भारत शासन अधिनियम 1919 नोट्स हिंदी में

भारत शासन अधिनियम 1919

पृष्ठभूमि : भारत शासन अधिनियम 1919

अगस्त घोषणा (20 अगस्त 1917) के पश्चात् मांटेग्यू के साथ एक उच्च स्तरीय दल तत्कालीन भारतीय राजनीतिक परिस्थितियों की स्थिति का अध्ययन करने भारत आया। इस दल के अध्ययन के आधार पर जुलाई 1918 में मटिग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट प्रकाशित हुई और यह रिपोर्ट 1919 के भारत शासन अधिनियम का आधार बनी।

भारत शासन अधिनियम 1919 के पारित होने के समय भारत के सचिव मॉण्टेग्यू थे और वायसराय चेम्सफोर्ड थे। अतः इसे मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार 1919 के नाम से भी जाना जाता है।

संसद में पारित होने के बाद यह अधिनियम 23 दिसम्बर 1919 को लागू हुआ।

इस दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज (लिबरल पार्टी) थे तथा ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम थे।

भारत शासन अधिनियम 1919 को लाने हेतु उत्तरदायी कारक

1. 1909 के अधिनियम की असफलরা।

2. कांग्रेस व मुस्लिम लीग ने लखनऊ समझौता 1916 के तहत् आपसी मतभेद भुलाकर ब्रिटिश सरकार के समक्ष सुधारों की योजना रखी।

3. 1909 में शुरु की गई साम्प्रदायिक चुनाव व्यवस्था।

4. प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए भारत से किया गया वादा।

5. होमरुल लीग आंदोलन आदि के माध्यम से स्वशासन की माँग।

6. समाचार, साहित्य आदि के माध्यम से आमजन में जागृति।

भारत शासन अधिनियम 1919 की प्रस्तावना

प्रशासन में भारतीयों का संपर्क बढ़ाया जाये।

भारत ब्रिटिश साम्राज्य का अभिन्न अंग बना रहेगा।

भारत में स्वशासन की संस्थाओं तथा उत्तरदायी शासन की स्थापना का काम धीरे-धीरे व क्रमिक रूप से होगा।

प्रांतीय मामलों में, प्रांतीय संरकारों को केन्द्रीय नियंत्रण से मुक्त रखने का प्रयास किया जायेगा।

1. भारत परिषद् में परिवर्तन :- भारत शासन अधिनियम 1919

भारतीय उपनिवेश के मामलों को देखने के लिए ब्रिटेन में स्थित मंत्रिमंडल में एक मंत्री होता था, वह भारत सचिव कहलाता था। उसकी एक परिषद् होती थी जिसे भारत परिषद् कहा जाता था। इस परिषद् पर होने वाला व्यय भारत पर भारित होता था।

1919 के अधिनियम के तहत भारत परिषद् व भारत सचिव के संबंध में किये गये परिवर्तन (i) भारत परिषद् के सदस्यों की संख्या कम की गई। न्यूनतम 8 व अधिकतम 12 सदस्य होंगे (पहले ये क्रमशः 12 व 14 थी।)

जिनमें से आधे सदस्य ऐसे होंगे जो 10 वर्ष तक भारत में रह चुके होंगे तथा जिन्होंने हाल ही में भारत छोड़ा है।

(ii) भारतीय सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 3 कर दी गई।

(iii) कार्यकाल 7 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष किया गया।

(iv) भारत सचिव व परिषद् पर होने वाला खर्च ब्रिटिश बजट पर भारित होगा।

(v) भारत सचिव को यह अधिकार दिया गया कि वह भारत के लिए एक महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति कर सकता है।

(vi) भारत सचिव का भारत की केन्द्रीय व प्रान्तीय सरकारों के लिए एक एजेन्सी के रूप में कार्य करना पड़ता था इस अधिनियम में इस कार्य के लिए भारतीय उच्चायुक्त (हाइ कमिश्नर) पद का गठन किया गया जिसको वेतन भारतीय कोष से मिलना था।

नोटः- उच्चायुक्त का यह पद 13 अगस्त 1920 को स्थापित किया गया जिस पर प्रथम नियुक्ति विलियम स्टीवेंसन मेयर की हुई।

2. गवर्नर जनरल व कार्यकारिणी परिषद् :- भारत शासन अधिनियम 1919

1919 के अधिनियम में गवर्नर जनरल व उसकी कार्यकारिणी परिषद् की शक्ति में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। 3. केन्द्रीय विधान मंडल :-

भारत शासन अधिनियम 1919 में पहली बार द्विसदनीय केन्द्रीय विधायिका की स्थापना की गई।

केन्द्रीय विधान मंडल :-

1919 के अधिनियम में पहली बार द्विसदनीय केन्द्रीय विधायिका की स्थापना की गई।

केन्द्रीय विधायिका

उच्च सदन

कौंसिल ऑफ स्टेट (राज्य परिषद्)

सदस्य संख्या- 60

मनोनीत (27)

निर्वाचित (33)

निम्न सदन

लेजिस्लेटिव असेम्बली (विधानसभा)

सदस्य संख्या – 145

मनोनीत (41)

निर्वाचित (104)

सामान्य [52]

साम्प्रदायिक चुनाव क्षेत्र [32] (30 मुस्लिम, 2 सिख)

विशेष चुनाव क्षेत्र [20]

• केन्द्रीय विधानसभा का कार्यकाल 3 वर्ष तथा राज्य परिषद् का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया। वायसराय को केन्द्रीय विधायिका के किसी भी सदन को साभाग्य कार्यकाल समाति से पूर्व ही भंग करने का अधिकार दिया गया था।

1909 के मार्ले-मिंटो सुधार में मुसलमानों के लिए पृथक् से साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली लागू की गई थी। 1919 के अधिनियम में इस प्रणाली में विस्तार करते हुए सिखों व आंग्ल भारतीयों के लिए भी साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली शुरु कर दी गई।

1919 के अधिनियम के तहत पहली बार 1920 में निर्वाचन हुए तथा 9 फरवरी 1921 को पहली केन्द्रीय विधानसभा गठित की गई। इस अधिनियम के तहत 1920, 1923, 1926, 1930, 1934 व 1945 में निर्वाचन हुए। अतः कुल 6 केन्द्रीय विधानसभाओं का गठन हुआ।

राज्य परिषद् के प्रथम अध्यक्ष एलेक्जेण्डर मुडीमैन बने थे तथा विधानसभा के प्रथम स्पीकर फ्रेडरिक व्हाइट तथा डिप्टी स्पीकर सच्चिदानंद सिंहा बने।

4. नरेश मंडल की स्थापना :- भारत शासन अधिनियम 1919

भारत के दो भाग थे- एक जिस पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष नियंत्रण था, दूसरा भाग रियासतों का था जहाँ नरेशों का शासन था। इन नरेशों पर अपने नियंत्रण को मजबूत करने के लिए 1919 के अधिनियम में नरेश मंडल की स्थापना का सुझाव दिया गया। 9 फरवरी 1921 को दिल्ली में नरेश मंडल की स्थापना की गई। इस नरेश मंडल की सदस्य संख्या 121 थी जिसका अध्यक्ष वायसराय था।

5. केन्द्रीय व प्रांतीय विषयों का बंटवारा :- भारत शासन अधिनियम 1919

इस अधिनियम के तहत् केन्द्रीय व प्रांतीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया।

विषयों का बंटवारा

केन्द्रीय विषय (कुल 47 विषय)

रक्षा, विदेश नीति, रेलवे, संचार, जनगणना, सार्वजनिक ऋण, लोक सेवा आयोग, मुद्रा, भारतीय रियासतों से संबंध आदि महत्त्वपूर्ण विषय।

प्रांतीय विषय (कुल 50 विषय)

स्थानीय स्वशासन, लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, चिकित्सा, प्रशासन, शिक्षा, लोकनिर्माण, सिंचाई, कृषि, जेल, पुलिस आदि।

पहली बार प्रांतीय स्वायतत्ता प्रदान की गई।

6. प्रांतों में द्वैध शासन :- भारत शासन अधिनियम 1919

1919 के अधिनियम का महत्त्वपूर्ण प्रभाव प्रांतीय काँचे पर पड़ा। इसके अंतर्गत पहली बार सभी 9 प्रांतों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन व द्वैध शासन (डायर्की) की स्थापना की गई। इसके अंतर्गत प्रांतीय सूची के 50 विषयों को दो भागों में बाँटा गया।

संरक्षित विषय (Reserved) (22 विषय)

इन विषयों का प्रशासनिक नियंत्रण गवर्नर व उसकी कार्यकारिणी परिषद् का था जो भारत सचिव की परामर्श पर ब्रिटिश सम्राट द्वारा नियुक्त की जाती थी।

विषय – इसमें सभी महत्त्वपूर्ण विषय जैसे कानून व्यवस्था, वित्त, भूराजस्व, खनिज आदि सम्मिलित थे।

हस्तांतरित विषय (Transfered) (28 विषय)

इन विषयों का नियंत्रण लोकप्रिय मंत्रियों (जिनमें भारतीय शामिल थे) को सौंपा गया जो व्यवस्थापिका के निर्वाचित बहुमत से चुने जाते थे व उसके प्रति उत्तरदायी होते थे। इस प्रकार हस्तान्तरित विषयों के द्वारा आंशिक उत्तरदायी शासन स्थापित करने का प्रयास किया गया।

विषय – इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, कृषि, स्थानीय स्वशासन आदि थे।

प्रांतों में द्वैध शासन को डायी भी कहा जाता है जो एक ग्रीक शब्द से बना है। भारत में 1919 के अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप 1 अप्रेल 1921 से प्रान्तों में द्वैध शासन प्रारम्भ हो गया जो बंगाल व मध्य प्रान्त को छोड़कर शेष सभी प्रान्तों में 1937 तक चला।

7. प्रान्तीय विधानमण्डल :- भारत शासन अधिनियम 1919

प्रान्तीय विधानमंडल अब ‘अतिरिक्त सदस्यों’ से निर्मित न होकर तीन वर्ष के लिए चुनी गई एक सदनीय स्वतंत्र संवैधानिक संस्था बन गए जिसकी अध्यक्षता गवर्नर के हाथों से निकलकर निष्पक्ष पीठासीन अधिकारियों के पास चली गई।

8. केन्द्र में अनुत्तरदायी शासन :- भारत शासन अधिनियम 1919

इस अधिनियम द्वारा प्रान्तों में आंशिक रूप से उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई। लेकिन केन्द्रीय स्तर पर पहले की तरह अनुत्तरदायी शासन था।

9. केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद् में अधिक भारतीयों की नियुक्ति :- भारत शासन अधिनियम 1919

केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद् में कई सुधार किये गये-

(i) कार्यकारिणी परिषद् पर से अधिकतम सदस्य संख्या संबंधी प्रतिबंध हटा दिया गया।

(11) 10 वर्ष का अनुभव रखने वाले भारतीय उच्च न्यायालय के वकीलों को परिषद् का कानूनी सदस्य बनने के योग्य माना गया। इस प्रकार तेजबहादुर सप्पू पहले भारतीय कानूनी सदस्य बने।

(iii) कार्यकारिणी परिषद् में भारतीयों की संख्या एक से बढ़ाकर तीन कर दी गई। लेकिन ये सदस्य जनता के प्रतिनिधि न होकर सरकार के चहेते होते थे, इन्हें कम महत्व के विभाग दिये जाते थे।

10. विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा :- भारत शासन अधिनियम 1919

इस अधिनियम में पहली बार केन्द्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग किया गया अतः प्रांतों को पहली बार ऋण लेने व कर लगाने का अधिकार दिया गया।

11. मताधिकार व निर्वाचन :- भारत शासन अधिनियम 1919

प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया प्रारंभ की गई, मताधिकार का विस्तार किया गया जिससे लगभग 10 प्रतिशत भारतीय जनता को मताधिकार प्राप्त हुआ। महिलाओं को मत देने का अधिकार नहीं दिया गया था। इस अधिनियम में साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार करते हुए इसमें मुसलमानों के साथ सिखों, आंग्ल भारतीयों व यूरोपियों को भी सम्मिलित किया गया।

12. इस अधिनियम में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए एक केन्द्रीय लोक सेवा आयोग (FPSC) का प्रावधान किया गया जिसका गठन 1926 में किया गया।

समीक्षा- यह अधिनियम एक अल्पकालीन प्रयोग व संक्रमणकालीन उपचार था। अधिनियम द्वारा 10 वर्ष पश्चात् एक रॉयल कमीशन की नियुक्ति का प्रावधान किया गया था जो अधिनियम की क्रियान्विती की समीक्षा करेगा। साइमन कमीशन इसी का परिणाम था।

भारत शासन अधिनियम 1919 के संबंध में विभिन्न विचारकों के मत :-

बाल गंगाधर तिलक – ‘बिना सूरज का सवेरा जो एकदम अस्वीकार्य है।’

एनी बीसेंट– ‘न तो इंग्लैण्ड को यह शोभा देता है कि ऐसे सुधार प्रस्तुत किये जाये और न यह भारत के सम्मान के अनुकूल है कि वह इन्हें स्वीकार करे।’

एन. सी. केलकर ‘यह भारतीय नेताओं को उनके ही रस में डूबो देने का एक दुष्ट प्रयास था।’

डॉ. सुब्रह्मण्यम अय्यर ने ‘भारतीयों को यह सलाह दी की उन्हें जो अफीम दी जा रही है, वे उनका स्पर्श भी ना करें।’

नोटः- सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के नेतृत्व वाले नेशनल लिबरल फेडरेशन ने 1919 के सुधारों का स्वागत किया तथा कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में इन सुधारों को अपर्याप्त, असंतोषप्रद और निराशाजनक बताया।

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