राजस्थान का जनजाति आंदोलन : मेर विद्रोह ( 1818-1821 ).

मेर विद्रोह (1818-1821)

मेर बाहुल्य क्षेत्र मेरवाड़ा कहलाता था, जिसका भू-भाग अजमेर, मेवाड़ व मारवाड़ क्षेत्र के अंतर्गत था।

• यह क्षेत्र अंग्रेजों के आगमन से पूर्व सीधे तौर पर किसी राजनीतिक सत्ता के नियंत्रण में नहीं था।

• अंग्रेज मेरों को अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे क्योंकि वह आदिवासियों द्वारा किये जा सकने वाले विद्रोह को सम्भावानाओं को पहले ही कम कर देना चाहते थे तथा दूसरा कारण यह था कि अंग्रेज मेरों पर राजस्व घोंपना चाहते थे यह तभी संभव था जब मेर अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दे। इसीलिए सर्वप्रथम अंग्रेजों ने मेरवाड़ा को अपने पूर्ण नियंत्रण में लाने का प्रयास किया। इसी कारण मेरों ने 1818 में विद्रोह प्रारम्भ कर दिया।

• 1818 में अंग्रेज सुपरिन्टेन्डेट एफ. विल्डर ने मेरवाड़ा के शाक गाँव एवं अन्य गाँव के साथ समझौता किया, जिसके अनुसार मेरों ने लूट-पाट न करने की सहमति प्रदान की। यह अंग्रेजों का एक छलावा था ताकि अंग्रेज मेरवाड़ा क्षेत्र में घुसकर मेरों पर आक्रमण कर सके।

मार्च, 1819 में एफ. विल्डर ने किसी साधारण घटना को मेरों द्वारा उपर्युक्त समझौते का उल्लंघन मानते हुए मेरवाड़ा क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया।

• उसने नसीराबाद से सैनिक साथ लेकर मेरों को दण्डित करने का अभियान चलाया तथा उनकी निगरानी के लिए पुलिस चौकियां स्थापित की इस प्रकार अंग्रेज मेरों को घेरने लगे।

मेवाड़ राज्य की ओर से कर्नल टॉड ने भी मेवाड़ में अंग्रेजों को इस नीति का अनुसरण करते हुए पुलिस थानों की एक श्रृंखला स्थापित की जिसका उद्देश्य मेवाड़ के भू-भागों की मेरों के निरन्तर आक्रमण से रक्षा करना था। फलस्वरूप मेरों ने 1820 में जगह-जगह विद्रोह कर दिया तथा अपने क्षेत्रों से पुलिस चौकियों को हटाने का प्रयास किया।

• नवम्बर, 1820 में झाक गाँव में ब्रिटिश पुलिस के हत्याकाण्ड ने अंग्रेजों तथा साथ ही मेवाड़ व मारवाड़ राज्यों को भयभीत कर दिया था।

• यहाँ मेर विद्रोह अत्यन्त व्यापक व भयानक था। मेरों ने अंग्रेजी पुलिस चौकियों को जला दिया तथा सिपाहियों को मार दिया।

• बढ़ते हुए मेर विद्रोह को जनवरी, 1821 के अंत तक अंग्रेज, मेवाड़ एवं मारवाड़ की संयुक्त सेनाओं ने आक्रमण कर दवा दिया।
• मेरवाड़ा क्षेत्र मेवाड़, मारवाड़ तथा ब्रिटिश तीन पक्षों में बंटा हुआ था। मेवाड़ के हिस्से वाले क्षेत्र में मेवाड़ महाराणा की तरफ से कैप्टन कर्नल टॉड एजेंट नियुक्त था। मारवाड़ के भाग का नियंत्रण जोधपुर दरबार ने समीप के ठाकुरों को दे रखा था तथा शेष भाग का प्रवन्धन अजमेर स्थित ब्रिटिश सुपरिटेन्डेन्ट विल्डर के हाथों में आ गया था।

• अंग्रेज इस संपूर्ण क्षेत्र पर अपना प्रभूत्व चाहते थे अतः उन्होंने बिल्डर के नियंत्रण में 70 सैनिक प्रति कम्पनी के हिसाब से 8 कम्पनियों की एक बटालियन मेरों में से ही भर्ती करने का निर्णय लिया।

• 1822 में ब्यावर में मेरवाड़ा बटालियन स्थापित की गई।

• मेवाड़ महाराणा ने मई 1823 एवं मारवाड़ महाराजा ने मार्च 1824 में मेरवाड़ा के अपने हिस्से क्रमशः दस व आठ वर्ष हेतु अंग्रेजों को सौंप दिये। दोनों ही शासक मेरवाड़ा बटालियन हेतु 15000 रुपये सालाना प्रत्येक द्वारा देने पर सहमत हुए। इस प्रकार मेरों का यह क्षेत्र 1947 तक अंग्रेजों के नियंत्रण में रहा।

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