राजस्थान के दुर्ग : नाहरगढ़ का दुर्ग
• जयपुर में अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण सवाई जयसिंह 1734 ई. में मराठा आक्रमणों से अपनी सुरक्षा हेतु करवाया।
• यह एक गिरि दुर्ग है। इसका नाम नाहरसिंह भोमिया के नाम पर पड़ा है। ऐसी मान्यता है कि किले के निर्माण के समय नाहरसिंह भोमिया ने विघ्न उत्पन्न किया तब तांत्रिक रत्नाकार पौण्डरीक ने नाहरसिंह बाबा को अन्यत्र जाने के लिए राजी कर लिया व आम्बगढ़ के निकट एक ‘चौबुर्जा’ गढ़ी में स्थापित कर दिया था, वहीं से लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं।
• यह दुर्ग जयपुर के मुकुट के समान है तथा शहर की ओर झाँकता हुआ प्रतीत होता है।
दर्शनीय स्थल :
• इसमें स्थित सुदर्शन कृष्ण मंदिर के कारण इसे सुदर्शन गढ़ के नाम से भी जाना जाता है।
• सवाई माधोसिंह ने अपनी नौ पासवानों के लिए इस दुर्ग में एक जैसे नौ महलों का निर्माण करवाया, जो सुरजप्रकाश, कुशालप्रकाश, जवाहरप्रकाश, ललितप्रकाश, आनंदप्रकाश, लक्ष्मीप्रकाश, चाँदप्रकाश, फूलप्रकाश और बंसतप्रकाश हैं। इनकी विशेषता ये थी कि ये सभी महल आपस में एक सुरंग से जुड़े थे।
• इस दुर्ग में स्थित अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थलों में हवा मन्दिर, सिंहलखाना, माधोसिंह का अतिथि गृह प्रमुख है।
राजस्थान के दुर्ग : तारागढ़ दुर्ग
• बूंदी जिले में स्थित इस दुर्ग का निर्माण एक ऊँची पर्वत चोटी पर राव बरसिंह हाडा द्वारा 14वीं शताब्दी में मेवाड़, मालवा व गुजरात की तरफ से होने वाले आक्रमणों से बूंदी की सुरक्षा हेतु करवाया गया था। धरती से आकाश के तारे के समान दिखाई देने के कारण इसका नाम तारागढ़ पड़ा।
• बूंदी दुर्ग का स्थापत्य हाड़ा राजपूत व मुगल कला के समन्वय का सुन्दर उदारहण है।
ऐतिहासिक घटनाएँ :
• वीर विनोद के अनुसार मेवाड़ के महाराणा क्षेत्रसिंह बूँदी विजय के प्रयास में मारे गये।
• क्षेत्रसिंह के पुत्र महाराणा लाखा काफी प्रयत्नों के बावजूद बूँदी पर अधिकार नहीं कर सका तो उसने मिट्टी का नकली दुर्ग बनवा उसे ध्वस्त कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। उनके इस प्रयास में नकली दुर्ग की रक्षा हेतु कुम्भा हाड़ा ने अपने प्राणों की बलि लगा दी।
• मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने राव बेरीसाल के समय बूँदी पर अधिकार कर लिया।
• बूंदी के राव सुर्जन हाड़ा ने रणथम्भौर दुर्ग मुगलों को सौंप कर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली।
• शाहजादे खुर्रम (शाहजहाँ) ने अपने पिता के विरूद्ध संघर्ष प्रारम्भ किया तो बूँदी शासक राव रतनसिंह हाड़ा ने शाहजहाँ को अपने यहाँ शरण दी।
• मुगलों का केन्द्रीय सत्ता में प्रभाव कम होने पर जयपुर महाराज सवाई जयसिंह ने बूँदी पर आक्रमण कर अपने बहनोई बुद्धसिंह हाड़ा को हटाकर दलेल सिंह को बूंदी का शासक नियुक्त किया। बुद्धसिंह की कच्छवाही रानी ने होल्करों की सहायता से एक बार फिर बुद्धसिंह को बूँदी राज्य दिलवाया। होल्करों के वापस लौटते ही सवाई जयसिंह ने बुद्धसिंह को पूनः हटा दिया।
• मराठों का प्रभाव कम होने पर बूँदी पर कोटा के महाराव भीमसिंह ने अधिकार कर लिया। अंत में बूँदी राज्य अंग्रेजों के अधीन आ गया जो स्वतंत्रता प्राप्ति तक रहा।
दर्शनीय स्थल :
• महाराव बुद्ध सिंह ने बूँदी नगर के चारों ओर विशाल प्राचीर का निर्माण करवाया जिसमें स्थित विशालकाय भीमबुर्ज या चौबुर्जे का उपयोग शत्रुओं पर गोले बरसाने हेतु किया जाता था, जहाँ शक्तिशाली तोप गर्भगुञ्जन रखी जाती थी।
• हाथी पोल, गणेश पोल व हजारी पोल इस दुर्ग के प्रमुख प्रवेश द्वार है। महाराव रतनसिंह द्वारा हाथी पोल के दोनों तरफ दो हाथियों की प्रतिमाएं स्थापित की गई है।
• बूंदी के राजमहल अपने जीवंत भित्ती चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
• चित्रशाला (रंग विलास) : इसका निर्माण महाराव उम्मेदसिंह के काल में किया गया। यह बूंदी चित्रशैली का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है। इसके अतिरिक्त छत्रशाल महल, बादल महल, अनिरूद्ध महल के भित्ती चित्र भी प्रमुख रूप से दर्शनीय है।
• कर्नल टॉड ने राजस्थान के सभी रजवाड़ों के राजप्रासादों में बूंदी के राजमहलों को सर्वश्रेष्ठ बताया।
• दुर्ग के भीतर फूल महल, रतन महल, दूध महल, जीवरखा महल, दीवान-ए-आम, चौरासी खम्भों की छत्तरी, शिकार बुर्ज, सिंहलखाना, फूल सागर, जैत सागर, नवल सागर सरोवर व गर्भ गुंजन तोप आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
राजस्थान के दुर्ग : सिवाणा का किला
• बाड़मेर जिले में छप्पन का पहाड़ नामक पर्वतीय क्षेत्र में एक ऊँची ‘हल्देश्वर पहाड़ी’ पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण 954 ई. में वीर नारायण पँवार द्वारा करवाया गया। इस दुर्ग को अणखलों सिवाणों, कूमट दुर्ग (कुमट नाम झाड़ी के यहाँ बहुतायत से पाई जाने के कारण) नामों से भी जाना जाता है।
• यह दुर्ग मारवाड़ शासकों की संकटकालीन राजधानी रहा है जो संकटकाल में मारवाड़ राजपरिवार की शरणस्थली होता था।
ऐतिहासिक घटनाएँ :
• 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा पर आक्रमण किया जिसका जालौर शासक कान्हड़देव के भतीजे सातलदेव व सोम ने डट कर मुकाबला किया तथा खिलजी सेना का प्रथम आक्रमण विफल कर दिया।
प्रथम साका :
• 1305 ई. की असफलता के बाद 1310 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने स्वयं सेना लेकर सिवाणा पर चढ़ाई की सातलदेव ने खिलजी सेना पर छापामार आक्रमण किया व डटकर मुकाबला किया परन्तु भायला पंवार से विश्वासघात किया। किले के प्रमुख पेयजल स्त्रोत भाडेलाव तालाब को गो मांस से अपवित्र किए जाने के कारण इस युद्ध में सातलदेव व सोमा ने केसरिया किया व वीरगति को प्राप्त हो गए तथा वीरागनाओं ने जौहर किया (प्रथम साका हुआ)।
• खिलजी ने सिवाणा पर अधिकार कर इसका नाम खैराबाद रख दिया।
• खिलजी की मृत्यु के साथ ही सिवाणा से उसके वंश का आधिपत्य समाप्त हो गया। खिलजी के पश्चात् सिवाणा मल्लीनाथ राठौड़ के भाई जैतमाल व उनके वंशजों के आधिपत्य में रहा।
• 1538 ई. में राव मालदेव ने तत्कालीन शासक राठौड़ डूंगरसी को हराकर इस पर अधिकार कर लिया तथा इसकी रक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने हेतु इस दुर्ग के चारों ओर परकोटे का निर्माण करवाया।
• गिरी सुमेल युद्ध (1544 ई.) के बाद शेरशाह की सेना द्वारा पीछा किया जाने पर मालदेव ने यहाँ शरण ली।
• मालदेव के पुत्र चंद्रसेन ने इसी किले को केन्द्र बनाकर अकबर की सेनाओं से संघर्ष किया था।
• अकबर ने इस पर अधिकार कर राव मालदेव के पुत्र रायमल को सिवाणा दुर्ग दे दिया व रायमल की मृत्यु के बाद यह दुर्ग कल्याणदास राठौड़ (कल्ला) के अधिकार में आ गया।
द्वितीय साका :
• कल्ला राठौड़ के शासनकाल में अकबर के आदेश पर जोधपुर शासक मोटा राजा उदयसिंह ने सिवाणा पर आक्रमण किया। कल्ला उदयसिंह की सेना के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए व हाड़ी रानी (बूँदी के राव सुरजन हाड़ा की पुत्री) ने वीरागनाओं के साथ जौहर किया व द्वितीय साका हुआ।
• ‘वीर विनोद‘ मोटाराजा उदयसिंह के आक्रमण का कारण शहजादे सलीम व उदयसिंह की पुत्री के विवाह को कल्लाजी द्वारा अनुचित व अपमानजनक बताया जाना मानता है।
दर्शनीय स्थल :
• कल्ला रायमलोत का थड़ा।
• महाराजा अजीत सिंह का दरवाजा।
• हल्देश्वर महादेव का मंदिर।
राजस्थान के दुर्ग : जालौर दुर्ग
• जालौर जिले में सूकड़ी नदी के दाहिने तट पर सोनगिरी पहाड़ी पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण गुर्जर शासक नागभट्ट प्रथम ने 8वीं सदी में करवाया (डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार)। गौरीशंकर हीराचन्द ओझा इसका निर्माण परमार राजाओं धारवर्ष तथा मूंज द्वारा करवाया गया मानते हैं।
• सोनगिरी पहाड़ी पर स्थित होने कारण इसका नाम सोनलगढ़ पड़ा। इसे सुवर्णगिरी, सोनगढ़, जाबालिपुर दुर्ग आदि नामों से भी जाना जाता है।
• जालौर में चौहान वंश के संस्थापक कीर्तिपाल चौहान के वंशज इसी किले के नाम पर सोनगरा कहलाये ।
• इस गिरी दुर्ग की स्थापत्य की प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी उन्नत प्राचीर ने अपने विशाल बुर्जों सहित पुरी पर्वतमाला को अपने अन्दर समाविष्ट कर रखा है जिसके कारण किले की रचना व स्थिति का सही पता नहीं लगाया जा सकता जिससे शत्रु भ्रम में पड़ जाता है।
‘• ताज उल मासिर‘ के लेखक हसन निजामी ने लिखा है ‘यह ऐसा किला है जिसका दरवाजा कोई आक्रमणकारी नहीं खोल सका।‘
• यहाँ राजकीय कोष रखा जाता था।
ऐतिहासिक घटनाएँ :
• प्रतिहार नरेश वत्सराज के शासन काल (778 ई.) में जैन आचार्य उद्योतन सूरी ने जालौर में अपने ग्रन्थ कुवलयमाला की रचना की।
• नाडौल के चौहानवंशीय कीर्तिपाल ने जालौर पर अधिकार कर परमारों का सदा के लिए वर्चस्व समाप्त कर दिया।
• इल्तुतमिश ने दो बार जालौर पर असफल आक्रमण किया आक्रमण का सामना उदयसिंह ने किया।
प्रसिद्ध साका :
• 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा और कान्हड़देव को सबक सिखाने के उद्देश्य से जालौर पर अपने सेनापति कमालुद्दीन के नेतृत्व में आक्रमण किया। लम्बे अरसे तक खिलजी सेना ने किले को घेरे रखा। संकट की इस घड़ी में बीका नामक दहिया राजपूत सरदार ने विश्वास घात किया और शत्रु सेना को किले में प्रवेश का गुप्त मार्ग बता दिया। कान्हड़देव ने राजकुमार वीरमदेव व विश्वस्त योद्धाओं के साथ खिलजी की सेना से युद्ध किया व वीरगति को प्राप्त हो गए तथा किले के भीतर सैकड़ों वीरागनाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया। (इस युद्ध का वर्णन पद्मनाभ की रचनाऐ कान्हड़दे प्रबन्ध तथा वीरमदेव सोनगरा री बात में मिलता है।)
• 1311-12 ई. में अलाउद्दीन ने जालौर पर अधिकार कर लिया व इसका नाम जलालाबाद रख दिया।
• राव मालदेव ने मुस्लिम आधिपत्य को समाप्त कर ये दुर्ग प्राप्त किया।
• मालदेव की मृत्यु के बाद बिहारी पठानों ने जालौर राठौड़ो से छीन लिया।
• 1607 ई. में जोधपुर महाराज गजसिंह ने जालौर पर आक्रमण कर बिहारी पठानों से जीत लिया।
• जोधपुर गद्दी उत्तराधिकार संघर्ष (भीमसिंह व मानसिंह के मध्य) में महाराजा मानसिंह ने अपने संकट काल में जालौर दुर्ग में ही आश्रय लिया था।
• स्वतंत्रता आन्दोलन के समय मथुरादास माथुर, गणेशलाल, तुलसीदास राठी एवं फतहराज जोशी आदि नेताओं को इसी किले में नजरबंद किया गया था।
दर्शनीय स्थल :
• सूरजपोल इस दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार है जिसके पाश्व में एक बुर्ज बनी हुई है, इसके बाद ध्रुवपोल, चाँदपोल, सिरेपोल इसके अन्य प्रमुख प्रवेश द्वार है।
• प्राचीन जैन मंदिर, चामुण्डा माता और जोगमाया के मंदिर, संत मलिकशाह की दरगाह, अलाई मस्जिद (अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित), तोपखाना मस्जिद (परमार शासक भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशालाओं के अवशेष पर निर्मित) इस दुर्ग के प्रमुख धार्मिक स्थल है।
• महाराजा मानसिंह के महल व झरोखे, दो मंजिला रानी महल, परमारकालीन कीर्ति स्तम्भ, दहियों की पोल, वीरमदेव की चोकी आदि इस दुर्ग के प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
• जाबालिकुण्ड, सोहनबाग इस दुर्ग में स्थित प्रमुख जलाशय है।
सूँधा पर्वत शिलालेख :
• इसमें कीर्तिपाल के लिए ‘राजेश्वर‘ शब्द का प्रयोग हुआ है।
• इस अभिलेख से पता चलता है कि समरसिंह ने जालौर के स्वर्णगिरि अथवा कनकांचल को चतुर्दिक विशाल और उन्नत प्राचीर से सुरक्षित किया।
• इस अभिलेख में उदयसिंह को तुर्कों का मान मर्दन करने वाला बताया है।
राजस्थान के दुर्ग :अचलगढ़ दुर्ग
• अचलगढ़ दुर्ग सिरोही जिले में आबू के निकट अरावली की एक पर्वत चोटी पर स्थित है जिसका निर्माण परमार राजपूतों ने 900 ई. में करवाया तथा इस दुर्ग का पुनर्निमाण 1452 ई. में महाराणा कुम्भा ने मेवाड़ को गुजरात आक्रमणों से सुरक्षित करने के लिए करवाया।
• गुजरात के सुल्तान कुतुबसाह और महमुद बेगड़ा का इस पर कुछ समय के लिए आधिपत्य रहा। इस दौरान उन्होंने किले में स्थित प्राचीन देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को खण्डित कर दिया।
दर्शनीय स्थल :
• किले की प्राचीर में हनुमानपोल और गणेशपोल दो बाह्य प्रवेश द्वार है जिन पर हनुमानजी व गणेशजी की मूर्तियाँ लगी है। इन द्वारों के पास कपूर सागर जलाशय स्थित है।
• चम्पापोल और भैरवपोल किले के अन्य प्रवेश द्वार है जिनमें प्रवेश करने के पश्चात् ही दुर्ग का आन्तरिक दृश्य दिखाई देता है।
• इस दुर्ग में शांतिनाथ (गुजरात के कुमारपाल सोलंकी द्वारा निर्मित), ऋषभ देव व पार्श्वनाथ के जैन मन्दिर स्थित है।
• अचलेश्वर महादेव मन्दिर इसमें शिवलिंग नहीं है केवल एक गड्ढा है जिसे ब्रह्मखड्ड कहते हैं।
• कुम्भ स्वामी का मन्दिर : यह मन्दिर कुम्भा द्वारा निर्मित है।
• ओखा रानी का महल, कुम्भा का महल, सावन भादो झील, मंदागिनी कुण्ड (अचलेश्वर महादेव मन्दिर के पास स्थित), महाराव मानसिंह की छतरी, परमारो द्वारा निर्मित खतरे की सूचना देने वाला बुर्ज जो अब भग्न रूप में है, भँवराथल (महमूद बेगड़ा की सेना पर मधुमखियों के आक्रमण से जुड़ा स्थल) इस दुर्ग में प्रमुख रूप से दर्शनीय है।
राजस्थान के दुर्ग : विजयगढ़ का दुर्ग
• मानी पहाड़ी पर स्थित इस गिरी दुर्ग का निर्माण बयाना (भरतपुर) में यादववंशी राजा विजयपाल ने 1040 ई. में करवाया। अपने निर्माता के नाम पर यह विजय मंदिर कहलाया।
• इसके अंदर बने भवन हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला के समन्वय को प्रकट करते हैं।
ऐतिहासिक घटनाएँ :
• वीर विनोद के अनुसार गजनी के मुसलमानों ने बयाना दुर्ग को घेरकर बारुद का बड़ा विस्फोट किया जिसमें विजयपाल की रानियों की मृत्यु हो गई।
• विजयपाल के बाद उसका पुत्र तवनपाल (त्रिभुवनपाल) शासक बना, इसी के काल में 1196 ई. में मुहम्मद गौरी ने आक्रमण कर इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
• गौरी के पश्चात् यह दुर्ग पर इल्तुतमिश व बलबन के अधिकार में रहा। 1348 ई. में इस दुर्ग को अर्जुनपाल ने मुस्लिम आधिपत्य से मुक्त करवाया। कालान्तर में यह पुनः फिरोज तुगलक के अधीन रहा।
• 1527 ई. में खानवा के युद्ध से पूर्व बयाना बाबर के अधीन था तथा युद्ध तैयारी हेतु मुगलों का प्रमुख केन्द्र था जिसे राणा सांगा ने मुगलों द्वारा नियुक्त दुर्गाध्यक्ष मेहंदी ख्वाजा से छीन लिया। हुमायूँ ने अपने शासन काल में अपने चचेरे भाई मुहम्मद जमान मिर्जा को इस दुर्ग में कैद करके रखा।
• यह दुर्ग शेरशाह शूरी तथा उसके पश्चात् मुगल बादशाह अकबर के अधीन रहा, 18वीं शताब्दी में यह जाट राजाओं के अधीन आ गया।
दर्शनीय स्थल
• भीम लाट : बयाना दुर्ग के भीतर लाल पत्थरों से बना एक गुप्तकालीन स्तम्भ (26 फिट चौड़ी) जिसे सम्भवतः समुद्र गुप्त के सामन्त विष्णुवर्द्धन ने पुण्डरिक यज्ञ की समाप्ति पर यहाँ स्थापित करवाया। इसे राजस्थान का प्रथम विजय स्तंभ माना जाता है।
• ऊषा मंदिर : रानी चित्रलेखा द्वारा निर्मित यह मंदिर बयाना दुर्ग का प्रमुख आकर्षण है, जो मुख्यतः लाल पत्थरों से बना है। गुलामवंशीय सुल्तान इल्तुतमिश के शासनकाल में इस भव्य मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया तथा ऊषा की प्रतिमा खंडित कर दी गयी। 18वीं शताब्दी में बयाना दुर्ग पर जाटों का आधिपत्य हुआ तो पुनः इसे मंदिर का स्वरूप दे दिया गया।
• लोदी मीनार, अकबरी छतरी, बारहदरी, जहाँगीरी दरवाजा, सराय, सादुल्ला आदि इस दुर्ग में स्थित मुस्लिम वास्तुकला के प्रमुख उदाहरण है।
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