राजस्थान के प्रमुख मंदिर : Temples Of Rajasthan Part 2

राजस्थान के प्रमुख मंदिर :जैसलमेर के मंदिर

तन्नोट माता मंदिर –

• भाटी राजपूत शासक तणुराव ने वि.स. 828 में जैसलमेर में तन्नोट माता का मंदिर का निर्माण करवाया। यह विशेषकर बीएसएफ के जवानों का आस्था का केन्द्र है। तन्नोट माता को देवी हिंगलाज का अवतार माना जाता है।

अन्य मंदिर– चुंघी तीर्थ मंदिर, गज मंदिर, हिंगलाज देवी मंदिर, रामदेवरा मंदिर।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : झालावाड़ के मंदिर

शीतलेश्वर महादेव मंदिर –

गुप्त व गुप्तोतर काल में निर्मित ज्ञात तिथि (689 ई.) युक्त राजस्थान का सबसे पुराना मंदिर है। इसके तीन ओर गहरे खतक या लघु देवालय तथा गर्भगृह की दीवारें भी मंडप के स्तंभों से निर्मित प्रतीत होती है। इस मंदिर के भग्नावशेषों में केवल गर्भगृह और छतरहित अंतराल ही मिलता है। इसे चन्द्रमौलिश्वर मंदिर भी कहा जाता है।

सूर्य मंदिर, झालरापाटन-

झालावाड़ जिले के झालरापाटन कस्बे मे 10वीं शताब्दी में निर्मित 17 फीट उच्चा भगवान शिव को समर्पित सूर्य मंदिर है। इस मंदिर का शिखर उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर के समान उत्कीर्ण किया गया है। गर्भगृह के बाहर शिव की तांडव नृत्यरत् प्रतिमा और मातृकाओं की प्रतिमाएँ हैं। गर्भगृह की रथिका में त्रिमुखी सूर्य प्रतिमा है जिसमें विष्णु का भाव मिश्रित है।

अन्य मंदिर– चन्द्रभागा मंदिर, शांतिनाथ जैन मंदिर, चाँदखेड़ी के जैन मंदिर, सात सहेली मंदिर (झालरापाटन) आदि ।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : जोधपुर के मंदिर

ओसियाँ के मंदिर

आठवीं एवं नवीं शताब्दी में यह व्यापारियों और जैन व वैष्णव धर्मावलम्बियों का प्रमुख केन्द्र था।

• यहाँ लगभग 16 हिन्दू एवं जैन मन्दिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं। गुर्जर-प्रतिहार शैली में बने इन मन्दिरों में शिव, विष्णु, सूर्य, ब्रह्मा, अर्द्धनारीश्वर, महिषमर्दिनी, नवग्रह, कृष्ण, हरिहर, सचिया माता, भगवान महावीर, पीपला माता एवं दिक्कपाल आदि प्रमुख है। यहां के वैष्णव, जैन व शाक्त मन्दिरों में धार्मिक एकता, समन्वय एवं सौहार्द की झलक देखने को मिलती है।

सचिया माता का मन्दिर

• सचिया माता मन्दिर का निर्माण 1178 ई. में परमार शासक उपेन्द्र ने करवाया था।

• सचिया माता परमार शासकों की कुल देवी तथा ओसवाल जैन धर्मावलम्बियों की कुल देवी के रूप में भीजानी जाती है।

• मंदिर परिसर में स्थित चण्डी मां मन्दिर, अम्बा माता मन्दिर व सूर्य मन्दिर भी दर्शनीय हैं।

• मारू (गुर्जर प्रतिहार) शैली में बना यह मन्दिर हिन्दू एवं जैन दोनों सम्प्रदायों के लिए एक प्रमुख पवित्र धार्मिक स्थल हैं।

पीपला माता का मन्दिर

10-11 वीं सदी में बना यह शाक्त मन्दिर सूर्य मन्दिर के पास ही स्थित है। इसके गर्भगृह में महिषमर्दानी एवं कुबेर की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं।

जैन मन्दिर

ओसियाँ के जैन मन्दिरों में महावीर मन्दिर महत्त्वपूर्ण है। इस मन्दिर का निर्माण प्रतिहार नरेश वत्सराज ने 783 ई. (आठवी शताब्दी) में करवाया था। यह मन्दिर अन्तिम जैन तीर्थकर महावीर स्वामी को समर्पित है।

हरिहर मंदिर

• यह तीन मन्दिरों का समूह है, जो हरिहर को समर्पित है। हरिहर स्वरूप भगवान विष्णु एवं शिव का समेकित रूप है।

• इनमें से दो मन्दिर 8 शताब्दी के तथा तीसरा मन्दिर 9वीं शताब्दी का बना हुआ है।

महामंदिर –

• जोधपुर में स्थित नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थस्थल जिसका निर्माण मानसिंह द्वारा करवाया गया।

रावण मंदिर-

• यह मंडोर में स्थित उत्तर भारत का प्रथम रावण मंदिर है।

• अन्य मंदिर- कुंज बिहारी मंदिर, तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का मंदिर (मंडोर), चामुंदा देवी का मंदिर (मेहरानगढ़), आई माता (बिलाड़ा), लटियालजी जैन मंदिर, गंगश्याम एवं घनश्याम मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : करौली के मंदिर

कैलादेवी मंदिर-

• कैला माता का भव्य मंदिर कालीसिल नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर का निर्माण राजा गोपालसिंह द्वारा करवाया गया था। मंदिर के मुख्य कक्ष में महालक्ष्मी, कैलादेवी और चामुंडा की मूर्ति विराजमान है। कैलोदवी अपनी आठ भुजाओं में शस्त्र लिये हुए हैं और सिंह पर सवार है। कैलादेवी के मंदिर में लांगुरिया गीत गाये जाते हैं। यहाँ भैंरो मंदिर व हनुमान मंदिर भी स्थित हैं। हनुमानजी को यहाँ लांगुरिया नाम से पुकारते हैं। चैत्र मास में विशाल मेला लगता है।

श्रीमहावीरजी मंदिर-

जैव श्रावक अमरचंद बिलाला ने इस मंदिर का निर्माण करवाया जो प्रारंभ में चाँदनपुर के महावीरजी के नाम से प्रसिद्ध था। मेले का मुख्य आकर्षण जिनेन्द्र रथयात्रा है जो मुख्य मंदिर से प्रारंभ होकर गंभीरी नदी के तट तक जाती है। इस यात्रा में यहाँ के क्षेत्रीय उपखंड अधिकारी (SDM) इस रथ के सारथी बनते हैं।

मदनमोहन मंदिर –

यह करौली में स्थित गौडीय सम्प्रदाय का मंदिर है।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : कोटा के मंदिर

कंसुवा शिव मंदिर –

यह कोटा में स्थित गुप्तकालीन मंदिर है। यहाँ चतुर्भुज शिवलिंग विराजमान है।

विभीषण मंदिर-

• यह मंदिर तीसरी से पाँचवीं शताब्दी का माना जाता है। छतरी में स्थापित धड़ से ऊपर तक की विशाल मूर्ति है (धड़ नहीं है), जिसे विभीषण की मूर्ति कहा जाता है।

मधुराधीस मंदिर-

कोटा के पाटनपोल में भगवान मधुराधीश का मंदिर है। देश में वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख सात पीठों में से कोटा की मथुराधीश पीठ प्रथम मानी जाती है।

अन्य मंदिर– चारचौमा शिवालय, भीमचौरी का मंदिर, बूढ़ादीत का सूर्य मंदिर, गेपरनाथ महादेव मंदिर।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : नागौर के मंदिर

दधिमति माता मंदिर-

• नागौर की जायल तहसील में गोठ मांगलोद में देवी का गुर्जर- प्रतिहारकालीन मंदिर है। दायमा ब्राह्मण इस मंदिर को अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित मानते हैं। इसे राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। यह 7वीं 9वीं सदी में निर्मित है।

चारभुजानाथ मंदिर-

• मेड़ता में स्थित इस मंदिर की स्थापना राव दूदा ने की थी। यहाँ पर मीराबाई, संत तुलसीदास एवं रैदास की प्रतिमाएँ हैं।

कैवाय माता मंदिर-

नागौर के परबतसर तहसील के किणसरिया गाँव में पर्वत शिखर पर बना कैवाय माता का मंदिर अति प्राचीन है।

अन्य मंदिर– तेजाजी का मंदिर (खरनाल), आंवल माता मंदिर, मीरा बाई का मंदिर (मेड़तासिटी), पाडामाता मंदिर (डीडवाना) बंशीवाले का मंदिर, हरिराम मंदिर (झोरड़ा)

राजस्थान के प्रमुख मंदिर :पाली के मंदिर

रणकपुर जैन मंदिर –

• पाली जिले में स्थित रणकपुर के जैन मंदिर का निर्माण महाराणा कुम्भा के शासनकाल (1433-1468) मे हुआ।

• यहाँ के प्राचीन जैन मन्दिर अपनी स्थापत्य एवं मूर्तिकला के लिए विश्वविख्यात है।

• इन मन्दिरों में सबसे प्रमुख मन्दिर चौमुखा मन्दिर है। इनके अलावा यहाँ तीर्थकर पार्श्वनाथ एवं नेमीनाथ के दो छोटे मन्दिर भी स्थित हैं।

चौमुखा मंदिर

• इसे आचार्य सोमसुन्दर सूरीजी की प्रेरणा से धरणाशाह एवं रत्नाशाह नामक दो भाइयों ने बनवाया था।

• मन्दिर का निर्माण कार्य देपाक नामक मुख्य शिल्पी के मार्गदर्शन में सैकड़ों सिद्धहस्त शिल्पियों ने निरन्तर अथक परिश्रम के स्वरूप विक्रम सम्वत् 1496 में सम्पन्न हुआ था।

• इसकी दीवारों के लिए सोनाणा का पत्थर व आधार तल के लिए सेवाडी का पत्थर तथा कुछ विशिष्ट मूर्तियों को बनाने के लिए बाहर से भी पत्थर मंगवाया गया था

• चौमुखा मन्दिर को आदिनाथ मन्दिर, त्रैलोक्य दीपक, त्रिभुवन विहार, धरण विहार, खम्भों का अजायबघर आदि नामों से भी जाना जाता है।

• इस मन्दिर में कुल 24 मण्डल, 85 शिखर एवं 1444 अलंकृत स्तम्भ कला की उत्कृष्टता का बखान करते प्रतीत होते हैं।

• यह मन्दिर प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ को समर्पित है। अतः इसके गर्भगृह में आदिनाथ (ऋषभदेव) की 4 प्रतिमाएं चारों दिशाओं की ओर उन्मुख होती हुई स्थापित है।
इसलिए इस मंदिर को चतुर्मुख मंदिर या चौमुखा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

कामेश्वर मंदिर-

गुर्जर-प्रतिहारकालीन यह मंदिर 850 ई. के लगभग निर्मित है।

स्वर्ण मंदिर, फालना-

जैन स्वर्ण मन्दिर के रूप में विख्यात इस मन्दिर में मुख्य प्रतिमा जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की है, जो काले ग्रेनाईट पत्थर से बनी हुई है। इसके अतिरिक्त नाकोडा भैरव की प्रतिमा भी है ।

अन्य मंदिर– मूँछाला महावीर मंदिर, सूर्य नारायण मंदिर, सोमनाथ मंदिर, पार्श्वनाथ जैन मंदिर, नाडोल जैन मंदिर, शांतिनाथ जैन मंदिर।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : प्रतापगढ़ के मंदिर

भ्रमर माता मंदिर –

यह एक गुप्तकालीन मंदिर है जो प्रतापगढ़ के छोटी सादड़ी में स्थित है।

गोतमेश्वर महादेव-

• आदिवासी मीणाओं के आराध्य देव जिनका मंदिर अरनोद में स्थित है, जहाँ पर वैशाख पूर्णिमा को मेला भरता है।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : राजसमंद के मंदिर

श्रीनाथजी का मंदिर-

• वल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थस्थल नाथद्वारा श्रीनाथजी का मंदिर प्रमुख है। वल्लभाचार्य द्वारा पूजित यह मूर्ति पहले मथुरा में थी, वहाँ से 1519 ई. में इसे गोवर्धन लाई गई, तत्पश्चात् औरंगजेब के व्यवहार से क्षुब्ध होकर दाउजी महाराज श्रीनाथजी की मूर्ति सहित मेवाड़ के महाराणा राजसिंह के आमंत्रण पर सिहाड़ ग्राम में आ गये और वहाँ एक हवेली में मूर्ति को प्रतिष्ठित कर दिया। श्रीनाथजी का मंदिर हवेली संगीत का प्रमुख केन्द्र है।

द्वारकाधीश मंदिर-

• यह मंदिर राजसमंद के कांकरौली कस्बे में स्थित है जो पुष्टिमार्गीय वल्लभ सम्प्रदाय की 7 पीठ में से एक पीठ है। इस मंदिर का निर्माण राजसिंह के शासनकाल में हुआ था।

चारभुजा मंदिर-

यह राजसमंद के गढ़बोर में स्थित है। इस मंदिर की गिनती मेवाड़ के प्राचीन चार धामों में होती है। मेवाड़ के चार धाम कैलाशपुरी, केसरियाजी, नाथद्वारा तथा चारभुजा है।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर :सीकर के मंदिर

खाटूश्यामजी मंदिर –

• सीकर जिले के दाँतारागमढ़ तहसील में स्थित मंदिर जिसका निर्माण अभयसिंह द्वारा करवाया गया। यहाँ भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप श्यामजी का मंदिर है। जनश्रुति के अनुसार महाबली भीम के पौत्र बर्बरीक (घटोत्कच का पुत्र) का भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध से पहले रणचंडी के बलि देने के कारण बर्बरीक का सिर उतार लिया गया था और वरदान में कहा गया कि ‘कलयुग में तेरी श्याम नाम से पूजा होगी’, इसलिए खाटूश्यामजी की शीश की पूजा होती है और ‘शीश के दानी’ के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ फाल्गुन में विशाल मेला भरता है।

हर्षनाथ मंदिर-

सीकर में हर्ष की पहाड़ी पर स्थित गुर्जर प्रतिहारकालीन मंदिर, जिसका निर्माण विग्रहराज द्वितीय के काल में चौहान राजा सिंहराज द्वारा करवाया गया।

श्रद्धानाथ आश्रम –

अमृतनाथ जी के शिष्य श्रद्धानाथजी द्वारा सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ कस्बे में इस आश्रम की स्थापना की। यह आश्रम नाथ सम्प्रदाय का आस्था केन्द्र रहा है।

अन्य मंदिर– जीणमाता मंदिर (रैवासा), सप्त गौमाता मंदिर (रैवासा)।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : सिरोही के मंदिर

देलवाड़ा के जैन मंदिर

• यहां के जैन मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला की दृष्टि से पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। यहां पांच मंदिरों का समूह है। इस समूह के पाँच मंदिर हैं – 1. विमलशाही मंदिर, 2. लुनवासाही मंदिर, 3. पार्श्वनाथ या चौमुखा मंदिर, 4. पीतलहार मंदिर और 5. महावीर स्वामी मंदिर।

• इन मन्दिरों में राजस्थान- गुजरात की सोलंकी (चालुक्य) शिल्पकला शैली के प्रमुखता से दर्शन होते हैं।

विमलशाही मन्दिर

• देलवाड़ा स्थित पाँच मन्दिरों के समूह में विमलशाही मन्दिर सबसे प्राचीन है।

• इनका निर्माण 1031 ई. में गुजरात के सोलंकी शासक भीमदेव (प्रथम) के मंत्री विमल शाह ने करवाया था।

• इसके निर्माण में प्रयुक्त संगमरमर के पत्थर को गुजरात में स्थित अम्बाजी से हाथियों पर लाद कर यहाँ लाया गया था।

• यह मन्दिर प्रथम जैन तीर्थकर ऋषभदेव (आदिनाथ) को समर्पित है तथा गर्भगृह में आदिनाथ की सफेद संगमरमर से बनी प्रतिमा स्थापित है।

• मंदिर की परिक्रमा में 57 कमरे या देव कुलिकाएँ हैं।

• अष्टभुजाकार एवं आठ मीटर व्यास वाला रंगडंप इस मन्दिर का सबसे अधिक अलंकृत कलात्मक एवं आकर्षक भाग है। इसका निर्माण 1149 ई. में पृथ्वीपाल ने करवाया था।

लोनवासाही मंदिर

इस मन्दिर का निर्माण गुजरात के सोलंकी राजा भीम देव द्वितीय के मंत्री वास्तुपाल एवं तेजपाल ने 1230 ई. में करवाया था।

• इसके गर्भगृह में जैन तीर्थंकर नेमीनाथ की काले रंग की प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के प्रवेशद्वार के दोनों ओर देवरानी एवं जेठानी के दो आले बने हुए हैं, जिनमें तीर्थंकर आदिनाथ एवं शान्तिनाथ की प्रतिमाएं लगी हुई है।

• इसके प्रदक्षिणापथ में 52 कुलिकाएं है, जिसमें विभिन्न तीर्थकरों की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं।

पीतलहर मंदिर (ऋषभ देव मंदिर)

• इसका निर्माण 1374 ई. से 1433 ई. के मध्य गुजरात के भामाशाह ने करवाया था।

• यह मन्दिर प्रथम जैन तीर्थकर ऋषभदेव या आदिनाथ को समर्पित किया गया है।

• मन्दिर में स्थापित भगवान आदिनाथ की प्रतिमा पंच धातु की बनी हुई है, लेकिन इसमें मुख्य रूप से पीतल का उपयोग होने के कारण इसे पीतलहर नाम से जाना जाता है।

पार्श्वनाथ मंदिर

• इसका मन्दिर निर्माण मण्डलिक एवं उसके परिवार के लोगों ने 1458-59 ई. में करवाया था। यह मन्दिर 23वें जैन तीर्थकर पार्श्वनाथ को समर्पित है।

महावीर स्वामी मन्दिर

• देलवाड़ा के पाँच जैन मन्दिरों के समूह में यह मन्दिर सबसे छोटा एवं सामान्य प्रकार का है। यह मन्दिर अन्तिम तीर्थकर महावीर स्वामी को समर्पित है।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : टोंक के मंदिर

डिग्गी कल्याण जी मंदिर –

श्रीडिग्गी कल्याण जी का मंदिर टोंक में स्थित है। भगवान विष्णु के अवतार श्री कल्याण जी को माना जाता है। मंदिर का भव्य शिखर 16 स्तम्भों पर आधारित है।

देवनारायण मंदिर-

• यह देवधाम जोधपुरिया (टोंक) में स्थित है।

राजस्थान के प्रमुख मंदिर : उदयपुर के मंदिर

एकलिंगजी का मंदिर –

• एकलिंगजी का लकुलीश मंदिर उदयपुर जिले के कैलाशपुरी गाँव में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में मेवाड़ के शासक बप्पारावल ने करवाया था तथा इसका पुननिर्माण महाराणा रायमल ने करवाया था। एकलिंगजी मेवाड़ राजघराने के कुलदेवता थे जबकि मेवाड़ के शासक स्वंय को इसका दीवान मानते थे। मंदिर के गर्भगृह में काले पत्थर से निर्मित एकलिंगजी की प्रतिमा है। यहाँ कुम्भा द्वारा निर्मित विष्णु मंदिर भी है।

जगदीश मंदिर –

• उदयपुर में स्थित इस मंदिर का निर्माण महाराजा जगतसिंह प्रथम ने करवाया। भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में भगवान की काले पत्थर की मूर्ति है इसे सपने से बना मंदिर भी कहते है। यह मंदिर पंचायतन शैली का है। चार लघु मंदिरों से परिवृत्त होने के कारण इसे पंचायतन कहा गया है। मंदिर के चारों कोनों में शिव-पार्वती, गणपति, सूर्य तथा देवी के चार लघु मंदिरों तथा गर्भगृह के सामने गरुड़ की विशाल प्रतिमा है। कर्नल टॉड, गौरीशंकर हीराचंद ओझा, कविराज श्यामलदास आदि ने इस मंदिर के शिल्प की उत्कृष्टता की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।

सास-बहू मंदिर –

• उदयपुर जिले में स्थित नागदा में 1026 ई. में गुहिल शासक श्रीधर ने सास-बहू मंदिर का निर्माण करवाया। इनमें बड़ा मंदिर सास का मंदिर 10 सहायक देव मंदिरों से घिरा हुआ है जबकि छोटा मंदिर बहू का मंदिर जो पंचायतन प्रकार का है। यह दोनों मंदिर भगवान विष्णु (सहस्रबाहु) को समर्पित है।

अम्बिका मंदिर, जगत-

• 9वीं से 10वीं सदी के बीच बना यह मंदिर शिल्प कला के नजरिये से खजुराहो के मंदिरों से समानता रखता है। यही वजह है कि इसे ‘राजस्थान का लघु खजुराहो’ या ‘मेवाड़ के खजुराहो’ भी कहा जाता है। यहाँ नृत्य गणपति की विशाल प्रतिमा है। इसका जीर्णोद्धार विक्रम संवत् 1017 में किया गया। इसकी शिल्प कला के आधार पर इसे 9वीं शताब्दी में बनाया गया मंदिर माना जाता है। इसमें गर्भगृह, सभा मंडप, जगमोहन (पोर्च) और पंचरथ शिखर हैं। इसके सौन्दर्य की तुलना आहड़ के मंदिरों से भी की जा सकती है।

• अम्बिका माता का यह मन्दिर जगत ग्राम में स्थित है।

• मन्दिर के सभाग्रह के शिलालेख के अनुसार इसका जीर्णोद्धार विक्रम सम्वत् 1017 में गुहिल वंशीय शासक रावल अल्लाट या उनके पुत्र रावल नरवाहन के शासनकाल में वल्लुका के पुत्र सम्वापुरा नामक व्यक्ति ने करवाया था।

• प्रवेश मण्डप के बाहरी हिस्से में प्रेमी युगल का अंकन भी देखा जा सकता है।

ऋषभदेव मंदिर-

• उदयपुर में कोयल नदी के तट पर तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का मंदिर धुलैव नामक कस्बे में स्थित है। पूरा मंदिर प्रांगण केसर की सुगंध और आभा से मंडित है एवं इनकी अर्चना में केसर का भरपूर प्रयोग होता है, अतः यह स्थान केसरियाजी या केसरियानाथजी के नाम से प्रसिद्ध है। स्थानीय आदिवासी लोग उन्हें ‘कालाजी’ के नाम से पुकारते हैं तथा प्रतिवर्ष चैत्र कृष्णा अष्टमी को यहाँ विशाल मेला लगता है।

अन्य मंदिर– जावर का विष्णु मंदिर, बोहरा गणेश मंदिर, आबूनाथ मंदिर (नागदा)।

अन्य महत्वपूर्ण मंदिर :

गणेश मंदिर-

• सवाईमाधोपुर जिले में रणथम्भौर किले में देशभर से विख्यात त्रिनेत्र मंदिर बना हुआ है। सिंदूर लेपन की मात्रा अधिक होने के कारण मूर्ति का वास्तविक स्वरूप जानना कठिन है, पर इतना निश्चित है कि गणेशजी के मुख की ही पूजा की जाती है। गर्दन, हाथ, शरीर, आयुध व अन्य अवयव इस प्रतिमा में नहीं है। वैवाहिक जैसे मांगलिक अवसरों पर प्रथम नियंत्रण यहाँ पहुँचाया जाता है।

सुंधा माता मंदिर –

• जालौर जिले में सुंधा पर्वत पर सुंधा माता का मंदिर स्थित है। यह चामुंडा माता की प्रतिमा है।

बुड्ढा जोहड़ गुरुद्वारा –

• इस गुरुद्वारे का निर्माण 1954 में बाबा फतेहसिंह की देखरेख में श्रीगंगानगर में करवाया गया। यहाँ हर माह की अमावस्या को मेला लगता है।

रामद्वारा, शाहपुरा-

• भीलवाड़ा जिले में शाहपुरा कस्बे में रामस्नेही सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ है। यहाँ रामस्नेही सम्प्रदाय के संस्थापक स्वामी रामचरण का समाधि स्थल तथा एक विशाल रामद्वारा बना हुआ है। रामचरण के समाधि स्थल पर बारहदरी बनी है, जिस पर कलात्मक बारह स्तंभ एवं बारह दरवाजे लगे हुए हैं। रामद्वारा परिसर में सम्प्रदाय के आचार्यों और शाहपुरा के दिवंगत राजाओं की छतरियाँ बनी हुई हैं। यहाँ प्रतिवर्ष फूलडोल उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।

• झालरापाटन (झालावाड़), वरमाण (सिरोही), ओसियाँ (जोधपुर), चित्तौड़गढ़, उदयपुर में आज भी सूर्य मंदिर स्थित हैं।

सिरोही क्षेत्र में बसंतगढ़ और आहड़ क्षेत्र से प्राप्त धातु की जैन प्रतिमाएँ इसके प्राचीनतम उदाहरण हैं।

जालौर के मंदिर (आहौर), पातालेश्वर मंदिर (सेवाड़ा) वराह श्याम मंदिर (भीनमाल)

झुंझुनू के मंदिर – द्वारकाधीश मंदिर (नवलगढ़), जगदीश मंदिर (चिड़ावा), रानीसती मंदिर (झुंझुनू), शारदा मंदिर (पिलानी)

भीलवाड़ा के मंदिर वाणमाता मंदिर (माजुलगढ़)

हनुमानगढ़ के मंदिर – भद्रकाली मंदिर, गोगाजी समाधि, स्थल गोगामेडी (नोहर)

राजस्थान के प्रमुख मंदिर पार्ट 1 देखने के लिए यहाँ क्लिक करे click here

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