गणित का इतिहास एवं गणितज्ञ : History Of Math

गणित का इतिहास एवं गणितज्ञ : Introduction

भारतीय गणित के इतिहास का शुभारम्भ आदिग्रंथ ऋग्वेद से होता है। भारत में प्राचीनकाल से ही गणित का स्थान बहुत ऊँचा रहा है। वेदांग ज्योतिष में गणित की महत्ता पर लिखा है-

जैसे मोरों की शिक्षा, नागों की मणियाँ।

इसी प्रकार वेद धर्मग्रन्थ हैं और गणित शिरोमणि है।

अर्थात् जिस प्रकार मयूरों की शिखाएँ और सर्पों की मणियां शरीर में मूर्धास्थान (मस्तक) पर विराजमान है, उसी प्रकार समस्त वेदांगों और शास्त्रों में गणित सर्वोपरि है।

गणित का इतिहास एवं गणितज्ञ : गणित का विकास

मानव विकास के साथ ही गणित प्रारंभ हो चुकी थी। गणित के गणित का इतिहास एवं गणितज्ञ को मुख्य रूप से पाँच कालखण्डों में विभाजित किया जा सकता है।

1. आदिकाल

2. पूर्वकाल

3. मध्यकाल

4. उत्तर मध्यकाल

5. वर्तमान काल

गणित का इतिहास : 1. आदिकाल (500 ई. पूर्व तक):

.वैदिक काल (1000 ई.पू.):-

इस दौरान अंकगणित का विकास हुआ। शून्य एवं दाशमिक मान प्रणाली विश्व को भारतीय देन है। 0 से 9 तक के अंकों को ‘हिन्दसां’ अरबी लोगों द्वारा पुकारा गया। इनको पश्चिम के लोग हिन्दु-अरबिक संख्यांक कहते हैं।

उत्तर वैदिक काल (500 ई.पू.):-

इस दौरान हवन की वेदियों के निर्माण स्वरूप रेखागणित के शुल्व सूत्रों का विकास हुआ। (शुल्व = रस्सी/रज्जु) । तीन सूत्रकार- बोधायन, आपस्तम्ब, कात्यायन। बोधायन ने जिस प्रमेय को पहले ही खोज लिया था उसे हम पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जानते हैं।

गणित का इतिहास : 2. पूर्व मध्यकाल (500 ई.पू. से 400 ई. तक):

भारत के बीजगणित के ग्रन्थों का अरब निवासी ‘अल्ख्वारीज्मी’ ने प्रतिपादन कर ‘अलजबर अल मुकाबला’ ग्रन्थ प्रकाशित किया। इस दौरान त्रिकोणमिति पर कार्य हुआ। जैन आचार्यों द्वारा लघुगणक के सिद्धान्तों की रचना जॉन नेपियर से पहले की गई।

गणित का इतिहास : 3. मध्यकाल : स्वर्णयुग (400 ई. से 1200 ई. तक)

आर्यभट्ट प्रथम (476 ई.) कुससपुर (बिहार) में जन्म । प्रथम भारतीय वैज्ञानिक, गणितज्ञ एवं खगोलविद् एवं ज्योतिषी। 499 ई. में ‘आर्यभट्टीयम’ ग्रन्थ प्रकाशित जो कि गुप्तकालीन समय का ऐसा ग्रन्थ था जिस पर लेखक का नाम अंकित । सर्वप्रथम गणित को पृथक विषय के रूप में स्वीकार कर उसका विश्लेषण किया। के मान 3.1416 की खोज की। चंद्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण की व्याख्या की। दशमलव पद्धति की खोज। वर्ष में 365.2586805 दिन की शुद्धता से गणना। शून्य की देन। वर्गमूल एवं घनमूल ज्ञात करने की विधियाँ दीं।

ब्रह्मगुप्त (598 ई.) उज्जैन (मध्य प्रदेश) में जन्म। 628 ई. में ब्रह्मस्फुट सिद्धानत की रचना की। इसमें शून्य की परिभाषा अ- अ = 0 से बताई। चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल = √(s-a) (s-b) (s-c) (s-d) से दिया जहाँ 2s = a+b+c+d | बीजगणित में समीकरणों को मूर्तरूप एवं उनके पक्षांतरण नियम दिए। बीजगणित को कुट्टक गणित नाम दिया। सर्वप्रथम अनन्त की कल्पना दी, इन्होंने बताया कि किसी संख्या में शून्य से भाग देने पर अनन्त प्राप्त होता है।

श्रीधर आचार्य (850 ई.):- कर्नाटक प्रान्त में जन्म। बीजगणित में द्विघात समीकरण ax²+bx+c=0 के चर राशि का x मान ज्ञात करने का सूत्र x = -b±√b²-4ac 2a वर्तमान में सभी प्रयोग में लेते हैं। श्रीधर आचार्य की अंकगणित का अनुवाद अरब में हिसाबुल तख्त के नाम से हुआ। प्रसिद्ध ग्रन्थ : त्रिशतिका, न्यायकंदली आदि।

महावीराचार्य (850 ई.) :-गणित सारसंग्रह की रचना की। सबसे कम गुणांक की कल्पना, भिन्न के भाग की जानकारी देती है।

आर्यभट्ट द्वितीय (950 ई.):- महासिद्धान्त नामक ग्रंथ की रचना की। गोले के पृष्ठ का शुद्ध मान इसी ग्रंथ में मिलता है। पाई का मान 22/7 दिया।

भास्कराचार्य द्वितीय (1114 ई.):- हैदराबाद के बीजापुर (विदर्भ नगर) में जन्म। प्रमुख ग्रंथः सिद्धानत शिरोमणि जिसके चार भाग हैं, जिनमें प्रसिद्ध भाग लीलावती गणित (पाटी गणित) है अन्य भाग गोलाध्याय, बीजगणित एवं गृहगणित है। लीलावती इनकी पुत्री थी। सूर्य सिद्धान्त गणित, समय सिद्धान्त, करण, कौतूहल आदि ग्रन्थ की रचना। न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त की पूर्व में ही जानकारी थी जिसे “धारणीकात्मक शक्ति” नाम दिया था। गोले के क्षेत्रफल, आयतन के सूत्र तथा अनन्त की जानकारी दी। क्रमचय संचय (अंकपाश सिद्धान्त), करणियां, अवकलन, स्थिरांक आदि का विचार दिया।

गणित का इतिहास : 4. उत्तरी मध्य युग (1200 ई. से 1800 ई.):-

इस काल में गणित के क्षेत्र में मौलिक कार्य नहीं हुए। परन्तु सम्राट जगन्नाथ, नीलकण्ठ, कमलाकर इत्यादि ने गणित को
सरस एवं सरल बनाने का कार्य किया। नारायण पंडित ने अंकगणित पर गणितकौमुदी नामक विशाल ग्रंथ की रचना की।

गणित का इतिहास : 5. वर्तमान काल (1800 ई. से अब तक):-

स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ (1884-1960):- पुरी के शंकराचार्य, प्रमुख ग्रंथ- वैदिक गणित जिसमें 16 सूत्र व 13 उपसूत्रों के माध् यम से लम्बी एवे जटिल गणनाओं को त्वरित रूप से हल किया गया है। इसे ‘मानस गणित’ भी कहते हैं।

श्रीनिवास रामानुजन (1887 – 1920 ई.):- तमिलनाडु प्रान्त के इरोद ग्राम में जन्म 15 वर्ष की उम्र में जादुई वर्गों की रचना। कक्षा में इन्होंने ही शिक्षक को ध्यान दिलाया कि शून्य में शूल्य का भाग देने पर एक नहीं बल्कि अनिर्णित (अनिर्धार्य रूप) आती है। संख्या पद्धति अवकलन, संयुक्त संख्या, अपसारी एवं सतत् श्रेणी पर मौलिक कार्य। Mock Theta Function पर उनका काम मृत्युशैय्या पर। इनका जन्मदिन 22 दिसम्बर, गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है। संख्या 1729 को रामानुजन संख्या कहते हैं क्योंकि इन्होंने बताया कि यह वह सबसे छोटी संख्या है जिसे दो राशियों के घनों के जोड़ के रूप में व्यक्त कर सकते हैं।

1729-13+123=103+93

गणित का इतिहास :कुछ विदेशी गणितज्ञ

पाइथोगोरसः- ग्रीस में 580 ई. पू. जन्म। सम एवं विषम संख्याओं का विभाजन। यूक्लिड के ग्रन्थ ‘एलीमेंटस’ का 74वां प्रमेय पाइथोगोरस प्रमेय (कर्ण = लम्ब² + आधार²)

यूक्लिडः- इनका जन्म अलैक्जैन्ड्रिया (ग्रीक) लगभग 300 ई.पू. । एलीमेंटस ग्रन्थ की रचना की। इस ग्रंथ में सर्वांगसमता, समानता, बीजगणितीय सर्वसमिकाएँ, क्षेत्रफल, वृत्त, समानुपात, होस ज्यामिति आदि विषयों का उल्लेख किया है। ज्यामिति का जन्मदाता।

न्यूटन: 1642 ई. बुलशोर (इंग्लैंड) में जन्म। गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत और गति के समीकरण खोजें। प्रसिद्ध ग्रन्थ: प्रिंसिपिया।

गाउसः– 177 ई. जर्मनी में जन्म। 10 वर्ष की उम्र में संख्याओं के योफल के सूत्र की रचना। न्यूनतम वर्गों के सिद्धान्त खोजे और “संख्या सिद्धान्त” ग्रन्थ प्रकाशित हुआ।

आयलर: बीजगणित, विभेदन, ग्राफ सिद्धांत, आदि।

रेन डेकार्टसः निर्देशांक ज्यामिति का विकास

हिप्पार्कस: त्रिकोणमिति के जनक

गाट फ्रायड एकेनवालः सांख्यिकी के जन्मदाता

इनके अतिरिक्त टेलर, मेक्लारिन, लग्रांज, रोल, पास्कल, फरियर, नेपियर, बरनौली, इत्यादि कई गणितज्ञ हुए जिनका आधुनिक गणित के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।

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