Introduction : बैराठ सभ्यता
1. यह सभ्यता जयपुर से लगभग 170 किमी. उत्तर पूर्व की ओर स्थित है। बैराठ (विराटनगर) एक पौराणिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व का बहुत प्राचीन स्थान है। यह वर्तुलाकार पर्वतमालाओं के मध्य स्थित है जो अपनी ताँबे की खानों के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहाँ की पर्वत श्रेणियों से बैराठ नदी और बान्ड्रेल नाला निकलता है।
2. प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी बैराठ (शाहपुरा, जयपुर) से बीजक की पहाड़ी, भीमजी की डूंगरी, महादेव की डूंगरी, गणेश या मोती डूंगरी से सिंधु घाटी के समकालीन एवं मौर्यकाल के अवशेष प्राप्त होते हैं।
3. बाणगंगा नदी के किनारे स्थित इस सभ्यता की खोज कैप्टन बर्ट (1837) व उत्खनन दयाराम साहनी (1936-37), नीलरत्न बनर्जी, कैलाशनाथ दीक्षित (1962-63) व एम.एन. देशपांडे ने किया। • 1864-65 में डॉ. कनिंघम ने इसका अध्ययन किया। इसके सहायक डॉ. कार्लाइल ने 1871-72 में यहाँ का गहन निरीक्षण किया। डॉ. डी. आर भंडारकर ने 1910 में इस क्षेत्र का गहन निरीक्षण किया।
4. बीजक की पहाड़ी का पहला उत्खनन 1936-37 में दयाराम साहनी द्वारा तथा उसके बाद 1962-65 में नीलरत्न बनर्जी और कैलाश नाथ दीक्षि द्वारा किया गया। यहाँ नीलरत्न बनर्जी को उत्खनन में ईंट व काँच के टुकड़े तथा एम.एन. देशपांडे को छेद वाले कई उपकरण प्राप्त हुए।
5. महाभारत काल में विराटनगर नाम से प्रसिद्ध इस नगरीय सभ्यता स्थल से प्रचुरमात्रा में प्राचीन शैल चित्र प्राप्त हुए हैं।
प्रागैतिहासिक काल : बैराठ सभ्यता
1. गणेश डूंगरी, बीजक पठारी, भीम डूंगरी, बनेडी, ब्रह्मकुण्ड एवं जीणगोर की पहाड़ियों से पाषाणकालीन शैलचित्र प्राप्त हुए है जिनमें हाथी,भालू, चीता, हरिण, शुतुरमुर्ग, सांड, वनस्पति आदि प्रमुख हैं।
2. भीम डूंगरी से पाषाण के औजार बनाने के कारखाने भी मिले है।
3. यहाँ प्राप्त शैलचित्रों में लाल रंग से चित्रांकन किया गया है। यहाँ से अत्यधिक मात्रा में शैल चित्र प्राप्त हुए हैं। इसी कारण से प्राचीन युग की चित्रशाला कहा जाता है।
महाभारत काल : बैराठ सभ्यता
• इस काल में यह विराटनगर कहलाता था जो मत्स्य जनपद की राजधानी थी।
• मत्स्य जनपद के राजा विराट के यहाँ पांडवों ने अपने अज्ञातवास के अंतिम दिन व्यतीत किए थे। यहाँ स्थित भीम की डूंगरी, किंचक का आवास,बाणगंगा आदि स्थल इस सभ्यता को महाभारत से जोड़ते हैं।
• भीमताल तथा कौरवों द्वारा चुरा कर ले गयी गायों के खुरों के निशान यहाँ से प्राप्त हुए है।
मौर्य काल : बैराठ सभ्यता
• यहाँ से मौर्यकाल और उत्तरवर्ती काल के अवशेष मिलते हैं।
• बीजक (आबू) की पहाड़ी पर चुनार पत्थरों पर ‘सिंह उत्कीर्ण’ दो अशोक स्तम्भ प्राप्त हुए हैं। यहाँ से गोलाकार बौद्ध मंदिर (चैत्य) बौद्ध स्तूप के टुकड़े और एक विशाल बौद्ध विहार के चिह्न मिले हैं। संभावना है कि इन बौद्ध स्तूपों को अशोक के समय हूण शासक मिहिरकुल द्वारा 510- 540 ई. के मध्य बैराठ पर आक्रमण के समय तोड़ा गया जो हीनयान सम्प्रदाय से संबंधित प्राचीनतम स्थापत्य माना जाता है।
. चीनी यात्री ह्वेनसांग 634 ई. में बैराठ आया था। ह्वेनसांग ने यहाँ आठ बौद्ध मठों का ऊलेख किया है। उसने यहाँ की बैल व भेड़ें प्रसिद्ध बताई हैं।
भाबू लघु शिलालेख/कलकत्ता बैराठ अभिलेख : बैराठ सभ्यता
> विराटनगर (जयपुर) स्थित बीजक की पहाड़ी से 1837 ई. में कैप्टन बर्ट ने अशोक का प्रथम भाबू शिलालेख खोजा। 1840 में बर्ट ने इसे कलकत्ता के संग्रहालय एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल में स्थानांतरित करवा दिया।
> इस शिलालेख में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं तथा त्रिरलों (बुद्ध, धम्म व संघ) का उल्लेख प्राप्त होता है।
> सम्राट अशोक के बौद्ध धर्मावलम्बी होने का सबसे स्पष्ट प्रमाण भाबू शिलालेख से ही प्राप्त होता है। इसमें अशोक बुद्ध, धम्म तथा संघ के प्रति अपनी आस्था प्रकट करता है। इसी लेख में अशोक को ‘देवनामप्रिय’ व ‘मगधाधिराज’ (मगध का राजा) कहा गया है।
> भाबू शिलालेख का अनुवाद कैप्टन किटोई ने किया था।
> अशोक के दूसरे शिलालेख की खोज कार्लाइल ने की जिसका संपादन वुहलर और सेर्नाट ने किया। यह बीजक की पहाड़ी (हनुमान मंदिर) के पास मिला।
मुगल काल : बैराठ सभ्यता
• बैराठ में अकबरकालीन टकसाल के प्रमाण मिले है।
• अकबर, जहांगीर व शाहजहाँ के ढाले गए तांबों के सिक्को पर ‘बैराठ’ अंकित है।
• यहाँ मुगल गार्डन, सराय एवं ईदगाह का निर्माण भी करवाया गया था।
राजस्थान की प्राचीन सभ्यता {बैराठ सभ्यता} सारांश :
• बैराठ के उत्खनन में सूती वस्त्र में बंधी चाँदी की आठ ‘पंचमार्क’ और 28 इण्डोग्रीक (हिन्द-यूनानी) शासकों की कुल मिलाकर 36 मुद्राएँ मिली हैं जो बैराठ पर यूनानी अधिकार प्रमाणित करती है। इससे प्रमाणित होता है कि बैराठवासी वस्त्र-बुनाई कला
को जानते थे।
• बैराठ से शंख लिपि (गुप्त लिपि), स्वास्तिक, त्रिरत्नचक्र, लौहे के तीर व भालों के भी प्रचूर प्रमाण मिले है।
• बैराठ से मिले मृदभाण्ड लौह काल के पश्चात् स्लेटी
रंग के चित्रित और काली पॉलिशयुक्त मृदभाण्ड संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
• पर्वतीय प्रदेश होने पर पत्थरों की प्रचूरता के उपरान्त भी बैराठ के निवासियों ने भवन निर्माण में मिट्टी की पकाई गई ईंटों का
प्रयोग किया है।
• यहाँ से प्राप्त ईंटों की बनावट मोहनजोदड़ो की इंटो
के समान है।
• महाजनपदकाल में बैराठ मत्स्य जनपद की राजधानी थी।
• उत्तर भारतीय काले चमकीले मृद्भाण्ड वाली संस्कृति
का प्रतिनिधित्व करने वाले स्थलों में राजस्थान में सबसे महत्वपूर्ण स्थल बैराठ है।
• कनिंघम, कार्लाइल, बुहलर व सेर्नाट ने भी बैराठ का अध्ययन किया।
• दयाराम साहनी के अनुसार हूण आक्रांता मिहिरकुल ने
बैराठ का ध्वंस कर दिया था।
• डॉ. सत्यप्रकाश का कथन है कि “स्वतंत्रता के
पश्चात् जो कुछ हमने पाकिस्तान को देकर खोया है, उससे कही ज्यादा बैराठ खोजकर पाया है।”
• जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह के शासनकाल में यहाँ
एक स्वर्ण मंजूषा प्राप्त हुई है, जिसमें भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष थे।
1 thought on “राजस्थान की प्राचीन सभ्यता बैराठ सभ्यता Rajasthan Ki Prachin Sabhyta Bairath”