर द्वारा निर्मित अकबरी मस्जिद तथा महफिलखानें में कव्वालियों का कार्यक्रम होता है।
• उर्स के दौरान अकबर व जहांगीर द्वारा प्रदत क्रमशः बड़ी देग व छोटी देग में चावल पकाकर प्रसाद बांटा जाता है।
जायरीन इनकी मजार पर चादर भी चढ़ाते हैं।
• गरीब नवाज का उर्स संपूर्ण भारत में मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा मेला है जो साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिशाल पेश करता है।
गलियाकोट का उर्स (डूंगरपुर) :
• डूंगरपुर जिले की सागवाड़ा तहसील के गलियाकोट कस्बे में संत सैयद फखरुद्दीन की मजार है।
यह मुस्लिम दाउदी बोहरा सम्प्रदाय की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इसे मजार-ए-फखरी भी कहते है।
मुहर्रम माह की 27वीं तारीख को यहाँ उर्स का आयोजन होता है।
राजस्थान के प्रमुख रीती रिवाज पढने के लिए यहाँ देखे click here
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