मात्रात्मक व्यक्तिगत क्षमता रूपी प्रक्रिया को कहा जाता है?
(A) विकास
(B) विकास
(C) संतुलन (Equilibrium)
(D) परिपक्वता (Maturation)
(B)
व्याख्या :
वृद्धि से अभिप्राय मानव के जीवनकाल में एक निश्चित समय तक होने वाले भौतिक / दैहिक शारीरिक परिवर्तनों (बढ़ोतरी) से है जिन्हें मापा जा सके।
• वृद्धि के अन्तर्गत मात्रात्मक (Quantitative) परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं।
वृद्धि व्यक्ति के किसी विशिष्ट पक्ष या शारीरिक पक्ष में परिवर्तन है जो संरचनात्मक पक्ष को दर्शाता है।
वृद्धि व्यक्ति के जीवन काल में एक निश्चित समय तक ही होती है। (परिपक्वता – Maturation)
• वृद्धि का मापन, मात्राकरण व अवलोकन किया जा सकता है।
• वृद्धि धनात्मक होती है।
विकास का अर्थ है-
(A) परिवर्तनों की उत्तरोत्तर श्रृंखला
(B) अभिप्ररेणा के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तनों की उत्तरोत्तर श्रृंखला
(C) अभिप्रेरणा एवं अनुभव के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तनों की उत्तरोत्तर श्रृंखला
(D) परिपक्वता एवं अनुभव के फलस्वरूप होने वाले परिवर्तनों की श्रृंखला
(C)
व्याख्या :
विकास से अभिप्राय व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवनकाल में गर्भ से मृत्य तक होने वाले सभी पक्षों के (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि) सभी प्रकार के परिवर्तनों से है (वृद्धि एवं हास) जो कि मात्रात्मक भी हो सकते हैं और गुणात्मक भी।
विकास व्यक्ति के आकार, रूप, ढाँचे आदि में परिवर्तन है जो कार्यकुशलता में सुधार के परिणामस्वरूप घटित होता है।
विकास परिवर्तनों की उत्तरोत्तर श्रृंखला (Progressive Series) है जो गर्भाधान से प्रारम्भ होकर मृत्यु तक जारी रहता है। (From Womb to Tomb)
विकास पूर्वकथनीय, क्रमबद्ध, संगत व उत्तरोत्तर परिवर्तनों का प्रारूप है जिसमें अभिप्रेरणा, अधिगम, अनुभव, परिपक्वता सहायक होते हैं।
(उक्त प्रश्न के सभी विकल्प किसी न किसी रूप में विकास को प्रदर्शित करते हैं। बोर्ड ने इस प्रश्न के (C) विकल्प को सही माना है। क्योंकि (C) विकल्प में विकास के अनुभव एवं अभिप्रेरणात्मक पक्ष को दर्शाते हुये इसे परिवर्तनों की ‘उत्तरोत्तर श्रृंखला’ कहा है। अतः यही सही विकल्प है।)
वे परिवर्तन जिनके होने की एक निश्चित दिशा हो और जिनका इनके पूर्ववती कारकों से निश्चित संबंध हो, क्या कहलाते हैं?
(A) वृद्धि
(B) विकास
(C) परिपक्वता
(D) अनुकूलन
(बी)
व्याख्या :
विकास एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवन चक्र में परिवर्तित होता है। अल्पकालिक बीमारी के कारण आए परिवर्तन विकास नहीं कहलाते हैं। विकास के फलस्वरूप होने वाले सभी परिवर्तन एक जैसे नहीं होते।
विकास अपेक्षाकृत अभिवृद्धि तक सीमित नहीं होता अपितु ऐसे प्रगतिशील परिवर्तनों में निहित है जो परिपक्वता के लक्ष्य की ओर व्यवस्थित रूप से उन्मुख होते हैं।” यह परिभाषा दी है-
(A) गैसेल
(B) ई.वी. हरलॉक
(C) हरबर्ट सोरेन्सन
(D) ईरा गॉर्डन
(बी)
विकास से संबंधित परिभाषाएँ:
ई.बी. हरलॉक : विकास के फलस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ और नवीन योग्यताएँ प्रकट होती है।
गैसेल : विकास अभिवृद्धि के सम्प्रत्यय की अपेक्षा अधिक व्यापक है। इसका अवलोकन, मूल्यांकन एवं कुछ सीमा तक तीन रूपों – (शरीर रचनात्मक, शरीर-क्रियाविज्ञानात्मक एवं व्यवहारात्मक) में मापन किया जा सकता है। व्यवहारात्मक संकेत ही विकास के सर्वाधिक व्यापक परिचायक होते हैं।
हरबर्ट सोरेन्सन : विकास का अभिप्राय परिपक्वता तथा कार्यपरक
सुधार की वह प्रक्रिया है जो संरचना एवं स्वरूप में हो रहे गुणात्मक तथा परिमाणात्मक परिवर्तनों के फलस्वरूप होती है। विकास अभिवृद्धि की अपेक्षा गुणात्मक परिवर्तन का विशिष्ट द्योतक है।
ईरा गॉर्डन : व्यक्ति का विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका प्रारम्भ जन्म के समय से हो जाता है और वह तब तक चलती रहती है जब तक व्यक्ति पूर्णता को प्राप्त नहीं कर लेता अर्थात् विकास आत्मबोध, पूर्ति अधिकतम संगठन एवं एकीकरण की पूर्णता की प्रक्रिया है। फ्रैंक: अभिवृद्धि कोशीय गुणन (Celluar Multiplication) है और विकास उन अंगों का संगठन है जिसे अभिवृद्धि और विभिन्नता द्वारा निर्मित किया जाता है।
विकास प्रक्रियाओं की निरंतरता का सिद्धांत केवल इस तथ्य पर बल देता है कि व्यक्ति में कोई परितर्वन आकस्मिक नहीं होता।” उक्त कथन किस मनोवैज्ञानिक द्वारा दिया गया है?
(A) गैरिसन व अन्य
(B) डगलस व हॉलैंड
(C) गैसेल
(D) स्कीनर
(डी)
व्याख्या :
गैरिसन व अन्य : जब बालक विकास की एक अवस्था से दूसरी अवस्था में प्रवेश करता है तब हम उसमें कुछ परिवर्तन देखते हैं। यह परिवर्तन कुछ निश्चित सिद्धांतों का अनुसरण करते हैं। इन्हें विकास का सिद्धांत कहते हैं।
स्कीनर : विकास प्रक्रियाओं की निरंतरता का सिद्धांत केवल इस तथ्य पर बल देता है कि व्यक्ति में कोई परितर्वन आकस्मिक नहीं होता। अर्थात् विकास एक सतत् प्रक्रिया है। इसकी गति कभी तीव्र और कभी मंद होती है।
डगलस व हॉलैंड : विभिन्न व्यक्तियों के विकास की गति में भिन्नता होती है। यह भिन्नता विकास के सम्पूर्ण काल में यथावत बनी रहती है।
स्कीनर : यह सिद्ध किया जा चुका है कि वंशक्रम उन सीमाओं को निश्चित करता है जिसके आगे बालक का विकास नहीं किया जा सकता। इस प्रकार यह भी प्रमाणित किया जा चुका है कि जीवन में प्रारम्भिक वर्षों में दूषित वातावरण, कुपोषण या गंभीर रोग जन्मजात योग्यताओं को कुण्ठित या निर्बल बना सकते हैं।
गैरिसन व अन्य : शरीर संबंधी दृष्टिकोण व्यक्ति के विभिन्न अंगों के विकास में सामंजस्य और परस्पर संबंध पर बल देता है।
हरलॉक : विकास लयात्मक (Rnthemic) होता है, नियमित (Regular) नहीं।
वे परिवर्तन जो एक निर्धारित क्रम का अनुसरण करते हैं तथा प्रधानतः उस आनुवांशिक रूपरेखा (ब्लूप्रिंट) से सुनिश्चित होते हैं जो हमारी संवद्धि एंव विकास में समानता उत्पन्न करते हैं, कहलाते हैं-
(A) वृद्धि
(B) विकास
(C) परिपक्वता (Maturation)
(D) क्रमविकास
(सी)
व्याख्या :
परिपक्वता
वे परिवर्तन जो एक निर्धारित क्रम का अनुसरण करते हैं तथा प्रधानतः उस आनुवांशिक रूपरेखा (ब्लूप्रिंट) से सुनिश्चित होते हैं। जो हमारी संवृद्धि एंव विकास में समानता उत्पन्न करते हैं, परिपक्वता कहलाते हैं। जैसे- दाँतों का आना, चलना शुरू कर देना।
सत्य कथन छाँटिए –
(A) यदि बच्चे परिपक्वता की दृष्टि से तैयार नहीं है तो भी अधिक प्रयास द्वारा उसके समस्त विकासात्मक प्रक्रिया के व्यवहारों को दृष्टिगत किया जा सकता है।
(B) परिपक्वन की प्रक्रिया अंदर से प्रस्फुटित होती है। ये आंतरिक और आनुवांशिक रूप से निर्धारित समय सारणी जो प्रजाति विशेष की चरित्रगत विशेषता होती है, के अनुसार घटित होती है।
(C) A व B दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
(बी)
व्याख्या :
परिपक्वन के आधार पर परिलक्षित होने वाले परिवर्तन अंदर से प्रस्फुटित होते हैं। यदि व्यक्ति परिपक्वता की दृष्टि से तैयार नहीं है। तो प्रयास करने के बावजूद विकास को प्राप्त नहीं किया जा सकता । प्रजाति विशिष्ट परिवर्तन क्रमविकास कहलाते हैं। क्रम विकास अत्यंत धीमी गति से होता है। जैसे-आदि वानर से मनुष्य की उत्पत्ति में लगभग 14 मिलियन वर्ष लगे।
निम्नलिखित में से असत्य कथन कौनसा है-
(A) अभिवृद्धि व्यक्ति के किसी विशिष्ट पक्ष या शारीरिक पक्ष में परिवर्तन है जबकि विकास व्यक्ति के सम्पूर्ण संगठन पक्षों में परिवर्तन है।
(B) अभिवृद्धि व्यक्ति के जीवन काल में एक निश्चित समय तक होती है परन्तु विकास जीवनपर्यन्त चलने वाली क्रमिक और प्रगतिशील श्रृंखला है।
(C) विकास सार्थक अभिवृद्धि के अभाव में संभव नहीं है।
(D) अभिवृद्धि व्यक्ति के संरचनात्मक पक्ष व विकास व्यक्ति के कार्यात्मक पक्ष को दर्शाता है।
(C)
विकास में सम्मिलित है-
(A) अधिक प्रगति (More Progress)
(B) अधिक प्रकटीकरण (More Unfoldment)
(C) अधिक परिपक्वता (More Maturity)
(D) उपर्युक्त सभी
(डी)
व्याख्या :
विकास का अर्थ अधिक प्रगति, अधिक प्रकटीकरण और अधिक परिपक्वता की ओर जाना है। विकास समय के साथ उक्त पणिर्तनों को इंगित करता है जो केवल मात्रात्मक मापन न होकर एक निश्चित व्यवहार प्रतिरूप के रूप में व्यक्त होता है। जैसे किसी बालक के सामाजिक व्यवहार का मात्रात्मक रूप से मापन संभव नहीं है परन्तु दूसरों के प्रति उसके व्यवहार को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
निम्न कथनों में से सत्य कथन की पहचान कीजिये –
(A) विकास निर्वात में घटित नहीं होता।
(B) विकास एक विशिष्ट सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ में सन्निहित होता है।
(C) विकासात्मक अवस्थाएँ अस्थायी होती हैं।
(D) उपर्युक्त सभी
(डी)
व्याख्या :
विकास निर्वात में घटित नहीं होता। यह सदैव एक विशिष्ट सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ में सन्निहित होता है। एक व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन काल में परिवर्तन जैविक तथा व्यक्ति के परिवेश में हुए परिवर्तनों का संयुक्त कार्य है। मानव जीवन विभिन्न अवस्थाओं से होते हुए आगे बढ़ता है। यह अवस्थाएँ अस्थायी होती है और एक प्रभावी लक्षण या प्रमुख विशेषता के द्वारा पहचानी जाती है। इसी के चलते प्रत्येक अवस्था की एक अद्वितीय विशेषता परिलक्षित होती है। विकास की एक अवस्था से दूसरी अवस्था के मध्य विकास के समय तथा दर के सापेक्ष व्यक्ति निश्चित रूप से भिन्न होते हैं। कुछ व्यवहार प्रारूप तथा कुछ कौशल एक विशिष्ट अवस्था में आसानी और सफलतापूर्वक सीखे जाते हैं। व्यक्ति की यह उपलधियाँ विकास की उस अवस्था के लिए सामाजिक अपेक्षा बन जाती हैं। इन्हें विकासात्मक कार्य कहा जाता है। इसके संदर्भ में हेविगहर्स्ट का सिद्धान्त प्रमुख है।
विकास के संदर्भ में सत्य कथन छाँटिए –
(A) विकास गतिशील, क्रमबद्ध, पूर्वकथनीय परिवर्तनों का प्रारूप है।
(B) यह गर्भाधान से प्रारम्भ होता है और जीवनभर चलता है।
(C) विकास में संवृद्धि व ह्रास, दोनों ही तरह के परिवर्तन निहित होते हैं।
(D) उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं।
(डी)
विकास के संबंध में सत्य कथन बताइये –
(A) विकास जीवन भर चलने वाली सतत् प्रक्रिया है।
(B) इसमें प्राप्तियाँ व हानियाँ दोनों सम्मिलित हैं।
(C) यह सम्पूर्ण जीवन विस्तार में गत्यात्मक तरीके से अंतः क्रिया करती हैं।
(D) उपर्युक्त सभी
(डी)
परिभाषा : (प्रश्न 11-12)
विकास गंर्भाधान से प्रारम्भ होकर वृद्धावस्था तक सभी आयु समूह में होता है। इस प्रक्रिया में बालक में निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं। जो गत्यात्मक तरीके से संचालित होते हैं अर्थात् एक पक्ष में परिवर्तन के साथ दूसरे पक्ष में भी परिवर्तन होना।
श्रीमती हरलॉक (1956) के अनुसार विकास परिलक्षित होता है- आकार में परिवर्तन अनुपात में परिवर्तन पुराने लक्षणों का लोप नए चिह्न/लक्षणों का प्रकट होना
प्रौढ़ों के अनुभव उन्हें अधिक बुद्धिमान बना सकते हैं तथा उनके निर्णयों को दिशा प्रदान कर सकते हैं। जबकि उम्र बढ़ने के साथ गति की माँग करने वाले कार्य, जैसे दौड़ना पर एक व्यक्ति का निष्पादन कम हो सकता है। विकासात्मक प्रक्रिया के इस परिवर्तन को विकास की किस विशेषता द्वारा बेहतर ढंग से समझा जा सकता है-
(A) विकास सतत् है।
(B) विकास बहुदिश् है।
(C) विकास पूर्व कथनीय है।
(D) इनमें से कोई नहीं
(बी)
व्याख्या :
विकास बहुदिश् व बहुआयामी है। विकास के एक दिये हुए आयाम के कुछ घटकों में वृद्धि हो सकती है जबकि दूसरे हास का प्रदर्शन कर सकते हैं।
निम्न में से विकास का परिप्रेक्ष्य नहीं है-
(A) विकास ऐतिहासिक दशाओं से प्रभावित नहीं होता।
(B) विकास लचीला व संशोधन योग्य होता है।
(C) व्यक्ति के मानसिक विकास में परिनार्जनशीलता पायी जाती है।
(D) विकास अनेक शैक्षणिक विधाओं के लिए महत्त्वपूर्ण सरोकार है।
(A)
व्याख्या : विकास ऐतिहासिक दशाओं से प्रभावित होता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक 20 वषर्षीय व्यक्ति का अनुभव आज के 20 वर्षीय व्यक्ति से बहुत भिन्न रहा होगा। विकास संशोधन योग्य है क्योंकि इसमें परिमार्जन संभव है। यद्यपि इस लचीलेपन में एक व्यक्ति से दूसरे में भिन्नता पायी जाती है।
एक व्यक्ति परिस्थिति अथवा संदर्भ के आधार पर अनुक्रियाएँ करता है?
(A) हाँ
(B) नहीं
(C) कभी-कभी
(D) इनमें से कोई नहीं
(ए)
व्याख्या :
मानव संदर्भ के आधार पर अनुक्रियाएँ करता है। इसके अंतर्गत वंशानुगत रूप से प्राप्त विशेषताएँ, भौतिक पर्यावरण, सामाजिक ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक संदर्भ आदि शामिल हैं।
व्यक्ति के जीवन में घटनाएँ हमेशा एक जैसी नहीं होती। जैसे-जैसे किसी के जीवन में कोई घटना घटती है वैसे-वैसे वह उस व्यक्ति को प्रभावित करती है।
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