मोतीलाल तेजावत का एकी/भोमट भील आंदोलन :Janjati Aandolan

परिचय : मोतीलाल तेजावत

मोतीलाल तेजावत का एकी/भोमट भील आंदोलन

मोतीलाल तेजावत का जन्म उदयपुर राज्य के झाड़ोल ठिकाने के कालियारी गांव में ओसवाल जैन परिवार के यहां हुआ। इन्हें आदिवसियों का मसीहा व बावजी के नाम से जाना जाता था।

• मोतीलाल तेजावत ने झाड़ोल ठिकाने के कामदार के रूप में कार्य किया लेकिन जागीरदार से विवाद होने के कारण नौकरी छोड़कर भील क्षेत्र में घूम-घूमकर मिर्च मसाला बेचने लगे। पोसनिया ठिकाने में सामलिया नामक स्थान पर लगने वाले चेत्र-विचित्र मेले में नियमित रूप से दुकान लगाते थे।

मोतीलाल तेजावत की समाज सुधार गतिविधियों ने उन्हें भीलों में लोकप्रिय बना दिया इसी दौरान वह विजयसिंह पथिक तथा अन्य नेताओं से मिले तथा उनके साथ मिलकर भीलों की समस्याओं के समाधान हेतु कार्यक्रम तैयार किया।

• मोतीलाल तेजावत ने 1921 में चित्तौड़गढ़ जिले के मातृकुण्डिया में वैशाख पूर्णिमा पर लगने वाले मेलें के अवसर पर ‘एकी आंदोलन’ का सूत्रपात किया। आदिवासियों में एकता स्थापित करने के इस अभियान को ही ‘एकी’ आंदोलन के नाम से जाना गया।

• एकी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारी लगान, अन्यायपूर्ण लाग-बाग और बेगार से किसानों को मुक्त करवाना था।

• मेवाड़ का पहाड़ी क्षेत्र, जहाँ भील और गरासिया रहते थे, भोमट कहलाता था। यह आंदोलन भोमट क्षेत्र में चलाया गया इसलिए इसे ‘भोमट आंदोलन’ भी कहा जाता है।

• मोतीलाल तेजावत ने जुलाई, 1921 में झाड़ोल से भीलों का करबन्दी सहित असहयोग आंदोलन आरम्भ कर दिया था।

मोतीलाल तेजावत ने बिजोलिया किसान आंदोलन को भी प्रोत्साहित किया था।

• तेजावत व पाँडोली गाव के किसान नेता गोकुल जाट के नेतृत्व में उदयपुर महाराणा से मिलने के लिए सात-आठ किसान व आदिवासी पिछोला झील को पाल पर एकत्र हुए। तेजावत ने महाराणा के समक्ष 21 सूत्री माँगें प्रस्तुत की, जिसे ‘मेवाड़ की पुकार’ की संत्रा दी गई। महाराणा ने 18 मांगों को स्वीकार कर लिया मगर वन सम्पदा, बैठ बेगार एवं सुअरों से संबंधित माँगों को स्वीकार नहीं किया।

• इन तीनों माँगों को अस्वीकार करने पर तेजावत ने जगदीश मंदिर (उदयपुर) में आंदोलन जारी रखने की घोषणा की।

• 8 जुलाई, 1921 को मेवाड़ राज्य के भीलों के अनुरोध पर मादड़ीपाड़ा के भीलों ने लाग-बाग व भूमि कर देने से इन्कार कर दिया।

• डूंगरपुर के शासक ने अपने राज्य में भील आंदोलन को फैलने से रोकने के लिए जुलाई, 1921 में बेगार समाप्ति के आदेश दिए।

• मेवाड़ महाराणा ने भी खालसा क्षेत्र के किसानों एवं भीलों को रियायतें देने की घोषणा की। मगर जागीरदारों ने किसानों को किसी भी प्रकार की रियायत नहीं दी, जिससे आंदोलन झाड़ोल, कोल्यारी, मादड़ीप‌ट्टा, पानरवा, दाँता, इंडर, सिरोही क्षेत्रों में फैल गया।

• 19 अगस्त 1921 को झाड़ोल ठाकुर ने तेजावत को गिरफ्तार कर लिया, हजारों भीलों ने एकत्र होकर तेजावत को मुक्त करवा लिया। मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में 1921 में नीमड़ा में एक विशाल आदिवासी सम्मेलन हुआ, जिसमें सेना की गोलीबारी से अनेक भील तारे गए। जनवरी, 1922 को मोतीलाल तेजावत सिरोही राज्य में पलायन कर गये।

• उसकी अनुपस्थिति में जवास, थाना, छम, पाड़ा और मादड़ी खेरवाड़ा भोमट के पांच प्रमुख ठिकानों में बेगार के नए नियमों की घोषणा की गई।

• मार्च, 1922 में मोतीलाल तेजावत अपने जनजागृति अभियान के दौरान ईंडर राज्य की पाल पर ठहरे हुये थे।

• 7 मार्च, 1922 को मेजर सटन के नेतृत्व में मेवाड़ भील कोर के सैनिकों ने उन्हें घेर लिया और गोलिया चलाई जिसमें मोतीलाल के दल के 22 व्यक्ति मारे गए। इस घटना के पश्चात् खैरवाड़ा भोमट क्षेत्र में भील आंदोलन शिथिल पड़ गया था।

• मेवाड़ के रेजीडेंट के हस्तक्षेप से जून 1922 में पानरवा, जुड़ा और ओगणा के जागीरदारों द्वारा किसानों को रियायतें दी गई, जिससे सम्पूर्ण भोमट क्षेत्र में शांति स्थापित हो सकी।

सिरोही राज्य में ‘एकी’ आन्दोलन : मोतीलाल तेजावत

• सिरोही राज्य में भी भारी संख्या में भील और गरासिया आदिवासी रहते थे। वे उदयपुर के आन्दोलन से प्रभावित थे इसलिए उन्होंने मोतीलाल तेजावत को सिरोही में भी ऐसा आन्दोलन चलाने हेतु आमंत्रित किया था। अब तेजावत की गतिविधियों का दूसरा महत्वपूर्ण केन्द्र सिरोही राज्य बन गया।

• फरवरी, 1922 के इस समय तक तेजावत सिरोही राज्य के भीलों एंव गरासियों में अत्यधिक लोकप्रिय हो गये थे।

• ये उसे मेवाड़ के गांधी के नाम से पुकारते थे। भीलों का विश्वास था कि तेजावत गाँधी का धर्म दूत है।

• मोतीलाल तेजावत की बढ़‌ती लोकप्रियता के कारण सिरोही राज्य सरकार ने जनवरी, 1922 में राज्य में सभाएं करने पर रोक लगा दी।

तेजावत ने किसानों को संकल्प दिलवाया की किसानों को सवा रूपया व पाँच मन अनाज प्रति हल से अधिक लगान नहीं देना है। • सिरोही राज्य में सभाओं पर प्रतिबंध होने के बावजूद 3 फरवरी, 1922 को आबूरोड़ के पास संगाना गांव में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। जिसमें 10 हजार आदिवासी किसानों ने भाग लिया।

• सिरोही राज्य का दीवान रमाकांत मालवीय (मदनमोहन मालवीय का पुत्र) भीलों से समझौता करने के पक्ष में था। उसने पथिकजी, रामचन्द्र वैध तथा ब्रह्मचारी हरि को समझौता कराने के उद्देश्य से सिरोही आमंत्रित किया।

• 11 फरवरी 1922 को कांग्रेस ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया था तथा ब्रिटिश अधिकारियों ने सम्पूर्ण भारत में किसान व आदिवासी आंदोलनों को बलपूर्वक कुचलने की नीति बनाई। इसलिए 12 फरवरी, 1922 को गोपेश्वर नामक स्थान पर भीलों की सभा में रमाकांत मालवीय और विजयसिंह पथिक ने किसानों की समस्याओं को दूर करने का आश्वासन दिया। परन्तु समस्या का समाधान नहीं हो पाया।

महात्मा गांधी ने भी मणिलाल कोठारी को मोतीलाल तेजावत के पास आंदोलन वापस लेने के लिए भेजा लेकिन ये सभी प्रयास असफल रहे। असफल प्रयासों से झुंझलाकर सिरोही राज्य ने गरासियों के मुख्य गांव सियावा में कर वसूली हेतु सेना भेजने का निर्णय लिया। इस सैनिक कार्यवाही में अनेक गरासियों की जानें गयी तथा फौज ने उनके घर, अनाज व पशुओं को जला दिया।

5 मई, 1922 को सेना ने मेजर प्रियार्ड के नेतृत्व में बालोरिया गाँव पर आक्रमण किया। जिसमें 11 लोग मारे गए।

• 6 मई को भूला नवावास नामक गांव को सैनिक आक्रमणों का शिकार होना पड़ा।

• राजस्थान सेवा संघ की ओर से रामनारायण चौधरी व सत्यभक्त ने घटनास्थल की दूसरी दुःखद घटना शीर्षक से पैम्पलेट प्रकाशित किया।

• इन सैनिक कार्यवाहियों ने भीलों व गरासियों के मुखिया को घुटने टेकने पर मजबूर कर किया। आदिवासियों के मुखिया सिरोही के दीवान व पॉलिटिकल ऑफिसर से 11 व 12 मई, 1922 को मिले तथा एकी की शपथ तोड़ते हुए सहमती व्यक्त की। इस प्रकार सिरोही का आदिवासी आन्दोलन सत्ता पक्ष द्वारा कुचल दिया गया। हालांकि आन्दोलन वापस जीवित न हो इस डर से शासक ने आदिवासियों को कुछ रियासतें भी दी।

• 1923 में देलवाड़ा के पास छोछर नामक स्थान से सिरोही राज्य के भीलों एवं गरासियों ने नए सिरे से एकी आंदोलन का सूत्रपात किया। इंडर के प्रजामण्डल ने भी इसमें रुचि ली।

• तेजावत आदिवासियों के सहयोग से छद्‌मवेश में मेवाड़ व गुजरात में जनजाति उत्पन्न करता रहा। 1927 में सिरोही राज्य के पिण्डवाड़ा और संतपुर परगनों के भीलों और गरासियों ने पुनः आन्दोलन शुरू कर दिया। आदिवासी पंचों और सिरोही राज्यों के अधिकारियों के मध्य समझौता हो गया तथा परगनों में पुनः शांति व्यवस्था कायम हो गई।

• अंततः महात्मा गांधी की सलाह पर तेजावत ने 4 जून, 1929 को इंडर राज्य के खंड ब्रह्या गाँव में आत्मसमर्पण कर दिया। जुलाई माह में इंडर राज्य ने तेजावत को मेवाड़ राज्य को सुपुर्द कर दिया। मेवाड़ सरकार ने उसे केन्द्रीय कारागार में रखा और उस पर उस राजद्रोह का मुकदमा चलाकर लम्बे कारावास की सजा दी गई।

• मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में आरम्भ हुआ सिरोही का आदिवासी आन्दोलन सही अर्थों में 1929 में तेजावत की गिरफ्तारी के पश्चात् ही समाप्त हुआ।

• तेजावत ने राजनीतिक गतिविधियों में शामिल न होने का वादा करने पर उन्हें 3 अप्रैल, 1936 को उदयपुर केन्द्रीय जेल से मुक्त कर दिया।

• 24 अप्रैल, 1938 को मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना हुई। तेजावत मेवाड़ प्रजामंडल का सक्रिय सदस्य था।

• 1939 में उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए सत्याग्रह में भाग लेने गिरफ्तार किया गया।

• उदयपुर राज्य ने उनके गुजारे के लिए 30 रुपये प्रतिमाह का भत्ता स्वीकृत किया।

• मोतीलाल तेजावत को 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार किया गया।

• 1945 में भीमट क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश के कारण उन्हें पुनः गिरफ्तार किया गया तथा फरवरी 1947 में वो जेल से रिहा हुए।

• स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् आदिवासियों की स्थिति सुधारने के लिए उनके मध्य रचनात्मक कार्य किए।

• सुर्जी भगत, गोविन्द गिरि व मोतीलाल तेजावत भील आंदोलन के प्रमुख नेतृत्वकर्ता थे।

• भूरेलाल बया, मांगीलाल पण्ड्या तथा राजकुमार मानसिंह के नेतृत्व में वनवासी सेवा संघ की स्थापना की गई। 1963 ई. में तेजावत की मृत्यु हो गई।

नोटः- लसाड़िया में भील आन्दोलन का नेतृत्व संत मावजी ने किया। इसका मुख्य उद्देश्य मेवाड़ बागड़ और आस-पास के क्षेत्रों के भीलों का सामाजिक व आध्यात्मिक उत्थान करना था।

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