राजस्थान की वेशभूषा : Rajasthani Costumes

परिचय : राजस्थान की वेशभूषा

राजस्थान के लोगों की वेशभूषा से यहाँ की संस्कृति का सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है। यहा की वेशभूषा में मौलिकता के जो तत्त्व विद्यमान हैं, उन्ही का परिणाम है कि सदियों बीत जाने के बाद आज भी यहाँ की वेशभूषा की संस्कृति पूर्ववत ही अपनी पहचान सुदूर देशों तक में बनाए हुए है।

सुविधा के अनुसार राजस्थानी परिधान को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है –

राजस्थानी परिधान : राजस्थान की वेशभूषा

  1. जन सामान्य का परिधान. पुरूष. स्त्री

2. आदिवासियों का परिधान पुरूष. स्त्री

जन सामान्य के परिधान : राजस्थान की वेशभूषा

पुरुष परिधान

राजस्थान में पुरुषों का मुख्य पहनावा अंगरखी (बुगरती) तथा धोती है। सिर पर पगड़ी या साफा जाति व क्षेत्र भेद के अनुसार भिन्न-भिन्न रीति से बांधा जाता है। उदयपुरी पगड़ी व जोधपुरी साफा सर्वत्र प्रसिद्ध है। शहरों में लोग कोट, पेण्ट, कमीज, पायजामा, बुरशर्ट व नेकर पहनते है। इसके अलावा जोधपुरी कोट, ब्रीचीज व आतमसुख सर्वत्र पहना जाता है।

पुरुषों के प्रमुख परिधान :-

• पगड़ी-अटपटी, अमरशाही, उदयशाही, खंजरशाही, विजयशाही, शिवशाही और शाहजहानी राजस्थानी पगड़ियो की विभिन्न शैलियाँ है। सुनार आँटे वाली पगड़ी तथा बनजारे मोटी पट्टेदार पगड़ी का प्रयोग करते थे। पगड़ी को चमकीली बनाने के लिए तुरे, सरपेच, बालाबन्दी, धुगधुगी, गोसपेच, पछेवड़ी, लटकन, फतेपेच आदि का प्रयोग होता था। उच्च वर्ग के लोग चीरा और फेंटा बांधते थे। जयपुर में पगड़ियों के बलदार लपेटे होते है तो हाडौती में सादा पेचों की पगड़ियाँ पहनी जाती है।

विशेष अवसर पर पगड़ियाँ :-

1. विवाह. – मोठड़े की पगड़ी

2. युद्ध. – केसरिया पगड़ी

3. होली. – फूल-पत्ती की छपाई वाली पगड़ी

4. दशहरा. – मदिल

5. श्रावण। – लहरिया

साफा – साफा पगड़ी से मोटा, चौड़ाई में अधिक चौड़ा व लम्बाई में छोटा होता है। यह प्रत्येक दिन बांधा जाता है। जबकि पगड़ी महीने दो महीने में एक बार बांधी जाती है।

• दातिया – यह संकरा कपड़ा ठोढ़ी के ऊपर से होता हुआ पगड़ी में बांधा जाता था।

अंगरखी – ग्रामीण पुरुषो द्वारा शरीर के ऊपरी भाग में अंगरखी पहनी जाती है। सर्दी में अंगरखी का प्रयोग प्राचीन परम्परा के अनुकूल है। अंगरखी को बुगतरी, तनसुख, दुतई, गाबा, गदर, मिरजाई, डोढ़ी, कानो, डगला आदि भी कहते है।

• चोगा – अंगरखी के ऊपर पहने जाने वाला वस्त्र ।

• अमोवा – इस वस्त्र का प्रयोग शिकारी करते थे जो खाकी रंग से मिलता-जुलता था।

मलयगिरी – राजस्थान में मलयगिरी अर्थात् भूरे रंग से रंगा वस्त्र वर्षों तक सुगंधित रहता था। सिटी पैलेस, जयपुर में रखी हुई महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय की अंगरखियाँ अभी तक सुरक्षित है।

• खेस, शाल, पामड़ी शरद ऋतु में पुरुषों द्वारा कंधों पर डाले जाने वाला वस्त्र है।

• उत्तरीय, कौपीन – साधु-सन्यासियों द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र ।

• पछेवड़ा – शरद ऋतु में पुरुषों द्वारा ओढ़े जाने वाला वस्त्र ।

• जामा – शादी-ब्याह, दरबार आदि के समय पहने जाने वाला वस्त्र ।

• बिरजस – चूड़ीदार पायजामे के स्थान पर पहने जाने वाला वस्त्र ।

• कमरबंदा/पटका – कमर पर बाँधे जाने वाला, जिसमें कटार, तलवार, खंजर आदि ठूंसा रहता था।

स्त्री परिधान

• राजस्थान में स्त्रियों का परिधान बहुत ही रंगीन व कलामय है। सामान्य नारियां लहंगा या घाघरा, ओढ़ती, कांचली व अंगरखी पहनती है। मुस्लिम स्त्रियां चूड़ीदार पायजामा पहनती है और इसके ऊपर तिलक नाम का एक चोगा पहनती है। बदलते परिवेश में अब स्त्रियों में साड़ी व ब्लाउज तथा लड़कियों में सलवार या कमीज-पेंट का प्रचलन बढ़ा है।

स्त्रियों के प्रमुख परिधान :

• ओढ़नी/लूगड़ी – स्त्रियाँ सिर ढकने के लिए इस वस्त्र का उपयोग करती है। मारवाड़ की स्त्रियाँ लाल रंग की ओढ़नी पहनती है जिसे दामणी कहा जाता है।

• लहरिया भांत की ओढ़नी- श्रावण में विशेषकर तीज के अवसर पर राजस्थान की स्त्रियाँ लहरियाँ भांत की ओढ़नी तथा पुरुष लहरिया पगड़ी पहनते है। इसमें पाँच संख्या शुभ मानी जाती है अतः मांगलिक अवसरों पर पंचरंग लहरिया पहना जाता है। जयपुर के रंगरेज समुद्र लहर का लहरिया तथा गुलाबी रंग का राजशाही लहरिया रंगने में दक्ष है। प्रतापशाही नामक लहरिया का उल्लेख राजस्थानी साहित्य में भी मिलता है।

• मोठड़ा – लहरिये की धारिया दोनों ओर से एक-दूसरे से काटी हुई हो तो मोठड़ा कहलाता है।

• झिम्मी – फेरे अथवा सप्तपदी के समय मामा द्वारा दी गई और वधू द्वारा पहनी गई गोटे-किनारी युक्त लाल-गुलाबी ओढ़नी।

• पोमचा – इसका अर्थ है कमल फूल के अभिप्राय युक्त ओढनी से है। राजस्थान में नवजात शिशु की माँ के लिए मातृपक्ष की ओर से बेटे के जन्म के समय पीला पोमचा और बेटी के जन्म के समय गुलाबी पोमचा देने की परम्परा है।

• चुनरी – कोई भी मांगलिक कार्य चुनरी के बिना अपूर्ण है। इसके बुद्ध तकनीकी से बने बंधेज सर्वाधिक लोकप्रिय है। जोधपुर में बनी चुनरी के रंग बड़े चमकीले, टिकाऊ और बंधेज बारीक होती है। सीकर के बंधेज की गिनती भी बारीक बंधेज में होती है।

कुर्ती – यह महिलाओं द्वारा शरीर के ऊपरी हिस्से में पहने जाने वाला वस्त्र है।

• कांचली – कुर्ती के नीचे कांचली अर्थात् बांह वाली अंगिया पहनी जाती है।

• साड़ी – प्राचीन काल में चोल, निचोल, पट, दुकूल, अंसुक, वसन, चीर-पटोरी, चोरसो, ओढ़नी, चूँदड़ी, धोरावाली आदि विविध साड़ियो के नाम थे। चूँदड़ी और लहरिया राजस्थान की प्रमुख साड़ी रही है।

• सलवार – कमर से लेकर पांव तक महिलाओं द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र है।

• घाघरा – महिलाओं द्वारा कमर से एड़ी तक पहने जाने वाला वस्त्र है।

• लहंगा – घाघरा का छोटा रूप है।

• पेजवास – पेजवास शरीर के ऊपर से नीचे तक ढकती हुई पूर्ण पोशाक है जो चोली और स्कर्ट के साथ होती है।

आदिवासियों के परिधान : राजस्थान की वेशभूषा

राजस्थान के आदिवासी समुदाय का परिधान अन्य समुदायों से सर्वथा भिन्न है। इनका परिधान आदिवासी संस्कृति का परिपायक है जिस पर ये लोग गर्व करते है तथा इसके जीवंत रखना चाहते हैं।

पुरुषों के प्रमुख परिधान :-

• अंगोछा – आदिवासी पुरुषों द्वारा सिर पर बांधे जाने वाला वस्त्र

पोतिया – भीलों के सिर पर बांधे जाने वाला वस्त्र ।

• खपटा – सहरिया जनजाति के पुरुषो द्वारा पहने जाने वाला साफा।

• ढेपाड़ा – भील जनजाति के पुरुषों द्वारा पहने जाने वाली तंग धोती।

• पंछा – सहरिया जनजाति के पुरुषों द्वारा पहने जाने वाली धोती ।

• खोयतू – भील जनजाति के पुरुषो द्वारा कमर पर बांधे जाने वाली लंगोटी।

• अंगरखा – पुरुषों द्वारा पहने जाने वाला काले रंग का वस्त्र

सलूका – सहरिया जनजाति के पुरुषो द्वारा पहने जाने वाली अंगरखी।

स्त्रियों के प्रमुख परिधान :-

• ताराभांत की ओढ़नी यह आदिवासी महिलाओं की अत्यंत लोकप्रिय ओढ़नी है। इसकी जमीन भूरी व लाल होती है।

• ज्वार भांत की ओढ़नी- इसकी सफेद जमीन के दोनों ओर ज्वार जैसी छोटी-छोटी बिन्दियाँ निर्मित होती है।

• केरी भांत की ओढ़नी- इसकी जमीन लाल होती है तथा जमीन में ज्वार-भांत जैसी बिंदियां होती है।

• कटकी – यह अविवाहित युवतियों व बालिकाओं की ओढ़नी है। इसकी जमीन लाल होती है जिस पर काले व सफेद रंग की
बूंटियां होती है। इसमें छपने वाले अलंकरण को पावली तथा छपी ओढ़नी को पावली भांत की ओढ़नी कहते है।

चूनड़ – आहड़ (उदयपुर) में भीलो की चूनड़ी बनती है जिसकी जमीन कत्थई या काली होती है। इस पर सफेद रंग की बिंदियां होती है।

लूगड़ा – विवाहित स्त्रियों का पहनावा है। इसकी जमीन सफेद होती है। जिस पर लाल रंग की बूटी निर्मित होती है।

• नांदणा – यह नीले रंग की छींट है जो आदिवासियों का प्राचीन वस्त्र है।

• रेणसाई – यह लंहगे की छींट है जिसकी जमीन काली होती है तथा इस पर लाल-भूरे रंग की बूटियाँ बनी होती है।

कछावू – आदिवासी महिलाओं द्वारा घुटनों तक पहने जाने वाला घाघरा ।

• फूदड़ी – आदिवासी महिलाओं का वस्त्र, जिसमे ताराभात का अलंकरण होता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य : राजस्थान की वेशभूषा

• सूती ताने पर बादले के बाने से बुनी बेल को गोटा कहते है। लप्पा (चौड़ा गोटा), लप्पी (कम चौड़ाई वाला), बाँकड़ी, किरण, गोखरू, मुकेश आदि गोटे के विविध प्रकार है। चौड़ाई के अनुसार गोटा चौमास्या, आठमास्या आदि प्रकार का होता है। राजस्थान में सीकर जिले का खण्डेला कस्बा गोटा उद्योग का प्रसिद्ध केन्द्र है।

• प्राचीन राजस्थान में बुनकरों द्वारा उत्कृष्ट कपड़े में कैथुन, माँगरोल (बारां) का मसूरिया, तनसुख व मथालिया (जोधपुर) की मलमल, बीकानेर-जैसलमेर की ऊन विविध मूल्यवान वस्त्र बनाने में काम आती है।

• टुकड़ी मारवाड़ के देशी कपड़ों में सवस्तॊत्तम मानी जाती थी। यह जालौर तथा मारोठ कस्बों में अच्छी बनती है।

• शेखावाटी की स्त्रियां लाल गोटे की ओढ़नियां पर कशीदे का काम करती है, जिनमें ऊँट, मोर, बैल, हाथी, घोड़े बने होते है।

• शेखावाटी में अलग-अलग रंग के कपड़ों को विविध डिजायनों में काट कर कपड़े पर सिलाई की जाती है जिसे पेचवर्क कहते है।

• मारवाड़ में कसूमल वस्त्रों का प्रचलन रहा है। जो प्राय लाल रंग के होते है।

महत्त्वपूर्ण प्रश्न : Important Questions : राजस्थान की वेशभूषा

[आरपीएससी तृतीय अध्यापक ग्रेड परीक्षा-2006]

1. लप्पा, लप्पी, किरण एवं बाँकड़ी यह सब –

(A) राजस्थानी फिल्म सासु माँ के किरदार हैं।

(B) गोटे के भिन्न-भिन्न प्रकार हैं।

(C) दुल्हन की साड़ियों के नाम हैं।

(D) मोठ की अधिक पैदावार देने वाली किस्में हैं।

(बी)

2 राजस्थान में पोमचा कहते हैं?

[आरपीएससी तृतीय श्रेणी शिक्षक परीक्षा-2006]

(A) महिलाओं की ओढ़नी विशेष को

(B) पुरुषों के साफे को

(C) महिलाओं की ऊनी शॉल को

(D) आदिवासी महिलाओं के वस्त्र विशेष को

(ए)

2. राजस्थान में पोमचा, एक प्रकार की ओढ़नी पहनी जाती है-

[पशु चिकित्सा अधिकारी-2020]

(A) माँ बनने के उत्सव पर

(B) विवाह के अवसर पर

(सी) एक अविवाहित लड़की द्वारा

(D) एक विधवा द्वारा

(ए)

4. ‘पोमचा’ (स्त्री परिधान) को बोलचाल की भाषा में कहा जाता है-

[योगो एवं प्राकृतिक चिकित्सा अधिकारी-2021]

(A) पीला

(B) कँवर जोड़

(C) फेटिया

(D) कटकी

(A)

5. बखतरी वस्त्र क्या है?

[आरपीएससी तृतीय श्रेणी शिक्षक परीक्षा-2009]

(A) ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों के शरीर के ऊपरी भाग में पहना जाने वाला वस्त्र ।

(B) ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों के शरीर के कमर के नीचे के भाग में पहना जाने वाला वस्त्र ।

(C) ग्रामीण पुरुषों के सिर का वस्त्र।

(D) ग्रामीण महिलाओं के वस्त्र।

(ए)

6 दुतई, गदर, डगला, कानो एवं मिरजाई किससे सम्बन्धित है-

(A) तलवार

(C) अंगरखी

(B) पगड़ी

(D) ओढ़णी

(सी)

7. ‘मदील’ एक प्रकार का –

[द्वितीय ग्रेड (अंग्रेजी) परीक्षा-2011]

(A) सांगीतिक यंत्र

(B) आभूषण

(C) पगड़ी

(D) लोकसंगीत

(सी)

8. राजस्थान के संदर्भ में पचवेदा/पछेवड़ा क्या है-

[सहायक कृषि अधिकारी-2013]

(A) जूटपट्टी

(B) कच्ची मिट्टी के खिलौने

(C) मोटी सूती शॉल

(D) हस्त निर्मित कागज

(सी)

9. निम्न में से कौनसा पुरुष का वस्त्र नहीं है –

[व्याख्याता आयुर्वेद विभाग-2021]

(A) लप्पा

(B) जामा

(C) चुग्गा

(D) अंगरखी

(A)

10. ‘झिम्मी’ क्या है –

(A) पुत्र-जन्म के पश्चात चौहदवें दिन होने वाली रस्म

(B) पर्यूषण पर्व के दौरान तीन दिन का उपवास

(C) फेरे अथवा सप्तपदी के समय मामा द्वारा दी गई और वधु द्वारा पहनी गई गोटे-किनारी युक्त लाल-गुलाबी ओढ़णी

(D) सन्तान प्राप्ति के बाद बेटी को विधि-विधान से ससुराल विदा करने की प्रक्रिया

(सी)

11. उद्देशाही, अमरशाही, विजयशाही और शाँहजहानी ये सब –

[आरपीएससी तृतीय श्रेणी शिक्षक परीक्षा-2006]

(A) कैथून में साड़ी बनाने की विधाएँ हैं।

(B) पैलेस ऑन व्हील्स में उपलब्ध रजवाड़ी शराब के प्रकार हैं।

(C) महिलाओं के लिए हीरे जड़ित नवलखा हार की किस्में हैं।

(D) राजस्थानी पगड़ियों की शैलियाँ हैं।

(डी)

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