बीकानेर के राजा राय सिंह : साहस और वीरता का प्रतिक

बीकानेर के राजा राय सिंह के अनसुने तथ्य

• 1570 ई. में अकबर की अजमेर यात्रा के दौरान लगाये गये नागौर दरबार में बीकानेर का शासक कल्याणमल भी अपने पुत्र कुंवर रायसिंह तथा पृथ्वीराज के साथ मुगल सेवा में उपस्थित हो गया।

• नागौर दरबार में ही मुगल सम्राट और बीकानेर राज्य का मैत्री संबंध स्थापित हो गया।

बीकानेर के राजा राय सिंह का भाई : पृथ्वीराज राठौड़

> रामसिंह का छोटा भाई पृथ्वीराज राठौड़ भी मुगल दरबार में उपस्थित हुआ जो उच्चकोटि का कवि व विष्णु भक्त था। > नैणसी की ख्यात के अनुसार बादशाह अकबर ने इसे गागरोन की जागीर प्रदान की जहां इसने ‘वेली क्रिस्न रूखमणी री’ नामक ग्रंथ की रचना की। राजस्थानी साहित्य में इसे पौथल कहा गया है।

अपने बोरोचित तथा स्वामिभक्ति के गुणों के कारण रायसिंह अकबर तथा जहांगीर का विश्वासपात्र बना रहा।

• राजस्थान में मुगल हितों की रक्षा के लिए रायसिंह अग्रणी था।

जोधपुर व बीकानेर के राजा राय सिंह

• नागौर दरबार से ही मुगल सेवा को समर्पित रायसिंह की नियुक्ति अकबर ने जोधपुर के प्रशासक के तौर पर कर दी।

• 1572 ई. में गुजरात में हो रहे विद्रोह तथा राणा प्रताप को आक्रमण का खतरा देखते हुए अकबर ने रायसिंह को जोधपुर का शासक (प्रशासक) नियुक्त किया।

दयालदास की ख्यात के अनुसार रायसिंह तीन वर्ष तक जोधपुर का प्रशासक रहा।

इस पद पर रायसिंह की नियुक्ति कुंवर रहते हुए हुई थी तथा बीकानेर का राजा बनने के बाद भी यह इस पद पर बना रहा।

• 1573 ई. में अकबर ने चन्द्रसेन को अपने अधीन करने हेतु शाहकुली खाँ के साथ जगतसिंह, केशवदास मेड़तिया व बीकानेर के रायसिंह को भेजा इस सेना ने सोजत में चन्द्रसेन के भतीजे कल्ला राठौड़ को पराजित किया।

अपने पिता कल्याणमल की मृत्यु के बाद 1574 ई. में रायसिंह ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि के साथ बीकानेर का शासक बना।

बीकानेर के राजा राय सिंह का राज्यारोहण

• सोजत विजय के बाद इस सेना ने सिवाना दुर्ग पर आक्रमण किया परंतु सफलता नहीं मिलने पर बीकानेर के रायसिंह ने अकबर से अतिरिक्त सैन्य सहायता की मांग की।

• अन्त में 1575 ई. में इस मुगल सेना का सिवाना दुर्ग पर अधिकार स्थापित हो गया।

बीकानेर के राजा राय सिंह का देवड़ा सुरताण व जालौर के विरूद्ध अभियान

• अकबर ने रायसिंह को मुगल सेना के साथ सिरोही के देवड़ा सुरताण तथा जालौर के ताज खाँ के विद्रोह को दबाने हेतु भेजा।

रायसिंह ने नाडौल में अपना सैन्य ठिकाना बनाया। नाडौल रहते हुए उसने विद्रोहियों को दबाया तथा मेवाड़ राज्य के आने जाने के मार्गों को रोक दिया।

मुगल सेना के समक्ष ताज खाँ जालौर ने अपनी अधीनता स्वीकार कर ली तथा देवड़ा सुरताण को भी मुगल सेना में सम्मिलित कर लिया।

• परन्तु जब सुरताण बिना सम्राट (अकबर) की आज्ञा प्राप्त किये ही सिरोही लौट आया तथा उपद्रव मचाने लगा तो अकबर ने रायसिंह की नियुक्ति पुनः उसको दबाने के लिए की।

1577 ई. में देवड़ा सुरताण फिर से मुगल दरबार में उपस्थित होने को मजबूर हुआ परंतु यह समस्या पूरी तरह नहीं सुलझी।

• देवड़ा सुरताण तथा बोजा देवड़ा (जो सिरोही का राजकाज संभालता था) में अनबन हो गई तब रायसिंह ने सिरोही पर आक्रमण कर बीजा देवड़ा को सिरोही से निकाल दिया तथा आधा सिरोही राज्य मुगलों के अधीन कर इसे महाराणा प्रताप (मेवाड़) से नाराजा होकर आए प्रताप के सौतेले भाई जगमाल को दे दिया।

• जगमाल को सिरोही का आधा राज देने से देवड़ा सुरताण नाराज हो गया तथा उसने मुगलों से संघर्ष करना प्रारंभ कर दिया।

• 1583 ई. में देवड़ा सुरताण तथा मुगल सेना में दत्ताणी नामक स्थान पर युद्ध हुआ। दत्ताणी के युद्ध में जगमाल की मृत्यु हो गई तथा देवा सुरताण ने पुनः अपने पैतृक राज्य पर अधिकार कर लिया।

बीकानेर के राजा राय सिंह व मिर्जा बंधु

• रायसिंह ने नागौर पहुँचे विद्रोही इब्राहीम मिर्जा को मुगल सेना की सहायता से कठौली नामक स्थान पर घेर (1573 ई.) लिया जिसके फलस्वरूप इब्राहीम मिर्जा को पंजाब की तरफ भागना पड़ा।

• 1573 ई. में ही अकबर स्वयं मुहम्मद हुसैन मिर्जा के उपद्रव को दबाने के लिए गुजरात आया।
अकबर के इस अभियान में रायसिंह भी उसके साथ था जहां उसने वीरता का परिचय देते हुए मुहम्मद हुसैन मिर्जा को बन्दी बना लिया तथा अन्त में रायसिंह व भगवानदास की अनुमति से मिर्जा का कत्ल कर दिया गया।

बीकानेर के राजा राय सिंह के अन्य मुगल अभियान

• काबुल में मिर्जा हाकिम के विद्रोह को दबाने के लिए मुगल सेना मानसिंह के नेतृत्व में संघर्ष कर रही थी उस सेना की सहायता के लिए 1581 ई. में अकबर ने रायसिंह के नेतृत्व में एक जत्था काबुल भेजा।

• बलोचिस्तान के सरदारों के विद्रोह को दबाने के लिए अकबर ने रायसिंह को इस्माइल कुलीखां, अबुल कासिम आदि के साथ भेजा।

मुगल सेनापति खानखाना ने कन्धार विद्रोह को दबाने के लिए बादशाह अकबर से सहायता मांगी तो 1591 ई. में अकबर ने रायसिंह को खानखाना की सहायता हेतु कन्धार भेजा।

रायसिंह 1593 ई. के बुरहानुल्मुल्क के विरूद्ध दानियाल अभियान (थट्टा अभियान) में भी शामिल था।

अकबर ने रायसिंह को 1601 ई. में नासिक की अराजकता समाप्त करने के लिए भी भेजा।

• मेवाड़ के विरूद्ध अभियान के दौरान रायसिंह को भी शहजादे सलीम के नेतृत्व में अमरसिंह (मेवाड़) के विरूद्ध भेजा।

• रायसिंह की सेवाओं से प्रसन होकर अकबर ने उसे 1593 ई. में जूनागढ़ प्रदेश तथा 1604 ई. में शमशाबाद प नूरपुर तथा नागौर की जागीर प्रदान कर राय की उपाधि दी।

बीकानेर के राजा राय सिंह तथा जहांगीर

रायसिंह अकबर के पुत्र सलीम (जहांगीर) का विश्वास पात्र था जब अकबर मृत्यु शैय्या पर था तो सलीम (जहांगीर) ने रायसिंह को अपना पक्ष मजबूत करने के लिए शीघ्र आगरा बुलाया।

अकबर के देहावसान के पश्चात सलीम जहांगीर के नाम से आगरा में (1605 ई.) राजग‌द्दी पर बैठा।

जहांगीर ने अपने विजय जुलूस के उत्सव पर रायसिंह का मनसब पांच हजार जात/सवार कर दिया।

रायसिंह ने अपनी पुत्री का विवाह जहांगीर के साथ किया।

• जहांगीर ने रायसिंह की नियुक्ति दक्षिण भारत में की जहां 1612 ई. में बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) नामक स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई।

रायसिंह की मृत्यु के बाद जहांगीर ने 1612 ई. में रायसिंह की इच्छा के विपरीत रायसिंह के ज्येष्ठ पुत्र दलपत सिंह (1512-13 ई.) को शासक बनाया।

बीकानेर के राजा राय सिंह की सांस्कृतिक उपलब्धिया

• रायसिंह स्वयं कवि था तथा साहित्यकारों का आश्रयदाता था।

• रायसिंह ने ‘रायसिंह महोत्सव’ (वैद्यक वंशावली) नामक ऐतिहासिक ग्रंथ तथा ज्योतिष रत्नमाला नामक ग्रंथ पर ‘बाल योधिनी’ नाम से टोका लिखी जी रायसिंह की संस्कृत और भाषा को योग्यता के सूचक है।

रायसिंह महोत्सव ग्रंथ में राठौड़ों के आदि पुरुष राव सोहा से लेकर रायसिंह तक की संस्कृत श्लोकों में वंशावली दी गई है।।

• रायसिंह के काल में जैन साधु ज्ञानविभव ने महेश्वर रचित शब्दभेद पर टोका लिखी।

• रायसिंह कवि होने के साथ-साथ अभिमानी देश प्रेमी भी था। एक बार दक्षिण भारत में नियुक्ति के दौरान फोग के पौधे को देखकर निम्रांकित भावमय दोहे की रचना की-

तूं से देशी रुखड़ा, म्हें परदेशी लोग। म्हाने अकबर तेड़िया, क्यों हूँ आयो फौग।।

बीकानेर के राजा राय सिंह व स्थापत्य

महाराणा राजसिंह व महाराजा रायसिंह

जूनागढ़ दुर्ग- रायसिंह अपने मंत्री कर्मचंद की देखरेख में बीकानेर के जूनागढ़ किले का निर्माण 1594 ई. में संपन्न करवाया।

जूनागढ़ किले के दरवाजे पर जयमल तथा फत्ता की गजारूढ़ पाषाण मूर्तियां लगवाई।

• किले के भीतर रायसिंह ने प्रशस्ति उत्कीर्ण करवाई जिसे रायसिंह प्रशस्ति कहा जाता है।

रायसिंह के समय अनेक मंदिरों का निर्माण तथा जीर्णोद्धार हुआ जिनमें बीकानेर का जैन मंदिर प्रमुख है।

जयसोम कृत ‘कर्मचन्द वंशोत्कीर्तनकाव्यम्’ नामक ग्रंथ में रायसिंह को ‘राजेन्द्र’ कहा गया है।

बीकानेर चित्र शैली

बीकानेर चित्रकला की शुरुआत रायसिंह के शासनकाल में मानी जाती है।

• बीकानेर शैली का प्राचीनतम उपलब्ध चित्रित ग्रंथ भागवत पुराण रायसिंह के काल का है।

अकाल प्रबंधन

• 1578 ई. में पड़े अकाल के समय रायसिंह ने तेरह महीने तक सदाव्रत खोले, रोग ग्रस्त प्रजा को अन्न व औषधियों वितरण कर सहायता पहुंचायी तथा पशुओं के लिए चारे-पानी की व्यवस्था की।

इसी आधार पर मुंशी देवीप्रसाद ने रायसिंह को ‘राजपूताने का कर्ण’ की संज्ञा दी है।

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